




गोपाल झा.
राजस्थान में हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी के पास एथेनॉल प्लांट निर्माण को एक बारगी रोके जाने के साथ ही इलाके की हवा कुछ हल्की जरूर हुई है, लेकिन ज़मीन के नीचे सुलगती चिंगारी अब भी बुझी नहीं है। 10 दिसंबर को जो कुछ हुआ, उसने सिर्फ टिब्बी नहीं, पूरे राजस्थान की कानून-व्यवस्था को कटघरे में खड़ा कर दिया। किसान और पुलिस आमने-सामने आए, हालात हिंसक हो गए, दर्जनों गाड़ियां फूंक दी गईं, किसान और पुलिसकर्मी घायल हुए। विधायक अभिमन्यु पूनिया के चोटिल होने के बाद मामला जिला स्तर से निकलकर राष्ट्रीय बहस में बदल गया। लोकसभा में गूंज उठा टिब्बी, और राज्य सरकार पर दबाव बढ़ता चला गया।

हालात बेकाबू होते दिख रहे थे। ऐसे वक्त में सरकार ने वो फैसला लिया, जिसे प्रशासनिक हलकों में ‘फायर फाइटर मूव’ कहा जाता है। तेज-तर्रार और सख्त मिज़ाज माने जाने वाले एडीजी विजय कुमार सिंह, यानी वीके सिंह, को हनुमानगढ़ भेजा गया। संदेश साफ था, अब हालात को संभालने का काम अनुभवी हाथों में है।

वीके सिंह हनुमानगढ़ पहुंचे तो सबसे पहले अस्पताल गए। हिंसक झड़प में घायल पुलिसकर्मियों से मुलाकात की। यह सिर्फ औपचारिकता नहीं थी, बल्कि पुलिस के मनोबल और इकबाल को सीधा संदेश था, सिस्टम आपके साथ खड़ा है। इसके बाद पुलिस की सक्रियता दिखने लगी। मैदान में हलचल बदली और प्रशासन का आत्मविश्वास लौटता नजर आया।
मीडिया के सामने वीके सिंह का बयान दो टूक था। लोकतांत्रिक तरीके से विरोध का अधिकार सबको है, लेकिन कानून हाथ में लेने की इजाजत किसी को नहीं दी जाएगी। बाहर से आकर अशांति फैलाने वालों के लिए यह सख्त चेतावनी थी। संकेत साफ थे कि आंदोलन की आड़ में अराजकता बर्दाश्त नहीं होगी। इसके बाद मुकदमे दर्ज हुए, धरपकड़ शुरू हुई और कई लोगों की गिरफ्तारी हुई। इससे कुछ देर के लिए अफरातफरी जरूर मची, लेकिन दबाव की भाप निकलनी शुरू हो गई।

आखिरकार बर्फ पिघली। बातचीत का दौर शुरू हुआ। एडीजी वीके सिंह की मौजूदगी में प्रशासन और किसान प्रतिनिधियों के बीच वार्ता हुई। वार्ता के बाद मीडिया के सामने उनका बयान न पूरी तरह सख्त था, न जरूरत से ज्यादा नरम। शब्द तौले हुए, लहजा संतुलित। यही वजह रही कि एक बारगी माहौल शांत हुआ। हालांकि सरकार के लिए 17 दिसंबर अब भी अग्निपरीक्षा है। कलक्टर कार्यालय के सामने किसानों की महापंचायत का एलान है। राकेश टिकैत जैसे बड़े किसान नेताओं के आने की संभावना है। साफ है, टकराव टला है, खत्म नहीं हुआ।

एडीजी वीके सिंह को एक बारगी सरकार के लिए ‘संकटमोचक’ माना जा रहा है। उन्होंने हनुमानगढ़ व श्रीगंगानगर जैसे किसान बाहुल्य क्षेत्र को आंदोलन की आग में झुलसने से बचा लिया है। वे शनिवार को जयपुर जाते वक्त सालासर भी गए और संकटमोचक बालाजी का दर्शन कर रवाना हो गए और छोड़ गए चर्चाओं का दौर। आखिर कौन हैं यह अफसर, जिनके आने भर से हालात की दिशा बदलने लगी? दरअसल, राजस्थान पुलिस के एडीजी वी.के. सिंह वह अफसर हैं, जिन्होंने चीटिंग और पेपर लीक गैंग को जड़ से खत्म करने का संकल्प लिया। उन्हें राष्ट्रपति पुलिस पदक से सम्मानित किया जा चुका है। भजनलाल सरकार ने उन्हें पेपर लीक माफिया पर नकेल कसने की अहम जिम्मेदारी सौंपी।

एसओजी ही नहीं, ट्रैफिक, भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो और एडीजी क्राइम जैसे अहम पदों पर रहते हुए भी वीके सिंह ने अपनी अलग कार्यशैली से पहचान बनाई। सख्ती के साथ-साथ ग्राउंड रियलिटी की समझ, यही उनका प्रशासनिक फार्मूला रहा है। शायद यही वजह है कि राज्य सरकार ने उन्हें अब एडीजी कानून-व्यवस्था की जिम्मेदारी सौंपी है।

व्यक्तिगत जीवन में वीके सिंह खुद को ‘एक्सीडेंटल पुलिस अफसर’ कहते हैं। बिहार के चंपारण से आने वाले सिंह ने बीटेक और एमटेक के बाद शिक्षक बनने का मन बना लिया था। किस्मत ने वर्दी पहना दी। उनकी प्रेरणा का स्रोत कोई किताब या ओहदा नहीं, बल्कि आम आदमी है। वे कहते हैं, ‘जब एक ईमानदार व्यक्ति को संघर्ष करते देखते हैं, तो वही बेहतर काम करने की ताकत देता है।’

टिब्बी प्रकरण में भी यही नजर आया। लाठी और कानून के बीच, सख्ती और संवाद के बीच, वीके सिंह ने संतुलन साधा। यह संतुलन ही फिलहाल सरकार के लिए राहत बना है। आगे क्या होगा, यह आने वाले दिन तय करेंगे। लेकिन इतना तय है, टिब्बी की तपती ज़मीन पर अगर हालात एक बारगी थमे हैं, तो उसके पीछे वीके सिंह की प्रशासनिक सूझबूझ की छाप साफ दिखती है।




