





निराला झा.
आज की दुनिया तेजी से बदल रही है। हर चीज अब टेक्नोलॉजी पर निर्भर होती जा रही है। खासकर शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव बेहद स्पष्ट है। कोविड काल ने हमारी पढ़ाई-लिखाई की दुनिया ही बदल दी। जिस तरह ऑनलाइन क्लासेज और डिजिटल लर्निंग प्लेटफॉर्म हमारे जीवन में आए, उन्होंने छात्रों और शिक्षकों दोनों की आदतें बदल दी हैं। अब स्टूडेंट्स में क्लास अटेंड करने की इच्छा कम होती जा रही है। जो क्लास में आते हैं, उनमें भी टीचर्स को ध्यान से सुनने की क्षमता घट रही है। उन्हें यह सब उबाउ या पकाउ लगने लगा है।

इस स्थिति पर सोचने की जरूरत है। क्या आने वाली पीढ़ी सिर्फ ऑनलाइन क्लासेज पर निर्भर हो जाएगी? अगर ऐसा हुआ, तो यह हम सब के लिए गंभीर सवाल बन सकता है। भारत जैसे देश में, जहाँ सामाजिक संपर्क और समूह में रहना एक जरूरी हिस्सा है, वहां बच्चों का अकेले ऑनलाइन रहना, बिना समूह के सीखना, चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

शिक्षा किसी भी समाज की रीढ़ होती है। समय के साथ शिक्षा का स्वरूप बदलता रहा है। पहले किताब और कक्षा ही शिक्षा का मुख्य माध्यम थे। अब डिजिटल दुनिया ने इसे पूरी तरह बदल दिया है। स्मार्ट क्लास, ई-लर्निंग और इंटरनेट के माध्यम से छात्र कहीं से भी और कभी भी सीख सकते हैं। इससे उनके सामने दुनिया भर के ज्ञान और अवसर खुल गए हैं। बच्चे आज ज्यादा व्यावहारिक, कुशल और रचनात्मक बन रहे हैं।

लेकिन इस बदलाव के कुछ नकारात्मक पहलू भी हैं। तकनीक पर ज्यादा निर्भर होने से बच्चे लिखने-पढ़ने की आदत से दूर हो रहे हैं। जब वे किताब खोलकर खुद से कुछ लिखते या सोचते थे, अब वे बस स्क्रीन पर क्लिक और स्क्रॉल कर रहे हैं। यह उनके सोचने और समझने की क्षमता पर असर डाल सकता है।

इसके अलावा हर बच्चे के पास समान संसाधन नहीं हैं। कोई अपने घर में लैपटॉप या स्मार्टफोन से पढ़ सकता है, तो कोई नहीं। इससे बच्चों के बीच असमानता बढ़ती है। स्कूल में समान संसाधन और समान अवसर मिलते थे, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा ने इसे चुनौतीपूर्ण बना दिया है।

एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि मूल्य शिक्षा और अनुशासन पर पहले जितना ध्यान दिया जाता था, अब उतना नहीं दिया जा रहा। क्लासरूम में शिक्षक बच्चों के व्यवहार, अनुशासन और सामाजिक संवेदनाओं पर भी ध्यान रखते थे। ऑनलाइन क्लास में यह सब आसान नहीं। सामाजिक संपर्क कम होने से बच्चों का व्यक्तित्व विकास प्रभावित हो सकता है।

फिर भी, हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि तकनीक का उपयोग हमारे लिए कई अवसर भी लेकर आई है। स्टूडेंट्स दुनिया के किसी भी हिस्से में बैठकर किसी विशेषज्ञ से सीख सकते हैं। उन्हें वैश्विक स्तर के ज्ञान तक पहुंच मिल रही है। यह बदलाव उन्हें अधिक कुशल और रचनात्मक बना रहा है।

तो समाधान क्या है? जवाब यह है कि हमें संतुलन बनाए रखना होगा। तकनीक का उपयोग करना आवश्यक है, लेकिन परंपरागत शिक्षण मूल्यों को नहीं भूलना चाहिए। क्लासरूम की गर्मजोशी, शिक्षक और साथी विद्यार्थियों का साथ, संवाद और सहयोग, ये सब ऑनलाइन शिक्षा से पूरी तरह नहीं मिल सकता। इसलिए शिक्षक और अभिभावक दोनों को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे डिजिटल लर्निंग के साथ-साथ किताबों और कक्षा की आदत भी बनाए रखें।

संक्षेप में कहें तो, शिक्षा का स्वरूप बदल रहा है, और यह बदलाव सही भी है और चुनौतीपूर्ण भी। ऑनलाइन शिक्षा ने हमें दुनिया के साथ जोड़ दिया है, लेकिन इसके साथ ही बच्चों में सामाजिकता, अनुशासन और मानवीय संवेदनाओं का विकास भी जरूरी है। अगर हम तकनीक का सही इस्तेमाल करें और परंपरागत मूल्यों को बनाए रखें, तो आने वाली पीढ़ी न सिर्फ स्मार्ट और कुशल होगी, बल्कि समझदार और संवेदनशील भी होगी। यह समझना जरूरी है कि शिक्षा केवल जानकारी देना नहीं है। शिक्षा का उद्देश्य बच्चे को जीवन जीने के तरीके सिखाना, सामाजिक जिम्मेदारियों से जोड़ना और व्यक्तित्व का विकास करना भी है। ऑनलाइन और ऑफलाइन शिक्षा का सही संतुलन ही बच्चों को तैयार, सक्षम और जिम्मेदार नागरिक बना सकता है।


