



एमएल शर्मा.
सरकारी ‘सिस्टम’ की लापरवाही का नतीजा ही कहा जाएगा जो मासूमों की ‘नरबलि’ लगातार हो रही है और सरकार मौन साधना में लीन है। कहते है जब रोम जल रहा था तब नीरो बांसुरी बजा रहा था। कमोबेश, ऐसे ही हालात इस समय राजस्थान सूबे में दिखाई दे रहे हैं। आखिर कब तक आमजन अपना सब्र बांध कर रखें?
हुक्मरानों, कुछ तो सोचो, समझो और अमल करो। प्रदेश के नौनिहाल क्रूर काल के शिकंजे में फंसते जा रहे हैं और आप अपनी कुर्सी बचाने की कवायद में जुटे हुए हो। आम आदमी की सहनशीलता कब तक बरकरार रहेगी?
विदित रहे, जिस दिन सब्र का बांध टूटा, उस दिन श्वास लेने के लिए भी स्थान नहीं मिलेगा। झालावाड़ जिले की घटना से जनमानस उबरा ही नहीं था कि अचानक जैसलमेर जिले में स्कूल का गेट गिरने से हुई मासूम की मौत ने कोढ में खाज का काम किया है। शास्त्रों में गरीबों को गणेश का दर्जा दिया गया है। लेकिन इस गणेश की सार संभाल करने में पूरी तरह विफल सूबे का लोकतंत्र आखिरकार क्या रहा है? यह एक प्रश्न बन चुका है। इतना ही नहीं, उदयपुर जिले में स्कूल के एक कमरे की छत का प्लास्टर अकस्मात भर भरा कर गिर पड़ा। गनीमत रही कि उसके नीचे बैठे 45 स्कूली विद्यार्थियों को ज्यादा चोटे नहीं आई। इसे ‘सिस्टम’ की लापरवाही बताएं अथवा लोकतंत्र की ‘संवेदनहीनता’ कि प्रदेश भर में जर्जर जीर्ण शीर्ण विद्यालय भवनों की संख्या 8 हजार से ज्यादा है और उनके पुनर्निर्माण संबंधी पत्रावलियां हुक्मरानों की मेज पर पड़ी धूल फांक रही है। हिंदुस्तान का भावी भविष्य खौफ के साए में जीने को मजबूर है। चारों ओर खतरे के बेशुमार बादल मंडरा रहे हैं पर सुनने वाला कोई नहीं। शायद, सियासतदानों ने अपने कानों में तेल डालकर रूई ठूंस ली है और वह भी भर भर कर। अरे जिम्मेदारों, कुछ तो ख्याल करो, अपने उत्तरदायित्व को निभाओ।
स्मरण रहे, यदि जनता अपने आप पर उतारू हो गई तो ना भागने को जगह मिलेगी ना सिर छुपाने को। मौजूदा हालातो के परिपेक्ष्य में देखा जाए तो प्रदेश में ‘वेंटिलेटर’ पर पड़े स्कूल भवनों की सार संभाल या इनका पुनर्निर्माण होना अति आवश्यक है। एक तरफ तो साक्षरता संबंधी नारे लगाते हो, वहीं दूसरी ओर नियमित विद्यालयों की सुध लेने की फुर्सत ही नहीं। यह दोहरा चाल, चरित्र, चेहरा जनता चुनाव में बेनकाब कर देगी। कुछ हासिल नहीं होगा। अब तो जरूरी यही बनता है कि अपना दायित्वबौद्ध समझे व प्रदेश में दिन-ब-दिन हो रही ऐसी घटनाओं को रोकने की दिशा में व्यापक इंतजाम करें। बदइंतजामी अब आवाम सहन नहीं करेगी। विडंबना है कि स्कूली विद्यार्थियों को मौत अपने शिकंजे में ले रही है और सियासतदान कुर्सी कुर्सी खेल रहे हैं।
सिर्फ एक सवाल, क्या कुर्सी ही सब कुछ है? कुर्सी के आगे आपकी संवेदना निरुत्तर हो चुकी है ? अरे, सवाल ही नहीं उठता। ऐसा होने ही नहीं देंगे। पर बेचारी जनता जनार्दन,इसकी तकदीर में लगता है केवल आंसू बहाना ही लिखा है। पर हमें यह लकीर मिटानी है, खत्म करनी है। जरूरी है कि इस दिशा में जमकर काम करें और भारत को एक जबदस्त राष्ट्र बनाएं। सबको सन्मति दे भगवान।
-लेखक पेशे से अधिवक्ता व समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं
