



भटनेर पोस्ट डेस्क.
23 जुलाई और दोपहर का वक्त। हनुमानगढ़ जंक्शन स्थित हनुमानगढ़ इंटरनेशन स्कूल व संगीतप्रेमियों के लिए बेहद खास। शहर की सांस्कृतिक चेतना को झकझोरने और शास्त्रीय संगीत की पावन सरिता में स्नान कराने के लिए जैसे स्वयं सुरों का देवता अवतरित हुआ हो। अवसर था स्पिक मैके की अनूठी पहल के तहत आयोजित कार्यक्रम का। पद्मश्री बांसुरी वादक पं. रोनू मजूमदार की सांसों से फूंककर निकले सुरों ने उपस्थित जनसमूह को मानो किसी और ही लोक में पहुंचा दिया। विद्यार्थियों और संगीतप्रेमियों की मौजूदगी में जब पं. रोनू मजूमदार ने राग रामदासी मल्हार पर बांसुरी वादन आरंभ किया, तो क्षण भर को सभी मौन हो गए। जैसे आसमान से फुहारें नहीं, स्वर की बूँदें टपक रही हों। उन्होंने बताया कि यह राग मियां मल्हार से प्रेरित है, वही मियां मल्हार जिसे तानसेन ने मुगल सम्राट अकबर के दरबार में प्रस्तुत कर वर्षा की कृपा पाई थी।
परंपरा के इस पवित्र प्रवाह में संत रामदास ने एक नया रंग घोला। मियां मल्हार और गौड़ मल्हार का संगम कर उन्होंने राग रामदासी मल्हार की सृष्टि की, जो शांति, भक्ति और आत्मविभोरता का अनूठा अनुभव कराता है। यह वही राग है जिसे पं. रोनू मजूमदार ने बांसुरी पर पहली बार प्रस्तुत कर एक ऐतिहासिक उपलब्धि हासिल की।
अपने संगीत-साधना के पीछे की कथा साझा करते हुए उन्होंने कहा, ‘मैंने शास्त्रीय संगीत की दीक्षा मध्यप्रदेश के मैहर घराने से ली, जो भारतीय संगीत परंपरा का एक प्रतिष्ठित स्तम्भ है। गायन की शिक्षा पं. लक्ष्मण प्रसाद जयपुरवाले से प्राप्त की, जिन्होंने मेरे भीतर स्वरों के प्रति अनुराग को गहराई दी। बांसुरी की बारीकियों में मुझे मार्गदर्शन मिला पं. विजय राघव राव से, और आगे चलकर भारत रत्न पं. रविशंकर जैसे महान सितारवादक के निर्देशन में मैंने संगीत के असली मर्म को जाना।’

पं. मजूमदार ने श्रोताओं, विशेषकर छात्रों को यह स्पष्ट किया कि शास्त्रीय संगीत केवल कानों की मिठास नहीं, बल्कि आत्मा की चिकित्सा है। आज के तनावपूर्ण समय में जब बच्चे पढ़ाई, प्रतियोगिता और तकनीकी दबाव से जूझ रहे हैं, तब शास्त्रीय संगीत उन्हें मानसिक विश्रांति और संतुलन प्रदान कर सकता है। उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही, ‘हर संगीत तनाव नहीं घटाता। रॉक म्यूजिक का शोर मन में उत्साह नहीं, बल्कि उन्माद पैदा करता है। परंतु शास्त्रीय संगीत एक शांत नदी की तरह बहता है, जो अंतर्मन को स्पर्श करता है।’ पं. रोनू मजूमदार ने ऐसे आयोजनों को अधिक से अधिक बढ़ाने की बात कही और सरकार से आग्रह किया कि वह शास्त्रीय संगीत को स्कूली शिक्षा से जोड़े, ताकि बच्चों में सुरों के प्रति समझ और श्रद्धा विकसित हो।
इस सांगीतिक यात्रा में नगर के अनेक विशिष्टजन सहभागी बने। पं. विजय आनंद शास्त्री, ग्रेफ कमांडेट संजय कुमार, आरसीएमएचओ डॉ. सुनील विद्यार्थी, पार्षद मंजू रणवां, शायर डॉ. प्रेम भटनेरी, डॉ. महेश व्यास, स्पिक मैके हनुमानगढ चैप्टर के समन्वयक मनीष जांगिड़, विक्रम शर्मा, अशोक सुथार, रामनिवास मांडण, स्पिक मैके के समन्वयक भारतेन्दु सैनी, आदित्य गुप्ता, गिरीराज शर्मा, रजनी कौशल शर्मा, प्रिंसीपल रेखा तनेजा एवं पायल गुम्बर जैसे गणमान्यजन की उपस्थिति ने इस आयोजन को एक सामाजिक समरसता का उत्सव बना दिया।

भारतेंदु सैनी ने कहा, ‘इस तरह के आयोजन न केवल बच्चों को भारतीयता से जोड़ते हैं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी अत्यंत उपयोगी हैं। हमें चाहिए कि हम हर स्कूल में कम से कम वर्ष में एक बार ऐसा शास्त्रीय कार्यक्रम अनिवार्य करें।’
मनीष जांगिड़ ने कहा, ‘आज की पीढ़ी को रील्स और रैप के शोर से हटाकर रागों की गहराई से परिचित कराना जरूरी है। रोनू जी जैसे कलाकारों का सान्निध्य सौभाग्य की बात है।’
स्पिक मैके से जुड़े आदित्य गुप्ता ने कहा, ‘हनुमानगढ़ जैसे अर्ध-शहरी क्षेत्र में ऐसा आयोजन होना बेहद प्रेरणादायक है। इससे हमारे बच्चों की अभिव्यक्ति क्षमता और आत्मविश्वास दोनों विकसित होते हैं।’ रामनिवास मांडण ने गद्गद भाव से कहा, ‘शास्त्रीय संगीत आत्मा का भोजन है। ऐसे आयोजन हमें अपनी जड़ों से जोड़ते हैं और हमें सिखाते हैं कि संस्कृति केवल म्यूजियम में रखने की वस्तु नहीं, जीने की शैली है।’
डॉ. सुनील विद्यार्थी के मुताबिक, इस भव्य आयोजन ने यह सिद्ध कर दिया कि बांसुरी की मधुर तानें चाहे कितनी भी प्राचीन हों, उनका प्रभाव आज भी उतना ही नवीन और प्रासंगिक है। सुर, साहित्य और संस्कृति, जब तीनों एक साथ झंकृत हों, तो समाज स्वयं को जानने लगता है। हनुमानगढ़ ने वही आत्म-आलोक देखा।’

