



भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान भाजपा की बहुप्रतीक्षित प्रदेश कार्यकारिणी आखिरकार 27 नवंबर को सामने आ गई। संगठन में लंबे समय से चल रही खींचतान, क्षेत्रीय संतुलन और जातीय समीकरणों के बीच तैयार हुई इस टीम ने कई पुराने चेहरे हटाकर कार्यकर्ताओं को आगे बढ़ाने का स्पष्ट संकेत दे दिया। कुल 34 नामों वाली इस नई लिस्ट में बीकानेर संभाग की जोरदार हिस्सेदारी रही। इसमें आठ नेताओं को जगह मिली, जो साफ बताती है कि पार्टी इस भूगोल को हल्के में नहीं ले रही।
सबसे चर्चित नियुक्तियों में दो नाम खास रहे, पूर्व मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी को उपाध्यक्ष और कैलाश मेघवाल को महामंत्री बनाया गया। टीटी की नियुक्ति राजनीतिक रूप से दिलचस्प है क्योंकि भजनलाल मंत्रिमंडल में मंत्री बनने के बाद वे उपचुनाव हार गए थे। ऐसे में उनका संगठन में फिर से प्रवेश पार्टी के भीतर बनाए गए विश्वास का संदेश देता है। वहीं कैलाश मेघवाल एससी मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष के रूप में पहले से सक्रिय रहे हैं। वे बीजेपी प्रदेश मंत्री का भी जिम्मा संभाल चुके हैं। उन्हें महामंत्री बनाकर पार्टी ने स्पष्ट किया कि सामाजिक समीकरणों का संतुलन अभी भी केंद्रीय प्राथमिकता में है।

नई कार्यकारिणी में 9 उपाध्यक्ष, 4 महामंत्री, 7 मंत्री, 1 कोषाध्यक्ष, 1 सह-कोषाध्यक्ष, 1 प्रकोष्ठ प्रभारी और 7 प्रवक्ता शामिल किए गए हैं। सबसे बड़ा राजनीतिक संकेत यह है कि मूल पदों, उपाध्यक्ष, महामंत्री और मंत्रीकृमें किसी भी विधायक या सांसद को शामिल नहीं किया गया। यह प्रयोग संगठन में ‘पूर्णकालिक’ कार्यकर्ताओं की प्राथमिकता का झंडा उठाता दिखता है। पार्टी फिलहाल ऐसा माहौल बनाने में जुटी है जिसमें जनप्रतिनिधि शासन पर ध्यान दें और संगठन का ढांचा पूरी तरह कार्यकर्ताओं पर टिका रहे।

दिलचस्प यह भी है कि सिर्फ दो विधायकों कैलाश वर्मा (बगरू) और कुलदीप धनकड़ (विराटनगर) को प्रदेश प्रवक्ता बनाया गया है। यह भी पार्टी की नई रणनीति के अनुरूप है कि संदेश देने का काम युवा और तेजतर्रार चेहरों को सौंपा जाए, जबकि राजनीतिक नियुक्तियों और मैदान की राजनीति के लिए विधानमंडलीय नेताओं को बाद में इस्तेमाल किया जाए। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी गर्म है कि कई वर्तमान विधायक-सांसदों को आगे चलकर मंत्रिमंडल विस्तार या बोर्ड-निगमों में एडजस्ट किया जा सकता है।

नए चेहरों की बात करें तो सुरेंद्र पाल सिंह टीटी के साथ बिहारीलाल विश्नोई, छगन माहुर, हकरू माईड़ा, अल्का मुंदड़ा और सरिता गेना उपाध्यक्ष के रूप में शामिल किए गए हैं। वहीं नाहर सिंह जोधा, मुकेश दाधीच और डॉ. ज्योति मिर्धा को दोबारा उपाध्यक्ष बनाकर संदेश दिया गया है कि अनुभव और निरंतरता को भी सम्मान मिलेगा।

पद-संरचना में एक बड़ा बदलाव प्रमोशन के रूप में नजर आया। भूपेंद्र सैनी और मिथिलेश गौतम को मंत्री से महामंत्री तक उछाल दिया गया है। एससी मोर्चा प्रमुख कैलाश मेघवाल को महामंत्री बनाना और एसटी मोर्चा अध्यक्ष नारायण मीणा को मंत्री बनाना सामाजिक प्रतिनिधित्व की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है। भाजपा का यह प्रयोग हाल के वर्षों में एक पैटर्न जैसा बनता जा रहा है, मोर्चों पर मजबूत प्रदर्शन करने वालों को मुख्यधारा की कार्यकारिणी में बड़ी जिम्मेदारी देना।

महामंत्रियों की संख्या भी इस बार कम कर दी गई। पहले पाँच थे, अब चार हैं, और उनमें भी पिछली कार्यकारिणी से केवल श्रवण सिंह बगड़ी को दोबारा मौका मिला। दामोदर अग्रवाल, जितेंद्र गोठवाल, संतोष अहलावत और ओमप्रकाश भडाणा जैसे चेहरे बाहर कर दिए गए, जो निश्चित रूप से प्रदेश की राजनीति में चर्चा का कारण बनेंगे। इनके न शामिल होने से यह भी स्पष्ट होता है कि संगठन संरचना में बदलाव सिर्फ औपचारिक नहीं है, बल्कि गुटीय राजनीति को संतुलित करने का एक गंभीर प्रयास है।

सबसे उल्लेखनीय बदलाव प्रवक्ता, मीडिया, आईटी और सोशल मीडिया प्रभारी को पहली बार प्रदेश कार्यकारिणी का हिस्सा बनाना है। डिजिटल राजनीति और जनसंचार की नई धुरी को देखते हुए भाजपा ने संगठनात्मक ढांचे में इसे औपचारिक स्थान दे दिया है। यह कदम बताता है कि आने वाले वर्षों में पार्टी का फोकस सिर्फ जमीनी कार्यकर्ता ही नहीं, बल्कि डिजिटल नेट्वर्किंग पर भी बराबर रहेगा।

कुल मिलाकर मदन राठौड़ की यह टीम संगठन के भीतर एक स्पष्ट संदेश भेजती है, पार्टी पुराने ढर्रे से हटकर युवा, कार्यकर्ता-आधारित और संरचनात्मक रूप से व्यापक मॉडल की ओर बढ़ रही है। साथ ही, यह भी साफ है कि कई पुराने और असंतुष्ट चेहरे अभी आगे और हलचल मचाएंगे। राजस्थान भाजपा की यह नई संरचना आने वाले पंचायत, निकाय और अंततः लोकसभा चुनाव की दिशा में पार्टी की रणनीतिक रीढ़ बनेगी।



