






डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
महर्षि चरक ने आयुर्वेद के सारे ग्रन्थों का भाष्य किया और सर्वसाधारण के उपयोग के उपयुक्त बनाया। एक बार महर्षि के मन में बात आई कि देखें लोग उन नियमों पर चलते हैं या नहीं जिनका स्वास्थ्य से सम्बन्ध है। महर्षि पक्षी का रूप बनाकर वैद्यों के बाजार में कोडरुक् अर्थात् ‘रोगी कौन नहीं’ की आवाज लगाने लगे। वैद्यों ने सुना तो किसी ने कोई औषधि बताई, किसी ने कोई अवलेह बताया। किसी का मत था चूर्ण से, किसी का विचार था भस्मों से रोग दूर रहता है। पर इससे महर्षि को सन्तोष न हुआ। कुछ आगे बढ़कर वही आवाज लगाने लगे। वाग्भट्ट ने इसे सुना तो उत्तर दिया ‘हित भुक, मित भुक् ऋत् भुक्’ उत्तर सारपूर्ण है, यह समझ कर महर्षि नीचे उतरे और वाग्भट्ट को उनकी विद्या की सार्थकता पर धन्यवाद दिया।

स्वास्थ्य और आरोग्य के जो सर्वमान्य तथ्य हैं वे यही तीन हैं। शेष सब इन्हीं की शाखा प्रशाखायें हैं। औषधियों का चयन केवल रोग के बाद उपचार की दृष्टि से हुआ है पर सही रूप में स्वास्थ्य का सुख और रोग से बचने के लिए हिताहार मिताहार और ऋताहार उपयोगी ही नहीं आवश्यक है। इन नियमों का उल्लंघन करने से कोई भी व्यक्ति अधिक देर तक स्वस्थ व नीरोग नहीं रह सकता। स्वास्थ्य साधन के जो विभिन्न उपाय बताये जाते हैं वे इन्हीं के अंतर्गत विकसित हुये हैं। अधिक गहराई और कष्ट पूर्ण प्रक्रियाओं में न जाकर इन नियमों का पालन करते हुये मनुष्य सरलता पूर्वक अपना स्वास्थ्य बनाये रख सकता है।।

हित भुक् का अर्थ है मनुष्य वह आहार ग्रहण करे जो हितकारी हो। मित भुक् का मतलब है कम मात्रा में भोजन जो आपके पाचन तन्त्र पर बोझ न डाले। ऋत भुक् का अर्थ है ऋतु यानी मौसम के अनुसार भोजन करना।

ये नियम आयुर्वेद के गोल्डन रूल्स कहे जा सकते हैं जो किसी भी उम्र के व्यक्ति को स्वस्थ रखने में सहायक हैं। यदि पैंसठ साल के व्यक्ति को अधिक कमजोरी महसूस हो रही है तो उनके लिए बेहतर होगा कि चिकित्सक के परामर्श पर हारमोंस या बीमारी से संबंधित टेस्ट भी कराएं। चिकित्सक भी उचित जांच के बिना कोई स्पेसिफिक परामर्श देने में सक्षम नहीं होता।

पैंसठ वर्ष की आयु के पुरुष में टेस्टेस्टेरान हार्माेन का लेवल भी डाउन हो जाता है जिससे थकान रहती है और कामकाज में मन नहीं लगता। उचित आहार, व्यायाम के जरिए नेचुरल तरीके से टेस्टेस्टेरान हार्माेन को बढ़ाया जा सकता है। कई बार चिकित्सक के परामर्श पर इस हार्माेन के लेवल को बढ़ाने वाली दवाएं भी ली जा सकती हैं, जिससे वे चुस्ती फूर्ती के साथ ताकत महसूस करेंगे। 21वर्ष की आयु में इस हार्माेन का लेवल पीक पर होता है 35 से 40 वर्ष के बाद हर साल इसमें गिरावट आने लगती है।
-लेखक राजस्थान के विख्यात आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं




