







भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
हनुमानगढ़ जिले का प्रशासन जब खाद्य सुरक्षा योजना के पात्र और अपात्र परिवारों की परतें खोलने निकला, तो ऐसे-ऐसे चौंकाने वाले तथ्य सामने आए कि हर कोई हैरान रह गया। 40 लोग ऐसे मिले जिनका सालाना टर्नओवर 25 लाख रुपये है, पर वे भी सरकारी गेहूं पर नज़र गड़ाए बैठे हैं। इतना ही नहीं, 1,800 ऐसे व्यक्ति भी चिन्हित हुए जिनकी वार्षिक आय 6 लाख रुपये है, लेकिन वे महीने भर का 20-25 किलो अनाज बाज़ार से खरीदने में असमर्थ ‘दिखाई’ देते हैं। सबसे चौंकाने वाला खुलासा यह कि जिले में 6,764 लोग मोटर वाहन के मालिक हैं, परंतु मुफ्त के गेहूं का मोह छोड़ने को तैयार नहीं।

जिला प्रशासन ने गिव-अप अभियान के तहत अब तक 14,489 लोगों को नोटिस जारी करने की प्रक्रिया शुरू कर दी है। पीलीबंगा तहसील में रसद विभाग की टीम ने हाल ही में कई अपात्र राशन कार्डधारकों की सूची बनाई।

जांच में पाया गया कि रामस्वरूप कुलडिया (काफी कृषि भूमि के मालिक), हरजीत पुत्र लाल सिंह और बादल सिंह (चौपहिया वाहन मालिक) होते हुए भी खाद्य सुरक्षा योजना का लाभ ले रहे थे। प्रवर्तन निरीक्षक पुरुषोत्तम भाटीवाल और मनीष सिंगला ने इन्हें नोटिस जारी कर साफ कहा कि यदि वे निर्धारित समय में नाम नहीं हटाते, तो अब तक लिए गए समस्त गेहूं का भुगतान ₹30.57 प्रति किलो की दर से वसूला जाएगा।

जिला रसद अधिकारी सुनील घोड़ेला बताते हैं कि सक्षम परिवारों को स्वयं आगे बढ़कर योजना से बाहर होने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। अब तक केवल पीलीबंगा तहसील में 9,972 लोगों ने खुद ही खाद्य सुरक्षा से नाम कटवाया है। राज्य सरकार ने इसकी अंतिम तिथि 31 अक्टूबर 2025 तय की है।

डीएसओ के मुताबिक, जिनके पास चौपहिया वाहन हैं, जिनकी वार्षिक आय 6 लाख से अधिक है या जीएसटी रिटर्न 25 लाख से अधिक है, उन्हें संदिग्ध सूची में शामिल किया गया है। यदि वे खुद नाम नहीं हटवाते, तो नोटिस देकर वसूली की जाएगी।

कौन-सा क्षेत्र सबसे आगे?
सर्वे रिपोर्ट के अनुसार, जिले में सबसे अधिक अपात्र नोहर तहसील (3,089 लोग) में पाए गए। वहीं, हनुमानगढ़ तहसील (2,994), भादरा (2,906), पीलीबंगा (1,671), टिब्बी (1,491), संगरिया (1,208) और सबसे कम रावतसर (1,110 लोग) सूची में दर्ज हैं।

असली दोषी कौन?
इस पूरे मामले ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है, क्या दोष केवल उन परिवारों का है जिन्होंने सालों से गरीबों का हक छीना? या फिर उतना ही बड़ा दोष प्रशासनिक तंत्र का भी है, जो सब कुछ जानते हुए भी ऐसे लोगों को पात्र सूची में शामिल करता रहा? क्या विभाग के पास पात्रता सूत्री की स्पष्ट नियमावली नहीं थी? या फिर जानबूझकर नियमों को ताक पर रखकर आर्थिक रूप से सक्षम लोगों को गरीबों की पंक्ति में खड़ा कर दिया गया?

गिव-अप अभियान का संदेश
गिव-अप अभियान केवल एक प्रशासनिक कार्रवाई भर नहीं है, बल्कि यह समाज के सामने नैतिकता का आईना भी है। सवाल यह है कि जिनके पास लाखों-करोड़ों की आय है, वे भी यदि गरीबों के हिस्से का गेहूं हड़पने लगें, तो सचमुच जरूरतमंदों तक राहत कैसे पहुंचेगी?
फोटो एआई से जेनरेट प्रतीकात्मक

