समस्याओं के युग में अंतिम समाधान हैं श्रीकृष्ण!

डॉ. एमपी शर्मा.
भारतीय संस्कृति की जब बात होती है, तो भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण स्वतः हो उठता है। वे न केवल धार्मिक आस्था के केंद्र हैं, बल्कि एक ऐसे बहुआयामी चरित्र हैं, जो हजारों वर्षों के बाद भी आज के युग में जीवंत, प्रासंगिक और प्रेरणादायी हैं। वे केवल एक ईश्वर नहीं, बल्कि मनुष्य जीवन के हर पक्ष के प्रतीक हैं, एक बालक की चंचलता, एक सखा की निष्ठा, एक प्रेमी की आत्मिकता, एक दार्शनिक की गहराई, एक रणनीतिकार की चतुराई और एक धर्म रक्षक की निर्भीकता। आज जब समाज नीतियों की विफलता, संबंधों के विघटन, नैतिक मूल्यों की गिरावट और मानसिक अस्थिरता से जूझ रहा है, तब श्रीकृष्ण हमारे लिए एक आदर्श, एक मार्गदर्शक और एक जीवनशैली के रूप में सामने आते हैं।
निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक
कृष्ण की मित्रता, सामाजिक पद या आर्थिक हैसियत की मोहताज नहीं थी। सुदामा जैसे निर्धन ब्राह्मण मित्र के लिए उन्होंने महल के द्वार खोले, चरण धोए और अतीत की स्मृतियों में भावुक हो उठे। अर्जुन के लिए वे रथसारथी बने, जबकि स्वयं सम्राट के पद पर सुशोभित हो सकते थे। आज के दौर में जब मित्रता भी ‘नेटवर्किंग’ और ‘स्वार्थ पूर्ति’ का माध्यम बन गई है, तब कृष्ण हमें सिखाते हैं कि सच्चा मित्र वही है जो संकट में साथ दे, समानता और आत्मसम्मान के साथ।


गीता के अमर उपदेशक
महाभारत के रणक्षेत्र में जब अर्जुन मोहवश शस्त्र त्यागने को उद्यत हुए, तब कृष्ण ने उन्हें ‘कर्मयोग’ का मर्म समझाया। गीता के प्रत्येक श्लोक में जीवन का एक मूल मंत्र छिपा है। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन यानी तुम्हारा अधिकार केवल कर्म पर है, फल पर नहीं। आज जब जीवन अनिश्चितताओं, असफलताओं और तनावों से घिरा है, तब यह शिक्षा हमें आंतरिक शांति और संतुलित दृष्टिकोण की ओर ले जाती है।
राधा-कृष्ण का दिव्य संवाद
कृष्ण का प्रेम अध्यात्मिक ऊँचाई लिए हुए है। राधा से उनका संबंध ‘भक्ति’ और ‘समर्पण’ का प्रतिनिधि बन गया। गोपियों के साथ रास भी लौकिक नहीं, बल्कि आत्मिक संवाद का प्रतीक था। आज जब प्रेम मात्र उपभोग और दिखावे का माध्यम बन गया है, तब कृष्ण प्रेम को पुनः एक पवित्र, देहातीत और दिव्य अनुभूति के रूप में प्रस्तुत करते हैं।


जब आवश्यक हो, नियम तोड़ने वाले
कृष्ण ने महाभारत में कई बार परंपरागत नियमों को तोड़ा, चाहे वह भीष्म को शिखंडी के सामने लाना हो या द्रोणाचार्य को पराजित कराने के लिए युक्तियाँ रचना। उन्होंने स्पष्ट कहा, ‘धर्म की रक्षा के लिए यदि अधर्म को हराना है, तो उसके लिए कोई भी साधन न्यायसंगत है।’ जब व्यवस्थाएं भ्रष्टाचार और आडंबर से ग्रस्त हों, तब कृष्ण सिखाते हैं कि केवल नियमों का पालन नहीं, बल्कि सत्य और न्याय की स्थापना ही परम कर्तव्य है।
अधर्म के विनाशक
बाल्यकाल से ही कृष्ण ने पूतना, कंस, कालिया जैसे अत्याचारियों का अंत किया। महाभारत के युद्ध में वे अधर्म के विरुद्ध निर्णायक भूमिका में रहे। वे स्वयं योद्धा नहीं बने, पर युद्ध को धर्मयुद्ध बनाने का संकल्प उन्होंने लिया। आज जब समाज में अपराध, छल और अन्याय बढ़ते जा रहे हैं, तब कृष्ण हमें साहस देते हैं, खामोश रहना पाप है, और अन्याय के विरुद्ध खड़े होना ही सच्चा धर्म है।


बुद्धि, धैर्य और नीति के प्रेरणास्रोत
हर संकट में कृष्ण पांडवों के साथ खड़े रहे। लाक्षागृह की साजिश से लेकर द्रौपदी के चीरहरण तक, उन्होंने हर बार नीति, योजना और परोक्ष संरक्षण से धर्म की रक्षा की। आज जब व्यक्ति जीवन की चुनौतियों से घबराता है, तब कृष्ण हमें धैर्य, विवेक और नीति के साथ समस्याओं का समाधान करने की प्रेरणा देते हैं।
आज की दुनिया में श्रीकृष्ण का संदेश
राजनीति:
नीति, धर्म और जनहित का संतुलन कैसे हो, यह कृष्ण से सीखा जा सकता है।
युवाओं के लिए: करियर, प्रेम और धर्म का समन्वय कैसे करें, इसका समाधान कृष्ण की गीता में है।
सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए: अन्याय के विरुद्ध बिना भय के खड़ा होना, कृष्ण की नीति का अंग है।
हर व्यक्ति के लिए: जीवन में समत्व, भावनाओं पर नियंत्रण, निष्काम कर्म, यही सच्चा योग है।
संक्षेप में, कृष्ण केवल भगवान नहीं, एक जीवनशैली हैं श्रीकृष्ण किसी एक कालखंड या संप्रदाय तक सीमित नहीं। वे वक्त के अनुसार जो आवश्यक हो, वही बनने की कला के प्रतीक हैं। वे कहते हैं, ‘तू जीवन को केवल सह ना, उसे जी।’ आज का युग जो उलझनों, भ्रम और असमंजस से भरा है, वहाँ कृष्ण की गीता, उनका जीवन और उनका व्यवहार हमारे लिए वह प्रकाश स्तंभ है जो अंधकार में राह दिखाता है। कृष्ण को पूजने से अधिक, उन्हें समझने और जीने की आवश्यकता है। तभी उनका जीवन, हमारी जिंदगी को अर्थ और दिशा देगा।
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं

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