



ओंकारेश्वर पांडेय.
भारत की राजधानी, जिसे हम भारतवर्ष, माँ भारती कहते हैं, जहाँ महिला शक्ति को दुर्गा, सरस्वती और लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है, वहाँ एक ऐसा क्षण घटित हुआ जिसने पूरे राष्ट्र को असहज कर दिया। एक तालिबानी मंत्री, आधिकारिक राजनयिक दौरे पर दिल्ली आए। उन्होंने प्रेस कॉन्फ्रेंस की। लेकिन महिला पत्रकारों को प्रवेश नहीं दिया गया। यह केवल एक प्रशासनिक चूक नहीं थी। यह हमारे संविधान, हमारी संस्कृति, और उस राष्ट्र की आत्मा पर चोट थी जो सदैव नारी सम्मान को सर्वाेपरि मानता है। हालाँकि तालिबान ने अगले दिन महिला पत्रकारों को आमंत्रित कर एक दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित की, लेकिन जो अपमान हो चुका था, वह छवि पर स्थायी दाग छोड़ गया।

जहाँ कहा गया है, ‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता’ अर्थात जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। वहीं दिल्ली में नारी को दरवाज़े से लौटा दिया गया। यह सरकार की जानकारी में था या नहीं? चाहे जो भी हो, यह उस शासन में हुआ जो स्वयं को हिंदू मूल्यों और संवैधानिक गरिमा का रक्षक कहता है। यह कूटनीति नहीं। यह अपवित्रता है।

9 से 16 अक्टूबर 2025 तक अफगानिस्तान के तालिबान विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी भारत की पहली आधिकारिक यात्रा पर आए। शुक्रवार को उन्होंने विदेश मंत्री एस. जयशंकर से हैदराबाद हाउस में मुलाकात की। यह भारत की विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ है। नई दिल्ली तालिबान से संवाद कर रही है, जबकि उसने अब तक तालिबान शासित अफगानिस्तान को मान्यता नहीं दी है।

भारत की सुरक्षा गणना और बदलती भूराजनीतिक परिस्थितियाँ इस संवाद को समझा सकती हैं। लेकिन समय, प्रस्तुति, और तालिबान के महिला विरोधी रवैये पर चुप्पी कई सवाल खड़े करती है, क्या भारत एक ऐसे शासन को सामान्य बना रहा है जो महिलाओं को मिटा देता है? क्या यह रूस और चीन को संकेत है, जो तालिबान से संपर्क में हैं? या यह प्रशासनिक उदासीनता है, जहाँ संवैधानिक मूल्यों को बलि चढ़ा दिया गया?

वैश्विक आलोचना के बाद तालिबान ने दिल्ली में दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस की, इस बार महिला पत्रकारों को आमंत्रित किया। लेकिन यह कोई सुधार नहीं था, यह एक छवि बचाव की रणनीति थी, जो अंतरराष्ट्रीय निंदा और घरेलू शर्मिंदगी के दबाव में की गई।
इस दूसरी प्रेस कॉन्फ्रेंस में मुत्ताकी से लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध को लेकर सवाल पूछा गया। उन्होंने कहा, यह ‘हराम’ नहीं है, बस ‘थगित’ है, एक ऐसा उत्तर जो तर्क और मानवता दोनों का अपमान करता है।

