अब हंसना चाहती हैं महिमा चौधरी

कीर्ति राणा.
कैंसर को हरा चुकी अभिनेत्री महिमा चौधरी अब कल के सपने देखने से ज्यादा आज में विश्वास करती हैं। सस्पेंस, लव, थ्रिल से ज्यादा उनकी पसंद कॉमेडी वाले सीरियल हैं। अब मैं हंसना चाहती हूं। मेरा मोबाइल स्टैंडअप कॉमेडी वाले वीडियो से भरा हुआ है। हर साल रूटीन चेकअप कराने वाली अभिनेत्री महिमा चौधरी ने कहा मुझे कोई लक्षण महसूस नहीं हुए। मैं अपनी नियमित जांच करवा रही थी और जांच करने वाले व्यक्ति ने कहा कि मुझे कैंसर रोग विशेषज्ञ डॉ मंदार से इसकी जांच करवानी चाहिए। एक पल समझ नहीं पाईं, जांच में स्तन के पास गांठ थी, दर्द नहीं था। इस गांठ की बायप्सी हुई, डेढ़ दो साल तक चले इलाज में कमजोर तो हुई ही सिर के बाल भी उड़ गए। इलाज के चलते डॉक्टरों ने जानकारी नहीं दी, ब्रेस्ट कैंसर का ऑपरेशन करने के बाद मुझे बताया कि कैंसर था। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं और इस युद्ध में जीतने का श्रेय वह नियमित कराए जाने वाले हेल्थ चेकअप और डॉक्टरों पर भरोसे को देती हैं।
अनुपम खेर ने जब बीमारी से लड़ रही महिमा का वीडियो जारी किया था तब पूरी फिल्म इंडस्ट्री और उनके परिजनों को जानकारी मिली। मुंबई के ओंकोकेयर हॉस्पिटल की कैंसर डेकेयर यूनिट के उद्घाटन के लिए आईं महिमा मम्मी के जन्मदिन के साथ अपनी बीमारी की जानकारी देते हुए भावुक हो गईं। कैंसर को हराने के बाद वो फिर से बिजी हो गई हैं। उनकी अगली फिल्म ‘सिग्नेचर’ है। यह फिल्म एक तरह से कैंसर से जूझ रहे मरीज और उसके विल पॉवर को बयां करने वाली है।
उन भयावह दिनों की याद करते हुए महिमा बताती हैं, ‘मुंबई में कोरोना की दहशत और ऊपर से मुझे यह बीमारी। 14 वर्षीय बेटी आर्यना महीनों ऑनलाइन पढ़ाई को छोड़ मेरी तीमारदारी में लगी रही। अस्पताल में दाखिल एक छोटे बच्चे ने मेरा हौसला बढ़ाया। बीमारी का असर चेहरे पर पड़ने के साथ बाल भी उड़ गए थे। मेरा यह हाल देख कर बेटी विचलित न हो जाए इसलिए उसे बहन के घर भेज दिया था लेकिन वह लौट आई। दवाइयों और कमजोरी का ऐसा असर था कि कुछ भी खाने की इच्छा नहीं होती। उसने अलार्म लगा रखा था, हर दो घंटे में मुझे कुछ ना कुछ खिला कर ही मानती थी। मेरी बेटी का सबसे अधिक सपोर्ट था। वह मेरे लिए डॉक्टर की तरह हो गई थी। उसने सभी तरह से मुझे सपोर्ट किया।’
महिमा चौधरी कहती हैं, ‘रूटीन जांच नहीं कराती तो देर से तब पता चलता जब कैंसर फैल जाता। शुरुआत के वक्त ही पता चल जाए तो कैंसर बुखार की तरह है, क्योर हो सकता है, हेल्थ चेकअप में ढिलाई न करें तो इसका आसानी से इलाज हो सकता है। जवान उम्र में यदि यह अधिक फैल रहा है तो उसका कारण लापरवाही अधिक है। फिल्म ’सिग्नेचर’ में ये सारे दृश्य हैं। अस्पताल के नियमों, दवाइयों और तरह तरह की जांच आदि से मरीज और परिजनों को परेशानी होती है, अविश्वास बढ़ता है लेकिन यह भी समझना होगा कि मरीजों के बढ़ते दबाव से डॉक्टर्स, अस्पताल स्टॉफ कितने प्रेशर में रहता है। ’सिग्नेचर’ इन सभी परेशानियों, बीमारी को सामने लाती है। मरीजों के लिए यह बात अच्छी है कि कैंसर की दवाई एक सी, ट्रीटमेंट एक सा है। बढ़िया सर्जन जल्दी उपचार बताता है।’ सनद रहे, बिजनेसमेन बॉबी मुखर्जी से 2006 में विवाह और 2013 में तलाक होने के बाद से बेटी आर्यना की सिंगल मदर के रूप में परवरिश कर रही हैं।

परदेस’ के लिए मिला फिल्मफेयर अवार्ड
बंगाल में जन्मी (1973) महिमा का बचपन दार्जिलिंग में बीता है। एड फिल्मों से फिल्मों में आईं। सुभाष घई की फिल्म ‘परदेस’ (1997) में गंगा के किरदार से उन्हें पहचान भी मिली और फिल्म फेयर अवार्ड भी। 49 वर्षीय महिमा की अन्य प्रमुख फिल्में हैं ‘दिल क्या करे’, ‘दाग’, ‘लज्जा’, ‘तेरे नाम’, ‘ओम जय जगदीश’, ‘धड़कन’, ‘कुरुक्षेत्र’, ‘दिल है तुम्हारा’।
लेखक जाने-माने पत्रकार हैं

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