




भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
देश के 15वें उपराष्ट्रपति के चुनाव के लिए 9 सितंबर यानी आज मतदान जारी है। संसद भवन के भीतर सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक वोटिंग चली और सबसे पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपना मत डाला। कुल 781 सांसद इस चुनाव में हिस्सा ले रहे हैं, जिनके वोट से यह तय होगा कि अगले पांच वर्षों तक देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद किसके पास होगा। इस बार मुकाबला एनडीए उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन और इंडिया गठबंधन के प्रत्याशी बी. सुदर्शन रेड्डी के बीच है। उम्र के लिहाज से भी यह चुनाव दिलचस्प है, 68 वर्षीय राधाकृष्णन बनाम 79 वर्षीय रेड्डी। संख्याबल साफ तौर पर एनडीए के पक्ष में है। लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर उनके पास 422 वोट बताये जा रहे हैं, जबकि विपक्षी गठबंधन रेड्डी के समर्थन में लगभग 319 सांसदों को साथ लेकर खड़ा है। यह आंकड़ा दर्शाता है कि जीत लगभग तय है, लेकिन भारतीय राजनीति में गुप्त मतदान अक्सर चौंकाने वाले नतीजे दे चुका है।

इस चुनाव के सियासी मायने केवल सत्ता की गिनती तक सीमित नहीं हैं। दरअसल, यह भविष्य की राजनीति और विपक्ष की एकजुटता का भी इम्तिहान है। केसीआर की पार्टी बीआरएस और ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी ने खुद को इस चुनाव से अलग कर लिया है। यह कदम सत्तापक्ष और विपक्ष की रणनीति पर सवाल उठाता है। यदि ये दल सत्तापक्ष व विपक्ष के साथ रहते, तो आंकड़ों में थोड़ी और मजबूती आती। वहीं, अकाली दल जैसे छोटे पर अहम राजनीतिक दल ने पंजाब में बाढ़ की स्थिति का हवाला देते हुए वोट से दूरी बनाई है।

दूसरी ओर, एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने खुलकर इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार को समर्थन देने का ऐलान किया है। वहीं, वाईएसआरसीपी के 11 सांसदों ने एनडीए उम्मीदवार के पक्ष में वोट डालने का निर्णय किया है। इन रुखों से साफ है कि क्षेत्रीय दलों का रुझान राष्ट्रीय राजनीति की धारा को प्रभावित करता है। यह भी संकेत मिलता है कि विपक्षी गठबंधन के भीतर अभी भी विश्वास और सामंजस्य की कमी है।

सियासी दृष्टि से इस चुनाव का परिणाम चाहे पहले से अनुमानित क्यों न हो, लेकिन इसके दूरगामी असर होंगे। एनडीए यदि यह चुनाव आसानी से जीतता है, तो यह 2024 के आम चुनाव के बाद राज्यसभा में भी उनके प्रभाव को और मजबूत करने वाला होगा। वहीं, विपक्ष की राजनीति पर इसका कोई असर नहीं पड़ने वाला।

काबिलेगौर है, पूर्व उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के अचानक इस्तीफे के बाद यह चुनाव और भी अहम बन गया है। धनखड़ का कार्यकाल 2027 तक था, लेकिन स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने पद छोड़ दिया। अब नए उपराष्ट्रपति के सामने न केवल राज्यसभा के सभापति की भूमिका निभाने की जिम्मेदारी होगी, बल्कि राजनीतिक टकराव के इस दौर में संतुलन साधने की चुनौती भी होगी।

संक्षेप में कहा जाए तो यह चुनाव केवल राधाकृष्णन और रेड्डी के बीच की प्रतिस्पर्धा नहीं है। यह विपक्ष और सत्तापक्ष की ताकत का मापक है। 781 सांसदों की इस वोटिंग से यह स्पष्ट हो जाएगा कि भारतीय राजनीति में किसका पलड़ा भारी है और आने वाले वर्षों में सत्ता और विपक्ष का समीकरण किस दिशा में आगे बढ़ेगा। गुप्त मतदान से क्रॉस वोटिंग की संभावना जरूर बनी रहती है, लेकिन फिलहाल तस्वीर यही कहती है कि उपराष्ट्रपति का पद एनडीए के खाते में ही जाएगा।