अगस्त 2021 से तालिबान ने अफगान महिलाओं को सुनियोजित रूप से सार्वजनिक जीवन से बाहर कर दिया, छठी कक्षा के बाद लड़कियों की शिक्षा पर रोक
- महिलाओं को एनजीओ, मीडिया, और सरकारी सेवा से बाहर
- पार्क, जिम, और सैलून तक में प्रवेश वर्जित
- बिना पुरुष अभिभावक के यात्रा पर रोक
- विरोध करने पर जेल, मारपीट, और गायब कर देना आम। संयुक्त राष्ट्र ने इसे लैंगिक रंगभेद कहा है, एक शब्द जो पहले केवल दक्षिण अफ्रीका के नस्लीय भेदभाव के लिए प्रयुक्त होता था.
हाल तक तक, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों में से किसी ने भी तालिबान शासन को मान्यता नहीं दी थी। लेकिन 3 जुलाई 2025 को रूस ने इस परंपरा को तोड़ते हुए तालिबान को आधिकारिक मान्यता दी। इससे पहले अप्रैल 2025 में रूस ने तालिबान को आतंकवादी संगठनों की सूची से हटा दिया था।
बाकी दुनिया, मुस्लिम बहुल देश, कम्युनिस्ट शक्तियाँ, और ऐतिहासिक सहयोगी, अब भी तालिबान को अस्वीकार करती हैं।
ऐसे भेदभावपूर्ण आयोजन को भारत की धरती पर अनुमति देना हमारे संवैधानिक आत्मा का अपमान है,- अनुच्छेद 14: कानून के समक्ष समानता
- अनुच्छेद 15ः लिंग के आधार पर भेदभाव वर्जित
- अनुच्छेद 19(1)ए: अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 21: जीवन और गरिमा का अधिकार
डॉ. भीमराव अंबेडकर ने कहा था, ‘किसी समाज की प्रगति का मापदंड उसकी महिलाओं की स्थिति से होता है।’ और आज? तालिबान मंत्री दिल्ली में भारतीय महिला पत्रकारों को दरवाज़े से लौटा देता है, और सरकार चुप?
भारत की आध्यात्मिक परंपराएँ नारी को दिव्य शक्ति मानती हैं,
-यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता - मातृदेवो भव’: तैत्तिरीय उपनिषद
- ऋग्वेद (10.85.46): ‘जहाँ नारी का सम्मान नहीं, वहाँ सभी कर्म निष्फल होते हैं।’
स्वामी विवेकानंद ने कहा, ‘जब तक नारी की स्थिति सुधरेगी नहीं, तब तक समाज का कल्याण असंभव है।’
भारत की आत्मा केवल सनातन धर्म से नहीं, बल्कि हर प्रमुख धर्म से नारी सम्मान की ज्योति जलाती है,
-इस्लाम: ‘स्वर्ग माँ के पैरों के नीचे है।’ - ईसाई धर्म: ‘वह शक्ति और गरिमा से परिपूर्ण है।’ (नीतिवचन 31ः 25)
- सिख धर्म: ‘नारी से जन्म, नारी से सृष्टि।’ गुरु नानक
- जैन धर्म: चंदनबाला की करुणा और ज्ञान पूजनीय
- बौद्ध धर्म: स्त्रियाँ भी निर्वाण प्राप्त कर सकती हैं।’ गौतम बुद्ध
- पारसी धर्म: अनाहिता देवी को उर्वरता और बुद्धि की देवी माना जाता है
- आदिवासी परंपराएँ: महिलाएँ भूमि, संस्कृति और इतिहास की संरक्षक हैं
- दलित आंदोलन: ‘किसी समाज की प्रगति का मापदंड उसकी महिलाओं की स्थिति से होता है।’ डॉ. अंबेडकर
स्त्रियः सर्वधर्म मूलम्: नारी सभी धर्मों की जड़ है। (अथर्ववेद)
यह घटना केवल आलोचकों को नहीं, बल्कि भाजपा और आरएसएस के कट्टर समर्थकों को भी झकझोर गई। सोशल मीडिया पर सवाल उठे, क्या यही हिंदुत्व है? क्या यही ‘नारी शक्ति’ का सम्मान है? क्या भारत अब तालिबान की विचारधारा को मंच देगा? कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कोई नीति विचलन नहीं, बल्कि नीति का असली चेहरा है, जहाँ नैतिक स्पष्टता को रणनीतिक अस्पष्टता में खो दिया गया है।
एक 12 वर्षीय अफगान लड़की ने यूएन वूमन से कहा ‘मैं किताबें बिस्तर के नीचे छुपाती हूँ। अगर मिल गईं, तो अब्बू को मारेंगे।’ एक महिला पत्रकार ने कहा, “हम नकली नामों से रिपोर्ट करते हैं। हम अपने ही देश में भूत बन चुके हैं।’ जबकि सऊदी अरब अब महिलाओं को गाड़ी चलाने, मतदान करने और काम करने की अनुमति देता है। यहाँ तक कि ईरान और पाकिस्तान में भी महिलाएँ विश्वविद्यालयों और मीडिया में सक्रिय हैं। तालिबान अकेला ऐसा शासन है जो आज भी मध्ययुगीन स्त्रीविरोधी मानसिकता को लागू करता है। और भारत? भारत ने उसे दिल्ली में मंच दे दिया।
जनता के आक्रोश के बाद, भारत के विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि पहली प्रेस कॉन्फ्रेंस अफगान दूतावास द्वारा आयोजित की गई थी, और भारत की कोई भूमिका नहीं थी। लेकिन यही एमईए तो था जिसने 2021 में तालिबान की महिला विरोधी नीतियों की आलोचना की थी।
अब चुप्पी? क्या यह नीति परिवर्तन है? यूएन वैश्विक मंचों पर भारत की नैतिक आवाज़ अब कमजोर? भारत ने हाल ही में महिला आरक्षण विधेयक पारित किया है, और जी20 शिखर सम्मेलन में ‘महिला-नेतृत्व विकास’ का आह्वान किया। भारत ने यूनिसेफ और यूएन वूमन के साथ साझेदारी की है, और वैश्विक स्तर पर लैंगिक समानता का नेतृत्व किया है।
तो अब भारत इस विरोधाभास को दुनिया के सामने कैसे समझाएगा? यह कूटनीति नहीं, यह आत्मसमर्पण है। यह वाम या दक्षिण की बात नहीं। यह धर्म और अधर्म, संविधान और अपमान, और माँ भारती और तालिबानी मानसिकता के बीच का चुनाव है। भारत की आत्मा रणनीतिक चुप्पी से नहीं, बल्कि धर्म, गरिमा और न्याय से परिभाषित होती है।
सरकार को चाहिए था कि वह महिला पत्रकारों के अपमान की खुलकर निंदा करती, और ऐसे किसी भी विदेशी प्रतिनिधिमंडल को आगामी प्रवेश से वंचित करती, जो भारत के संविधान और सांस्कृतिक मूल्यों का अपमान करे। एक ऐसा शासन जो महिलाओं को मिटा देता है, उसे दिल्ली में मंच देनाकृजबकि अपनी ही बेटियों को दरवाज़े से लौटाया जाता हैकृयह केवल कूटनीतिक चूक नहीं, बल्कि सभ्यतागत विश्वासघात है।
यदि भारत अपने मूल्यों की रक्षा नहीं करता, तो वह संयुक्त राष्ट्र, जी20 और वैश्विक मंचों पर महिला अधिकारों के नैतिक नेतृत्व को खो देगा। अब समय है एक स्पष्ट रेखा खींचने का। और कहने का,
भाजपा और तालिबान?
माँ भारती का अपमान,
नहीं सहेगा हिन्दुस्तान।
-लेखक राजनीतिक विश्लेषक और स्तंभकार हैं। सहारा समूह के वरिष्ठ समूह संपादक रहे हैं।


