भटनेर पोस्ट न्यूज. हनुमानगढ़.
कबीर सिर्फ कवि या समाज सुधारक नहीं बल्कि श्रेष्ठ संत थे। उन्होंने आम आदमी की भाषा में धर्म के मर्म को परिभाषित किया। वे किसी धर्म के खिलाफ नहीं थे बल्कि झूठ आडम्बरों को खत्म करने हिमायती थे। धर्म का मर्म जानते थे और सरल भाषा में इसकी विवेचना करते। जब देश में धर्म और जाति के नाम पर कट्टरता फैलाई जा रही है, ऐसे समय में कबीर जैसे संत की कमी खलती है। टाउन स्थित शहीद स्मारक में कबीर जयंती के मौके पर हुई संगोष्ठी में वक्ताओं ने इसी तरह की बातें कहीं। नागरिक सुरक्षा मंच की ओर से हुई संगोष्ठी में मुख्य वक्ता वरिष्ठ शिशु एवं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. जेएस खोसा थे। अध्यक्षता नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष एडवोकेट शंकर सोनी ने की। शिक्षाविद् डॉ. संतोष राजपुरोहित, मंच के वरिष्ठ सदस्य राधेश्याम टाक, पत्रकार अदरीस खान व पुरुषोत्तम झा ने भी अपनी बात रखी।
नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक अध्यक्ष एडवोकेट शंकर सोनी ने कहाकि कबीर को लेकर आज भी विरोधाभास है। बहुत सारे लोग कबीर को नास्तिक समझते हैं जबकि कबीर विशुद्ध रूप से आस्तिक थे। शिक्षित नहीं होने के बाद उनके व्यक्तित्व में वैज्ञानिक दृष्टिकोण था। वे प्रैक्टिकल बातें करते थे। करीब पांच सौ-छह सौ साल पहले उन्होंने धार्मिक कट्टरता के खिलाफ मुखर होकर आवाज उठाई। इससे साबित होता है कि वे किस तरह साहसी थे। उन्होंने मौजूदा समय में कबीर की बातों की प्रासंगिकतता का जिक्र करते हुए कहाकि आज भी देश और दुनिया में धार्मिक उन्माद का दौर है। ऐसे में कबीर की बातें बेहद प्रासंगिक है।
डॉ. जेएस खोसा ने कहाकि कबीर को लेकर नजरिया बदलने की जरूरत है। कबीर के दोहे और साखी पढ़कर दिव्य ज्ञान होता है। उस दौर में इस तरह प्रैक्टिकल की बातें करने वाला कबीर ही हो सकता है। उन्होंने कहाकि कबीर ने उस वक्त ‘काल करै सो आज कर, आज करै से अब….’ दोहा लिखकर लोगों को समय प्रबंधन सिखाया था। वह कबीर ही हैं जिन्होंने ‘इगो’ खत्म करने की नसीहत देते हुए ‘बुरा जो देखन मैं गया बुरा न मिलया कोय….’ लिखा। कबीर की बातें हर युग में प्रासंगिक रहेंगी।
डॉ. संतोष राजपुरोहित ने कहाकि कबीर को सच कहना आता है। वे किसी धर्म के आडम्बर को बेपर्दा करने से नहीं चूकते। किसी का पक्ष नहीं लेते। यही उनकी खासियत है। आज देश में कबीर जैसे मुखर संतों की जरूरत है जो हर धर्म से जुड़े आडम्बरों पर प्रहार करे।
पत्रकार अदरीस खान व पुरुषोत्तम झा ने कबीर के दोहों को उद्धृत करते हुए कहाकि ‘ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय’ तथा ‘कबिरा खड़ा बाजार में, मांगे सब की खैर, न काहू से दोस्ती, न काहू से बैर’ जैसे दोहे आज भी हमें बहुत कुछ सिखाते हैं। यही कबीर की लेखनी का जादू है। करीब साढ़े पांच सौ साल बाद भी उनकी बातें प्रासंगिक लगती हैं।
एडवोकेट शंकर सोनी ने बताया कि प्रत्येक रविवार को सुबह 10 से 11 बजे तक किसी विषय पर संगोष्ठी होगी। इसमें युवाओं को आमंत्रित किया जाएगा ताकि उनके विचार को समझने का मौका मिले और फिर एक्सपर्ट की राय ली जाएगी। उन्होंने बताया कि जल्दी ही शहीदों की जयंती व पुण्यतिथि पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम करने की रूपरेखा बनाई जा रही है। इससे युवाओं को ज्ञात-अज्ञात शहीदों के बारे में जानकारी मिल सकेगी। इसी से उनमें दायित्वबोध की भावना विकसित की जा सकती है।