



भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान की राजनीति में हवा का रुख अब साफ दिखने लगा है। भाजपा खुलकर चुनावी मोड में आ चुकी है। निकाय और पंचायतीराज चुनावों की तैयारियां तेज हो गई हैं और इसी बीच पार्टी ने संगठनात्मक ढांचे को चुस्त-दुरुस्त बनाने की प्रक्रिया भी एक नई रफ्तार पकड़ चुकी है। प्रदेशाध्यक्ष मदन राठौड़ की टीम घोषित होने के बाद अब पार्टी ने जिला प्रभारियों और सह प्रभारियों की नियुक्ति कर दी है। इनमें हनुमानगढ़ जिले के चार नेताओं को मिली नई जिम्मेदारी सबसे ज्यादा सुर्खियों में है। यह कदम सिर्फ नियुक्ति भर नहीं, बल्कि संगठन के भीतर हनुमानगढ़ की बढ़ती पकड़ और राजनीतिक भविष्य की दिशा दोनों का संकेत दे रहा है।

सबसे पहले बात करते हैं नोहर के पूर्व विधायक अभिषेक मटोरिया की। दो बार विधायक रह चुके मटोरिया की संगठन चलाने की क्षमता किसी परिचय की मोहताज नहीं। वे भाषण कला से लेकर जनसंपर्क तक, हर स्तर पर मजबूत पकड़ रखने वाले नेता माने जाते हैं। लगातार दो चुनावी हार ने जरूर उनके राजनीतिक ग्राफ को धीमा किया, लेकिन पार्टी ने उन्हें नज़रअंदाज़ नहीं किया। अब उन्हें सीकर का जिला प्रभारी बनाकर भाजपा ने स्पष्ट संकेत दे दिया है कि मटोरिया की भूमिका अभी खत्म नहीं हुई। उनके समर्थकों में नई ऊर्जा दिख रही है और राजनीतिक कैनवास पर उनका दूसरा दौर शुरू होता नजर आ रहा है।

दूसरा महत्वपूर्ण नाम है पूर्व जिलाध्यक्ष बलवीर बिश्नोई का। बिश्नोई लंबे समय तक जिले की कमान संभाल चुके हैं। उनके कार्यकाल में जिला कार्यालय की नींव रखी गई, निर्माण पूरा भी हुआ। खुद जेपी नड्डा और सतीश पूनिया उनके काम पर मुहर लगा चुके हैं। जिलाध्यक्ष पद से मुक्त होने के बाद उनके पास कोई भूमिका नहीं थी, लेकिन अब उन्हें बीकानेर देहात का जिला प्रभारी बनाकर फिर से संगठन के केंद्र में ला दिया गया है। उनका स्वभाव शांत, लेकिन काम करने का ढंग बेहद व्यवस्थित माना जाता है। भाजपा के लिहाज से ऐसे लोग चुनावी महीनों में सोने पर सुहागा साबित होते हैं।

अब आते हैं तीसरे चेहरे की तरफ। अशोक सैनी, जो भादरा से ताल्लुक रखते हैं और भाजपा युवा मोर्चा में अपनी पहचान पहले ही बना चुके हैं। लगभग एक दशक से संगठन में सक्रिय सैनी, युवा मोर्चा के प्रदेशाध्यक्ष भी रह चुके हैं और बाद में भाजपा प्रदेश इकाई में मंत्री का दायित्व संभाल चुके हैं। तेज दिमाग, फुर्तीलापन और संगठन की नब्ज़ पकड़ने की क्षमता, इन तीन गुणों ने उन्हें अब अलवर उत्तर का जिला प्रभारी बना दिया है। पार्टी की मंशा साफ है, जहाँ युवा ऊर्जा और प्रबंधन की जरूरत है, वहां सैनी मौके पर फिट बैठते हैं। उनकी छवि एक ‘कुशल संगठक’ के रूप में मजबूत हो चुकी है।

चौथा नाम है देवेंद्र पारीक का। आरएसएस पृष्ठभूमि, बजरंग दल का अनुभव, भारतीय जनता युवा मोर्चा व भाजपा जिलाध्यक्ष के रूप में सक्रियता, दो बार पार्षद रहकर जमीनी राजनीति का मजबूत आधार, पारीक का कार्यकाल किसी भी राजनीतिक व्यक्ति के लिए मजबूत रिज़्यूम जैसा है। उन्हें अलवर दक्षिण का जिला सह-प्रभारी बनाकर भाजपा ने साफ कर दिया है कि संगठन के पुराने, मेहनती और भरोसेमंद चेहरों को बिना भूमिका के नहीं छोड़ा जाएगा। पारीक की नियुक्ति उनके राजनीतिक भविष्य के लिहाज से बेहद महत्वपूर्ण मानी जा रही है, क्योंकि संगठनात्मक दायित्व अक्सर आगे की भूमिका तय करने वाला मोड़ बन जाते हैं।

इन चारों नियुक्तियों का राजनीतिक महत्व सिर्फ इतना नहीं कि हनुमानगढ़ को संगठन में प्रतिनिधित्व मिला है। इससे कहीं ज्यादा अहम है संदेश, भाजपा चुनावी मैदान में किसी भी स्तर पर जोखिम नहीं लेना चाहती। अनुभवी नेतृत्व, मजबूत संगठनकर्ता और युवा ऊर्जा, इन तीनों का मिश्रण हनुमानगढ़ को जिस तरह मिला है, वह आने वाले महीनों में पार्टी को मजबूती देगा। पार्टी का यह कदम संकेत दे रहा है कि चुनावी लड़ाई अब दूर नहीं। संगठनात्मक कसावट जितनी मजबूत होगी, नतीजों का रास्ता उतना ही साफ दिखाई देगा। राजस्थान की राजनीतिक हवा हमेशा चक्रवाती रही है, और ऐसे में रणनीतिक नियुक्तियाँ ही नाव को सुरक्षित किनारे तक ले जाती हैं।




