


गोपाल झा
राठीखेड़ा आज ग़ुस्से में है। गांव का माहौल गरम है। लोग साफ कह रहे हैं, विकास चाहिए, जहर नहीं। हनुमानगढ़ में फिलहाल उद्योग नहीं। कोई ऐसा इलाका नहीं, जो पांच हजार लोगों को रोजगार दे सके। ऐसे में एथेनॉल प्लांट की बात बड़ी लगती है, पर डर भी बड़ा है। लोगों को शक है, हवा बिगड़ेगी। पानी खराब होगा। यही डर आंदोलन बन गया। पंद्रह महीनों तक लोग धरने पर बैठे रहे। साफ बोल दिया, प्लांट नहीं चाहिए।

सरकार का रुख टेढ़ा है। बात करने के बजाय दबाव बना रही है। पुलिस तैनात कर रही है। जोर-जबरदस्ती का खेल चल रहा है। लोग इसे ‘राजहठ’ कह रहे हैं। किसान नाराज़ हैं। ग्रामीण दुखी हैं। माहौल बिगड़ रहा है। विधायक अभिमन्यु पूनिया भी सामने आ गए। उन्होंने भी विरोध जताया। गिरफ्तारी दी। यह कदम बड़ा संकेत है। जनता की धड़कन वही हैं।

अब समस्या गहरी हो रही है। पुलिसिया पहरा भरोसा नहीं देता। गांव वाले पूछ रहे हैं, पहरे में बनने वाली फैक्ट्री कैसे चलेगी? लोग नाराज़ हों तो उद्योग टिक नहीं सकता। विरोध बढ़ेगा। तनाव फैलेगा। पुलिस और आंदोलन का आमना-सामना होगा। जिले का माहौल बिगड़ेगा। अपराध नियंत्रण प्रभावित होगा। कानून व्यवस्था ढीली पड़ेगी। यह हाल किसी के लिए ठीक नहीं।
उधर कंपनी कह रही है, डर मत रखो। प्लांट साफ चलेगा। तकनीक आधुनिक है। पानी रिसायकल होगा। बाहर कोई गंदगी नहीं जाएगी। सीसीटीवी लगे होंगे। डेटा लाइव जाएगा। प्रदूषण बोर्ड देखेगा। किसानों से फसलों की खरीद होगी। पैसा आएगा। रोजगार बढ़ेगा। सुनने में सब अच्छा लगता है, पर भरोसा जरूरी है। भरोसा बातें नहीं बनाता। भरोसा व्यवहार बनाता है। यह अभी गायब दिख रहा है।

लोगों की एक ही मांग है, पहले समझाओ। पूरा सच बताओ। सबूत दिखाओ। लिखित भरोसा दो। फिर रास्ता खोलो। यह मांग गलत नहीं। यह लोकतंत्र की बुनियाद है। जनता टकराव नहीं चाहती। जनता समाधान चाहती है। सरकार को भी समझना चाहिए, जबरदस्ती का कोई भविष्य नहीं। विकास सहमति से चलता है, टकराव से नहीं।

जिले को उद्योग चाहिए। रोजगार जरूरी है। अर्थव्यवस्था संभालनी है। स्पिनिंग मिल बंद होने का दुख अभी तक है। नया उद्योग स्वागत योग्य है, पर खतरा स्वागत योग्य नहीं। लोग अपने गांव को बीमार होते नहीं देखना चाहते। मिट्टी बचानी है। हवा बचानी है। यह सीधी बात है। जरूरी भी। अब जिम्मेदारी सरकार की है। प्रशासन को आगे आना है। किसान और कंपनी को एक टेबल पर बैठाना है। शांति से बात करनी है। हर शक दूर करना है। तथ्य सामने रखने हैं। व्यवस्था स्पष्ट करनी है। लिखित शर्तें तय करनी हैं। दोनों पक्षों का भरोसा बनाना है। बिना भरोसे कुछ नहीं होगा।

जबरदस्ती की फैक्ट्री कमजोर नींव पर खड़ी होती है। सहमति की फैक्ट्री मजबूत नींव बनाती है। इलाके में खुशहाली लाने की क्षमता रखती है। यहां जरूरत है बातचीत की। समझ की। विश्वास की। तभी उद्योग टिकेगा। तभी गांव सुरक्षित रहेगा। तभी विकास सही मायने में विकास कहलाएगा।

अब समय आ गया है कि सरकार सख्ती छोड़कर संयम दिखाए। जनता को सुने। डर दूर करे। भरोसा बनाए। तभी राठीखेड़ा मुस्कुराएगा। तभी हनुमानगढ़ आगे बढ़ेगा। आगे की बात भी इसी भरोसे में छिपी है; वही विकास की असली कुंजी है।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं



