




एमएल शर्मा. भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
हनुमानगढ़ जिले के रावतसर कस्बे का आम दुकानदार बेबस, लाचार, अपनी बदहाली पर आंसू बहाने के सिवाय और कर भी क्या सकता है? बेचारा और करे भी क्या? सबसे बड़ा सवाल यह कि आखिर उसे बेचारा बनाया किसने? अरे भाई, और किसने अपनी नगर पालिका ने! जी हां, सही सुना आपने। रावतसर की नगरपालिका के भरोसे भगतसिंह चौक, मटोरिया गैराज व मुख्य बाजार के दुकानदारों के हालात कमोबेश यही बयां करते हैं। विगत दो दशकों से पानी निकासी की दर्जन भर योजनाएं बनी। खूब बजट लगा। पर नतीजा, वही ढाक के तीन पात। मामूली बरसात में ही दुकानदारों की छुट्टी हो जाती है। ग्राहक आना तो दूर, दुकानदारों को भी अपने प्रतिष्ठान तक पहुंचने में खासा मशक्कत करनी पड़ती हैं। यह एक यक्ष प्रश्न बन चुका है। जिसका प्रतिउत्तर शायद किसी के पास नहीं है और ‘हुक्मरान’ देना ही नहीं चाहते। आखिर देंगे भी क्यों? उन्हें कुर्सी की कवायद से फुर्सत मिले तब जनमानस की पीड़ा उनके अंतस तक पहुंचे। आमजन के हितों से ‘सत्ताधीशों’ का कोई सरोकार नहीं है। महज 16 एमएम की बारिश से कस्बे के हालात बद से बदतर हो गए।

अपनी बदहाली पर आंसू बहाता रावतसर अतीत के झरोखे में झांक कर खुद शर्मिंदगी महसूस कर रहा है। इससे ज्यादा लज्जित होने वाली बात क्या होगी कि नगरपालिका कार्यालय भी बरसाती पानी की जद में आ गया। मस्जिद के पीछे स्थित वार्ड वासियों का कहना है कि पूर्व पालिका अध्यक्ष ताराचंद ढालिया का कोटिश धन्यवाद, जो बरसाती पाइप लाइन नगरपालिका से संघर्ष करते हुए वार्ड से निकलने नहीं दी। यदि भूमिगत पाइपलाइन बीच में से जाती तो दो वार्डाे का डूबना लाजिमी ही था। शर्मनाक है कि हनुमानगढ़-किशनगढ़ मेगा हाईवे पर भी 3 सौ मीटर दूरी तक मेगा हाईवे दिखाई ही नहीं दे रही थी। बरसाती पानी बेरोक-टोक प्रवाहित हो रहा था।

सवाल उठता है कि मामूली बरसात में जब कस्बे के हालात इतने बिगड़ गए तो जरा सी तेज बारिश में तो कस्बा जलमग्न हो जाएगा इसमें कोई संदेह नहीं है। मानसून से पहले नगर पालिका मंडल बैठकों का नाटक करता है। लेकिन आमजन के सुझावों को दरकिनार कर अपनी मनमर्जी चलाता है। जिससे नुकसान सिर्फ आम जनता का होता है। पालिका को होता है तो सिर्फ फायदा। कस्बे के निचले वार्डों में हालात हर समय बिगड़ रहे हैं। हालांकि पालिका ने कच्ची बस्ती वाले निवासियों को निकटतम सरकारी भवन में शरण लेने की अपील की है। लेकिन पास के सरकारी भवनों में माकूल इंतजामों का अभाव है। अपना आशियाना उजड़ते देख वंचित वर्ग के लोग केवल आंसू बहाने के अलावा और कर भी क्या सकते हैं? हे पालिका प्रशासन, कुछ तो जनहित में कार्य करो।




