



डॉ. एमपी शर्मा.
आज के तेज़ रफ्तार जीवन में जब हर कोई दौड़ रहा है। लक्ष्य की ओर, ज़िम्मेदारियों की ओर, अपेक्षाओं की ओर। तो मन, शरीर और संबंधों की उपेक्षा सबसे बड़ा नुकसान बन जाता है। ऐसे में खुश रहना, जीवन को सार्थक बनाने की एक ज़िम्मेदारी है। खुद के लिए, परिवार के लिए, समाज के लिए। जब जीवन केवल कर्तव्यों और कामों की एकरस लकीर बन जाता है, तो व्यक्ति भीतर से खाली होने लगता है। मनोरंजन केवल फिल्मों या छुट्टियों का नाम नहीं है। यह वह ऊर्जा है जो हमारे भीतर आनंद भरती है। अगर हम अपने जीवन में हँसी, खेल, संगीत, प्रकृति, या सृजनात्मकता का स्थान नहीं देते, तो हमारी आत्मा मुरझाने लगती है।
एकरूपता और नीरसता को कब और कैसे तोड़ें? जवाब आसान है। हर दिन वही दिनचर्या। सुबह उठो, काम पर जाओ, लौटो, खाओ, सो जाओ। यह ढर्रा आत्मा को धीरे-धीरे खोखला कर देता है। बदलाव जरूरी है, और यह छोटे प्रयासों से आ सकता है, हफ़्ते में एक दिन नए कपड़े, नई जगह, नया स्वाद, नया अनुभव। महीने में एक बार कोई छोटी यात्रा, आउटिंग या अनुभवात्मक गतिविधि। रोज़ की दिनचर्या में 15-30 मिनट का ‘अपना समय’। संगीत, ध्यान, पुस्तक, पेंटिंग और योग।
संबंधों में आनंद क्यों जरूरी है? दरअसल, हम एक सामाजिक प्राणी हैं, लेकिन अकसर सबसे नज़दीकी रिश्तों को ही सबसे ज़्यादा अनदेखा करते हैं। पति-पत्नी के रिश्ते में संवाद, हास्य, और साझा अनुभव रिश्ते को जीवंत बनाते हैं। परिवार के साथ समय बिताना, बच्चों के साथ खेलना, माता-पिता से बातें करना। यह केवल संबंध नहीं, जीवन की नींव मज़बूत करता है। दोस्तों के साथ हँसी-मज़ाक, मुलाकातें, साझा यात्राएँ। मानसिक स्वास्थ्य के लिए वैक्सीन की तरह हैं। सप्ताह में एक दिन, केवल अपने लिए। हम दूसरों के लिए बहुत कुछ करते हैं। परिवार, काम, समाज। लेकिन खुद के लिए क्या करते हैं? हफ़्ते में एक दिन अपने मन, शरीर और आत्मा के लिए होना चाहिए। कोई हॉबी, कोई लंबी नींद, किताब, फिल्म, बागवानी, या बस मौन। उस दिन कोई ‘डेडलाइन’, कोई ‘टारगेट’ न हो। केवल स्वतंत्रता और विश्राम। यह रिस्टार्ट बटन है। अगली सप्ताह की ऊर्जा यहीं से मिलती है।

ऊर्जा केवल भोजन से नहीं, अनुभवों से मिलती है। कुछ तरीकें। जैसे प्रकृति में समय बिताना। पार्क, पेड़, पक्षी, सूरज। ये थैरेपी हैं। मेडिटेशन और गहरी साँसें। मन के कोलाहल को शांत करती हैं। कृतज्ञता और आत्मचिंतन। हर दिन के अंत में 3 चीज़ों के लिए शुक्रिया कहना। रचनात्मकता यानी कुछ नया बनाना, सीखना या लिखना कृ ऊर्जा देता है। डिजिटल डिटॉक्स यानी हफ़्ते में कुछ घंटे बिना फोन या स्क्रीन के रहना।
खुश रहना क्यों जरूरी है? क्योंकि एक खुश व्यक्ति ही सच्चा पति, पत्नी, माता-पिता, डॉक्टर, शिक्षक या नागरिक बन सकता है। खुशी जीवन की वो चिंगारी है जो हमारे भीतर का अंधेरा दूर करती है, और दूसरों की ज़िंदगी भी रोशन कर सकती है। इसलिए खुश रहना कोई स्वार्थ नहीं। यह सेवा है, संकल्प है और जीवन की सुंदरता का उत्सव भी। चलो आज एक मुस्कुराहट के साथ खुद को समय दें, और जीवन को फिर से जीवंत करें।
-लेखक सामाजिक चिंतक और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं
