संजय सेठी. श्रीगंगानगर.
बौने लोग सामान्य इंसानों की तरह महत्वाकांक्षाएं रखते हैं, जिनको वे पाने की तमन्ना करते हैं लेकिन समाज उन्हें महज एक तमाशबीन के नजरिए से ही देखता है। नाटे कद के लोगों का समाज मखौल उड़ाता है, जबकि वे भी दूसरों की तरह गुजरने की इच्छाएं रखते हैं। लोग उन्हें हंसी के पात्र के रूप में लेते हैं। बौने लोगों के प्रति समाज कैसी मानसिकता और अवधारणा रखता है,इसी का चित्रण राष्ट्रीय कला मंदिर के बैनर तले मंचित नाटक तमाशबीन में बखूबी किया गया। जाने-माने रंगकर्मी मोहनलाल दादरवाल द्वारा लिखित और विजय जोरा द्वारा निर्देशित डेढ घंटे की इस प्रस्तुति में जहां बौनों का मजाकिया पक्ष रखा गया, वही उनके मानवीय पहलुओं को उजागर किया गया। बाबा रामदेव मंदिर के सामने रोहित उद्योग परिसर में राष्ट्रीय कला मंदिर के चौधरी रामजस कला सदन (ऑडिटोरियम) में बड़ी संख्या में आए दर्शकों की आंखें नाटक का क्लाइमैक्स नम कर गया। कथानक की कसावट, मंजा निर्देशन, दमदार संवाद अदायगी, वेशभूषा, मंच सज्जा, ध्वनि और प्रकाश के शानदार संयोजन ने प्रभावित किया।
शिवा चारण (बंडा),राकेश नायक (ताड़ी) ऋतिक मेघवाल (गोली), पूजाक्षी जग्गा(सुलेखा), सोनू नायक (मंगू), निकिता (पूर्णिमा), मोहनलाल दादरवाल (मास्टर) और विजय जोरा (गोली का पिता) ने शानदार अभिनय से पात्रों की भूमिकाओं से न्याय किया। पलक झपकते दृश्यों का बदलना रोमांचकारी रहा। दर्शकों को एक अलग ही दुनिया में ले जाने और अपने साथ जोड़ने में यह प्रस्तुति सफल रही। इसमें मंच के पीछे काम करने वालों की मेहनत साफ झलकी। दिल को छू लेने वाले दृश्य और प्रभावशाली संवादों पर गूंजती तालियां इसका प्रमाण रहीं। मुख्य अतिथि भाजपा जिला मन्त्री एवं भारत सरकार दिशा समिति की जिला सद्स्य अंजू सैनी तथा विशिष्ट अतिथि ब्लूमिंग डेल्स इंटरनेशनल स्कूल के मैनेजिंग ट्रस्टी अजय गुप्ता ने खुले दिल से मंचन को सराहा। नाटक देखने पहुंचे बौने दंपति शीशपाल-लिंबा ने कहा कि उन जैसे नाटे कद के लोगों की जिंदगी तथा मानसिकता को नाटक में बखूबी उभारा गया है। निश्चित ही यह नाटक समाज के नजरिए को ऐसे लोगों के प्रति बदलने में सहायक साबित होगा। राष्ट्रीय कला मंदिर के संरक्षक विजय गोयल ने बताते हैं कि इस नाटक का मंचन बड़े स्तर पर किया जाना चाहिए। नाटक का कथानक उच्च कोटि का है। कलाकारों ने अभिनय भी उच्च कोटि का किया। अध्यक्ष वीरेंद्र बैद बोले-‘राष्ट्रीय कला मंदिर ने हमेशा ही प्रतिभाओं को आगे बढ़ाने और प्रोत्साहित करने का काम किया है, जो निरंतर जारी रहेगा।’
लेखक मोहन दादरवाल ने कहा कि नाटक का कथानक निजी जिंदगी में आ रही मुसीबतों को रेखांकित करता है।यह बौनें लोगों के अलग वर्ग की कहानी है, लेकिन यह वर्ग समाज का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। निर्देशक विजय जोरा ने कहा कि प्रयोगधर्मी सिनेमा की तरह रंगमंच में कुछ नवीन प्रयोग किया गया। दशकों की प्रतिक्रिया उत्साहजनक रही जो इस प्रयोग की सफलता को दर्शाता है। अतिथियों ने सभी कलाकारों और प्रस्तुति में सहयोग करने वालों को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया। पिछले 28 वर्षों से अभिनय तथा निर्देशन के क्षेत्र में कार्यरत विजय जोरा और कला मंदिर के आयोजनों में वेशभूषाओं में लगभग 23 वर्षों से सहयोग कर रहे गुडविल टेलर के संचालक साधुराम भाटीवाल का विशेष रुप से सम्मान किया गया। प्रकाश व्यवस्था के लिए बजरंग जालप, मंच सामग्री सुरेंद्र और मंच के पीछे के सहयोगी अनिल सिंह को भी सम्मानित किया गया। मंच संचालन सुनील शर्मा ने किया। कला मंदिर के सचिव शिव जालान ने धन्यवाद ज्ञापित किया।