


भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहरथाना ब्लॉक स्थित पिपलोदी गांव के सरकारी स्कूल में शुक्रवार को घटित हादसे ने पूरे प्रदेश को हिलाकर रख दिया है। बारिश के बीच एक कमरे में बैठे स्कूली बच्चों पर अचानक छत गिर गई, जिससे 8 मासूम बच्चों की जान चली गई और 27 अन्य गंभीर रूप से घायल हो गए हैं, जिनमें से 8 की हालत नाजुक बताई जा रही है। यह दुर्घटना न सिर्फ एक निर्माणीय लापरवाही का परिणाम है, बल्कि एक बार फिर सवाल खड़े करती है, हमारी प्राथमिक शिक्षा व्यवस्था और उसमें बच्चों की सुरक्षा व्यवस्था आखिर कितनी मजबूत है?
गांववालों ने बताया कि हादसे से पहले सुबह से ही बारिश हो रही थी। आमतौर पर बच्चों को प्रार्थना के लिए मैदान में एकत्र किया जाता था, लेकिन बारिश के कारण उन्हें एक कक्षा में बैठा दिया गया। कक्षा में करीब 35 बच्चे मौजूद थे। कुछ ही देर बाद कमरे की छत अचानक भरभराकर गिर गई। चीख-पुकार मच गई और नन्हें शरीर मलबे में दब गए। ग्रामीण तत्काल दौड़कर मौके पर पहुंचे और हाथों से मलबा हटाकर बच्चों को बाहर निकाला।
मनोहरथाना अस्पताल सूत्रों के अनुसार, पांच बच्चों की मौत घटनास्थल पर ही हो गई थी, जबकि तीन बच्चों ने इलाज के दौरान दम तोड़ा। घायलों को झालावाड़ जिला अस्पताल और कोटा रेफर किया गया है।
इस हादसे को केवल ‘दुर्घटना’ कहना न्याय नहीं होगा। छात्रा वर्षा राज क्रांति ने बताया कि छत से कंकड़ गिर रहे थे। बच्चों ने यह बात बाहर खड़े शिक्षकों को बताई भी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। कुछ ही मिनटों में छत गिर गई। यह बयान एक ऐसी चेतावनी की ओर इशारा करता है, जिसे समय रहते समझा गया होता तो शायद 8 घरों के चिराग आज बुझने से बच जाते।
स्कूल के रसोइया श्रीलाल भील ने बताया कि तीन दिन पहले स्कूल में 10 दिनों की छुट्टी करने की चर्चा चल रही थी, लेकिन एक दिन की छुट्टी के बाद ही स्कूल दोबारा खोल दिया गया। सवाल उठता है, क्या प्रशासन और स्कूल स्टाफ को बच्चों की सुरक्षा से ज्यादा जरूरी कुछ और लग रहा था?
झालावाड़ कलेक्टर अजय सिंह राठौड़ का कहना है कि जिले के जर्जर भवनों की सूची में यह स्कूल शामिल नहीं था। उन्होंने दावा किया कि पहले ही निर्देश जारी किए गए थे कि किसी भी जर्जर भवन में कक्षाएं न लगें। लेकिन सच्चाई ये है कि छत गिर गई, और 8 बच्चों की जिंदगी खत्म हो गई। यदि भवन जर्जर नहीं था, तो इसकी गुणवत्ता और निरीक्षण पर भी गंभीर सवाल खड़े होते हैं।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने हादसे पर शोक प्रकट किया है। संवेदनाओं का स्थान है, पर क्या संवेदनाएं उन परिवारों के आंसू पोंछ पाएंगी, जिन्होंने अपने नन्हें बच्चों को सुबह स्कूल भेजा था और शाम को लाशें घर आईं?
