सर्वे में क्या है गहलोत, राजे और पायलट की पॉजिशन ?

सुशांत पारीक.
सियासी दलों को सत्ता तक पहुंचाने में उनके फेमस चेहरों का हाथ तो होता है। फिर चाहे राजस्थान में अशोक गहलोत और वसुंधरा राजे हों या फिर केंद्र की सत्ता में नरेंद्र मोदी। आज भी बीजेपी नेताओं को मोदी के नाम पर वोट मिलते हैं। वही हाल प्रदेश की राजनीति में राजस्थान का है। जहां मौजूदा राजनीति में गहलोत और राजे के नाम पर दोनों ही दल सत्ता में आते रहे हैं। जहां कांग्रेस अपने इसी प्रयोग के साथ चुनावी मैदान में जा रही है तो बीजेपी ने अभी किसी चेहरे पर मुहर नहीं लगाई है और कहा तो ये जा रहा है कि बीजेपी चुनाव के बाद अगर सरकार बनाने की पोजीशन में जाती है तब वो अपना सीएम का चेहरा फाइनल करेगी। जिन दलों में सियासी फूट मचने की आशंकाएं ज्यादा होती हैं, उन दलों में किसी के नाम को फाइनल न कर पाने का डर बना ही रहता है। इस मामले में देखा जाए तो राजस्थान कांग्रेस सेफ है। यह अलग बात है कि पायलट की वजह से पार्टी दो हिस्सों में बंटी जरूर है, लेकिन पार्टी के हर नेता कार्यकर्ता को ये साफ पता है कि अगर पायलट साथ आ भी जाते हैं तो भी सीएम की कुर्सी गहलोत साहब के लिए रिजर्व है और ये बात जनता भी बाखूब तरीके से जानती है। शायद यही वजह है कि एक निजी एजेंसी की ओर से किए गए सर्वे में सीएम चेहरे के सवाल पर 32 फीसद जनता सीएम गहलोत को पसंद कर रही है जबकि 27 फीसद लोगों की पसंद राजे हैं और 25 फीसद लोग पायलट को पसंद करते हैं। सियासी जानकार वैभव पुरोहित की ओर से कराए गए ये सर्वे 120 विधानसभाओं और 7 संभागों में किया गया। सर्वे के मुताबिक राज्य सरकार की योजनाओं को लोग पसंद कर रहे हैं और अशोक गहलोत को वो दुबारा सीएम के तौर पर देखना पसंद करते हैं।

सर्वे की एक बात जो पूर्व सीएम राजे को खुश कर सकती है, वो है उनका महिलाओं में जबरदस्त क्रेज़ जो उनके सीएम न रहते हुए भी कायम है। जहां तक बात पायलट की है तो पूर्वी राजस्थान में उन्हें सबसे ज्यादा पसंद किया जा रहा है। खासकर युवाओं में पायलट खासे लोकप्रिय हैं। अब बात ये है कि राजस्थान में किसका डंका बज रहा है। तो हाल में चाहे सी वोटर के ट्रैकर की बात करें या वैभव पुरोहित के सर्वे की। दोनों में गहलोत हीरो बनकर उभरे हैं। हनुमान बेनीवाल को 5 फीसद लोगों ने पसंद किया है।
तो कह सकते हैं कि खेल बिगाड़ने की कोशिश तो कर ही लेंगे। इधर आम आदमी पार्टी भी कुछ न कुछ नुकसान दोनों बड़े दलों को पहुंचाएगी ही। मुफ्त की बिजली बांटकर ‘आप’ ने दिल्ली में सरकार बनाई इसलिए आप इसे अपनी स्ट्रैटजी कहती है। जिसे इन दिनों कांग्रेस ने हाइजैक कर लिया है। घोषणाओं और योजनाओं के दम पर फिलहाल अशोक गहलोत के खिलाफ एंटी इंकंबैंसी न दिख रही हो, लेकिन उनके विधायकों के खिलाफ बनने वाला माहौल अशोक गहलोत कैसे खत्म करेंगे और इसे खत्म किए बिना सत्ता की चाबी हाथ में लेना नामुमकिन है। अगर कांग्रेस, वसुंधरा कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार के सहारे सियासी माहौल बनाने की कोशिश कर रही है, तो लगातार राज्य शासन में भ्रष्टाचारी नौकरशाहों के खिलाफ एसीबी की कार्रवाई पर कैसे जवाब देगी। पेपर लीक मामले पर क्या जवाब देगी। डीओआईटी मामले पर कैसे खुद की नीयत साफ दिखा पाएगी। इधर ईडी भी राजस्थान में भ्रष्टाचार की जड़ें खोदने में जुट गई है। ऐसे में कांग्रेस और सीएम गहलोत की सियासी डगर इतनी भी आसान नहीं, जितना सुकून सर्वे दे रहे हैं और सचिन पालयट साथ आए तो बात बनेगी और छिटक गए तो एक बड़ा झटका दे जाएंगे। ये भी साफ है। लिहाज़ा देखना होगा कि गहलोत को हीरो बनाए रखने के लिए कांग्रेस पार्टी का अगला कदम क्या होता है और उसके काट में बीजेपी अपनी रणनीति में क्या बदलाव करती है।
लेखक राजनीतिक विश्लेषक व राजस्थान चौक मीडिया ग्रुप के एडिटर इन चीफ हैं

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