




डॉ. अर्चना गोदारा.
अक्सर भाग जाती हैं लड़कियां
क्यों भाग जाती है,
ना घर की चिंता, ना माता-पिता का डर,
भविष्य का पता नहीं,
फिर क्यों भाग जाती है लड़कियाँ,
आखिर क्यों भाग जाती हैं.. लड़कियां?
जाने कितने ही सालों से यह सुनते आ रहे हैं कि वह लड़की भाग गई। वह लड़की इसके साथ भाग गई। ऐसा सुन कर अक्सर मन में यह प्रश्न उठता है कि लड़कियाँ ही क्यों भागती हैं? इसके पीछे बहुत से सामाजिक और मनोवैज्ञानिक कारण है जिन्हें अनदेखा किया जाता हैं।

भारतीय समाज में लड़कियों को कमजोर माना जाता है, उनकी सुरक्षा को लेकर माता-पिता के मन में हमेशा एक भय का वातावरण बना रहता है। इसीलिए उन्हें बचपन से ही संस्कारों और मर्यादाओं की सीमाओं में बांध दिया जाता है, जो कि एक घुटन भरी जेल के समान होते हैं और इस घुटन को वही महसूस कर सकता है जो इसमें जीता है। परिवार में उनकी इच्छाओं और निर्णयों को अक्सर महत्व नहीं दिया जाता या उन्हें दबा दिया जाता है।

जब परिवार उनकी भावनाओं, करियर या प्रेम से जुड़ी इच्छाओं को नहीं समझता, तो वे स्वयं को असुरक्षित और उपेक्षित महसूस करती हैं। ऐसी स्थिति में घर से बाहर के व्यक्ति से यदि उन्हें प्रेम एवं सहानुभूति मिलती है तो वह उसे ही सत्य मान लेती हैं। वह उस व्यक्ति के प्रति आकर्षित होती है क्यों कि उसके साथ वह स्वयं को दबा हुआ महसुस नहीं करती और खुशी का अनुभव करती है।

यह स्थिति बताती है कि माता पिता का व्यवहार अपनी बेटी के साथ ऐसा नहीं है कि वह कोई भी बात खुल कर उन्हें कह सके या अपनी भावनाओं को व्यक्त कर सके, इसलिए वह अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए दूसरे व्यक्ति की तलाश में रहती है और भागने जैसा कदम उठाती हैं।

मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह कदम उनके भीतर पनप रही स्वतंत्रता की चाह, आत्मनिर्णय की भावना और भावनात्मक सहारे की खोज का परिणाम होता है। किशोरावस्था की संवेदनशील अवस्था में जब उन्हें समझ और संवाद की कमी मिलती है, तो वे समाज से विद्रोह के रूप में भागने के विकल्प को चुन लेती हैं। यह केवल एक लड़की की गलती नहीं है बल्कि उस परिवार और समाज की विफलता है, जो उसकी भावनाओं को समझने में असमर्थ रहता है।

केवल बच्चा पालना ही जिम्मेदारी पूर्ण करना नहीं है। आवश्यकता इस बात की भी है कि माता-पिता अपने बच्चों से खुलकर संवाद करें, उन्हें यह अधिकार दें कि वह खुलकर अपने मन की बात अपने माता-पिता को कह सके, अपनी इच्छाओं को व्यक्त कर सके। जिससे वे अपने माता-पिता से दूरी महसूस ना करें और उनके मन में माता-पिता के प्रति किसी प्रकार का भय न रहे। उन्हें सुनें और निर्णयों में सहभागी बनाएं ताकि वे भागे नहीं, बल्कि समझदारी से अपनी राह चुनने की हिम्मत पाएँ।
-लेखिका राजकीय एनएमपीजी कॉलेज हनुमानगढ़ में सहायक आचार्य हैं



