





भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान कांग्रेस के अंदर इन दिनों राजनीतिक हलचल तेज हो गई है। पार्टी के उच्चस्तरीय सूत्रों के अनुसार, कांग्रेस अब ‘पदलोलुप’ नेताओं को बाहर का रास्ता दिखाने की योजना बना रही है और सक्रिय, ईमानदार और समर्पित कार्यकर्ताओं को संगठन में अग्रिम पंक्ति में लाने का मन बना चुकी है। आलाकमान ने इस संबंध में साफ संकेत दिए हैं कि आने वाले समय में जिला अध्यक्षों की नियुक्ति पूरी तरह पारदर्शी और जमीनी फीडबैक पर आधारित होगी।

कांग्रेस ने इसे लागू करने के लिए ‘संगठन सृजन अभियान’ की शुरुआत की है। अभियान के तहत राजस्थान के 50 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति प्रक्रिया में अब 30 ऑब्जर्वर शामिल होंगे। बीकानेर संभाग में भी नए समीकरण बनते दिख रहे हैं। हनुमानगढ़ के लिए अमित विज, श्रीगंगानगर के लिए कुलजीत सिंह नागरा, चूरू के लिए सुभाष चोपड़ा और बीकानेर शहर व ग्रामीण के लिए राजेंद्र लिलोठिया को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है।

इन पर्यवेक्षकों का काम स्थानीय नेताओं और कार्यकर्ताओं से संवाद करना और जिला अध्यक्षों के लिए तीन-तीन संभावित नामों का पैनल तैयार करना है। इसके बाद यह पैनल दिल्ली भेजा जाएगा और केंद्रीय आलाकमान, राहुल गांधी व राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे द्वारा अंतिम मंजूरी दी जाएगी। प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, प्रदेश प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली भी इस प्रक्रिया में अहम भूमिका निभाएंगे।

काबिलेगौर है कि कांग्रेस ने साल 2025 को संगठन निर्माण का वर्ष घोषित किया है। इसकी शुरुआत दिसंबर 2024 में कर्नाटक में आयोजित कांग्रेस अधिवेशन के फैसलों के तहत हुई थी। पहले चरण में यह अभियान गुजरात, मध्यप्रदेश और हरियाणा में लागू किया गया था। अब राजस्थान में इसे बड़े पैमाने पर लागू किया जा रहा है।

राजस्थान में प्रशासनिक दृष्टि से 41 जिले हैं, लेकिन कांग्रेस ने संगठनात्मक स्तर पर 50 जिलों में जिलाध्यक्ष नियुक्त करने का निर्णय लिया है। इनमें 10 नए जिलों में पहली बार जिलाध्यक्ष बनाए जाएंगे, जबकि शेष 40 जिलों में भी नए सिरे से नियुक्तियां होंगी। पार्टी सूत्रों का कहना है कि यह कदम पुराने और निष्क्रिय नेतृत्व को बदलकर संगठन में नई ऊर्जा भरने का प्रयास है।
पार्टी आलाकमान ने साफ निर्देश दिए हैं कि जिलाध्यक्षों की नियुक्ति किसी बड़े नेता की सिफारिश पर नहीं बल्कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की राय और फीडबैक के आधार पर होगी। इस प्रक्रिया को पारदर्शी और समावेशी बनाने के लिए बाहरी राज्यों के वरिष्ठ नेताओं को पर्यवेक्षक नियुक्त किया गया है, ताकि स्थानीय गुटबाजी और दबाव का प्रभाव न्यूनतम रहे।

इस अभियान की घोषणा के बाद से वर्तमान जिलाध्यक्षों में बेचैनी बढ़ गई है। विशेष रूप से उन नेताओं में, जिनका प्रदर्शन आलाकमान की नजर में संतोषजनक नहीं रहा है। माना जा रहा है कि कई पुराने जिलाध्यक्षों को हटाया जा सकता है, जबकि नए और समर्पित चेहरों को संगठन में अवसर दिया जाएगा।

राजस्थान कांग्रेस ने पिछले दो महीनों में संगठन को मजबूत करने के लिए कई प्रयास किए थे, लेकिन 10 जिलों में जिलाध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हो पाई थी। अब आलाकमान ने प्रक्रिया को तेज करने के लिए बाहरी नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी है। इससे न केवल नियुक्ति प्रक्रिया में निष्पक्षता आएगी, बल्कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की भागीदारी भी सुनिश्चित होगी।
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कांग्रेस का यह कदम पार्टी के भीतर नए नेताओं के लिए अवसर पैदा करेगा और संगठन में सक्रियता बढ़ाएगा। साथ ही यह कदम आगामी विधानसभा और लोकसभा चुनावों के लिए संगठन को मजबूत करने की रणनीति का हिस्सा भी माना जा रहा है, हालांकि, राजनीतिक गलियारों में यह भी चर्चा है कि कुछ पुराने और प्रभावशाली नेता नई नियुक्तियों में शामिल नहीं किए जाने पर नाराज हो सकते हैं। वहीं, युवा और सक्रिय कार्यकर्ताओं के लिए यह अवसर एक बड़ा प्लेटफॉर्म साबित होगा। इसलिए संगठन में हलचल और जमीनी स्तर पर चर्चा जोरों पर है। अंततः, कांग्रेस का यह संगठन सृजन अभियान पार्टी के लिए एक परीक्षण और पुनरुत्थान का कदम है। यह देखना बाकी है कि आलाकमान की यह रणनीति पदलोलुप नेताओं को बाहर निकालकर नए और समर्पित चेहरों को मौका देने में कितनी कारगर साबित होती है।



