


भटनेर पोस्ट डेस्क.
भारतीय शास्त्रीय संगीत मात्र सुरों की परंपरा नहीं, बल्कि आत्मा के मौन संवाद का वह माध्यम है, जो पीढ़ियों को जोड़ता है, चेतना को जागृत करता है और संस्कृति की गहराइयों से साक्षात्कार कराता है। यही कारण है कि जब भी कोई सुरों का साधक अपनी साधना को सार्वजनिक करता है, तो वह प्रस्तुति नहीं, एक आध्यात्मिक अनुभव बन जाती है। ऐसा ही एक अनुभव हनुमानगढ़ की धरती को पुनः मिलने जा रहा है, जब विश्वविख्यात बांसुरी वादक, पद्मश्री पंडित रोनू मजूमदार भारतीय शास्त्रीय संगीत की दिव्य ध्वनि से यहां के युवाओं को मंत्रमुग्ध करेंगे। यह आयोजन देश की प्रतिष्ठित सांस्कृतिक संस्था स्पिक मैके के हनुमानगढ़ चैप्टर द्वारा आयोजित किया जा रहा है।
संस्था के समन्वयक मनीष जांगिड़ ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ को बताते हैं कि यह कार्यक्रम 23 जुलाई, बुधवार को दोपहर 12.15 बजे हनुमानगढ़ इंटरनेशनल स्कूल के सभागार में आयोजित किया जाएगा, जहां पं. रोनू मजूमदार ‘लैक्चर-डेमोस्ट्रेशन’ के रूप में छात्रों से संवाद करते हुए उन्हें भारतीय बांसुरी के सुरों की यात्रा पर लेकर चलेंगे।
समन्वयक मनीष जांगिड़ के मुताबिक, यह कार्यक्रम केवल एक प्रस्तुति नहीं होगा, बल्कि भारतीय सांस्कृतिक परंपरा की एक सजीव झलक होगी, जिसमें छात्र-छात्राएं भारतीय बांसुरी की जादुई ध्वनि का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करेंगे। वे न केवल संगीत के सुरों को सुनेंगे, बल्कि उन्हें महसूस करेंगे, समझेंगे और आत्मसात करेंगे, ठीक वैसे ही, जैसे नदी की धारा को देखकर कोई केवल उसकी सतह नहीं देखता, बल्कि उसकी गहराई से भी साक्षात्कार करता है।

स्पिक मैके के समन्वयक भारतेंदु सैनी ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ से कहते हैं, ‘पं. रोनू मजूमदार की बांसुरी की स्वर-लहरियां केवल संगीत नहीं रचतीं, वे आत्मा के भीतर तक उतरती हैं। उनकी प्रस्तुतियों की विशेषता यह है कि वे संवादात्मक होती हैं, श्रोताओं से बात करती हैं, उन्हें आमंत्रित करती हैं, और फिर सुरों की ऊँचाइयों में उन्हें अपने साथ लिए चलती हैं। यही कारण है कि उनकी कला केवल विद्वानों के लिए सीमित नहीं रहती, वह बच्चों, युवाओं, वृद्धों सहित सभी को समेट लेती है।
भारतेंदु सैनी के मुताबिक, भारतीय शास्त्रीय संगीत के वैश्विक प्रतिनिधि माने जाने वाले पं. रोनू मजूमदार को न केवल पद्मश्री, बल्कि अनेक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिल चुके हैं। उनकी बांसुरी ने विश्व के प्रमुख मंचों पर भारतीय संस्कृति का प्रतिनिधित्व किया है। वे केवल एक कलाकार नहीं, बल्कि भारतीय आत्मा के संवाहक हैं।

भारतेंदु सैनी बताते हैं कि इस आयोजन के पीछे जो भावना है, वह केवल एक सांस्कृतिक कार्यक्रम की नहीं, बल्कि एक आंदोलन की है। एक ऐसे आंदोलन की, जो भारतीय सांस्कृतिक चेतना को आज की पीढ़ी के हृदय में पुनः प्रतिष्ठित करने का प्रयास कर रहा है। इस प्रकार के आयोजन विद्यार्थियों में कलात्मक अभिरुचि, भारतीय संगीत के प्रति संवेदनशीलता और अपनी सांस्कृतिक जड़ों के प्रति गर्व को जन्म देते हैं। यह आज के डिजिटल युग में परंपरा और आधुनिकता के बीच सेतु निर्माण का प्रयास है। आज जब दुनिया तेज़ी से तकनीक की ओर बढ़ रही है, तब कला, संगीत और संस्कृति के माध्यम से आत्मा के स्पर्श की आवश्यकता पहले से कहीं अधिक है। स्पिक मैके का यह आयोजन केवल एक सांस्कृतिक प्रस्तुति नहीं, बल्कि एक जागरण है, एक आह्वान है कि हम अपनी परंपरा को सिर्फ किताबों में नहीं, अनुभव में, जीवन में, धड़कनों में जिएं।

मनीष जांगिड़ के मुताबिक, हनुमानगढ़ की धरती पर जब पं. रोनू मजूमदार की बांसुरी गूंजेगी, तो वह केवल सुर नहीं होंगे, वह हमारी जड़ों की पुकार होगी, हमारी स्मृतियों की आहट होगी, और हमारे भविष्य के लिए एक चेतना का प्रसार होगा। संगीत के सुरों में सजीव होती संस्कृति, यही है स्पिक मैके का संदेश, और यही है इस आयोजन का मर्म।

