


भटनेर पोस्ट डॉट कॉम.
राजस्थान के न्यायिक कर्मचारियों की सात दिन से जारी हड़ताल ने प्रदेश की अधीनस्थ न्यायपालिका का कामकाज पूरी तरह ठप कर दिया है। करीब 21 हजार कर्मचारी 18 जुलाई से सामूहिक अवकाश पर हैं। उनकी प्रमुख मांग न्यायिक कर्मचारी कैडर का पुनर्गठन है। हड़ताल के चलते न्यायिक कामकाज पर व्यापक असर पड़ा है। वहीं अब राजस्थान हाई कोर्ट ने इस हड़ताल को लेकर सख्त रुख अख्तियार करते हुए इसे “घोर अनुशासनहीनता” करार दिया है। डकैती से जुड़े एक प्रकरण की सुनवाई के दौरान जब यह मुद्दा सामने आया, तो मुख्य न्यायाधीश की पीठ ने नाराजगी जताते हुए कहा कि जब अधिवक्ताओं को हड़ताल का अधिकार नहीं है, तो वेतन पाने वाले न्यायिक कर्मचारी कैसे हड़ताल पर जा सकते हैं? कोर्ट ने सामूहिक अवकाश को अवैध ठहराते हुए आदेश दिया कि सभी कर्मचारी कल सुबह 10 बजे तक ड्यूटी पर लौटें, अन्यथा उनके खिलाफ रेस्मा के तहत सख्त कार्रवाई की जाएगी। मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट किया कि यदि कर्मचारी 28 जुलाई तक काम पर नहीं लौटे, तो रेस्मा लागू किया जा सकता है। कोर्ट ने सभी जिला न्यायाधीशों को वैकल्पिक न्यायिक व्यवस्था सुनिश्चित करने और जिला कलेक्टर से समन्वय कर कामकाज जारी रखने के निर्देश दिए हैं। हड़ताल कर रहे कर्मचारियों की मांग है कि वर्ष 2023 के मई महीने में राजस्थान हाई कोर्ट की फुल बेंच द्वारा पारित कैडर पुनर्गठन प्रस्ताव पर राज्य सरकार कार्रवाई करे। कोर्ट ने भी माना कि यह प्रस्ताव सरकार को भेजा जा चुका है, लेकिन यह एक नीतिगत मसला है, जिसमें न्यायालय सीधे हस्तक्षेप नहीं कर सकता। सुनवाई के दौरान जब रजिस्ट्रार जनरल ने यह बताया कि उन्होंने बिना सचिव से विचार-विमर्श किए हड़ताल की जानकारी दी, तो अदालत ने इस पर भी कड़ा ऐतराज जताया।
रेस्मा: क्या है यह कानून?
रेस्मा एक विशेष कानून है, जिसे राज्य सरकार आवश्यक सेवाओं को बिना रुकावट चलाने के लिए लागू कर सकती है। स्वास्थ्य, बिजली, जलापूर्ति और न्यायिक सेवाओं जैसी व्यवस्थाओं को बाधित करने वाले कर्मचारियों की हड़ताल को इस कानून के तहत अवैध घोषित किया जा सकता है। इसमें जुर्माना, जेल और सेवा से बर्खास्तगी तक की सजा का प्रावधान है।
