






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
हनुमानगढ़ जिले के लोगों के लिए जुलाई से सितंबर तक का समय हमेशा चिंता और बेचैनी से भरा रहता है। वजह साफ है, घग्घर नदी। साल 1995 की भयावह बाढ़ को जिलेवासी आज भी नहीं भूले हैं, जब जंक्शन क्षेत्र में घग्घर ने कहर बरपाया था। इसी कारण जैसे ही नदी में पानी की आवक बढ़ती है, लोगों की धड़कनें तेज हो जाती हैं और तबाही का डर सताने लगता है।
इस बार भी हालात कुछ अलग नहीं हैं। हिमाचल प्रदेश और पंजाब में हुई भारी बारिश का असर हनुमानगढ़ तक पहुंचा है और जिले को अलर्ट मोड पर रहना पड़ रहा है। मगर इस बीच प्रशासन की तैयारी पर सवाल खड़े हो गए हैं। सोशल मीडिया पर यूजर्स खुलकर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं।

लोगों का कहना है कि इस बार प्रशासन ने समय रहते सजगता नहीं दिखाई। एडवोकेट रघुवीर वर्मा ने लिखा, ‘प्रशासन बहुत देर से जागा। इस देरी को पूरा कैसे करेंगे? स्थानीय स्तर पर बारिश लगातार हो रही है। सरकार और प्रशासन को गंभीरता दिखानी चाहिए।’

इसी तरह यूजर्स अनिल यादव, हर्ष खोथ और जाहिर हुसैन ने भी प्रशासन को आड़े हाथों लिया। उनका कहना है कि हर साल जुलाई में घग्घर के टाउन-जंक्शन मार्ग स्थित तटबंधों पर मिट्टी से भरे गट्टे रखवाए जाते थे और बिजली बल्ब की लड़ियां लगाई जाती थीं। इससे साफ संकेत मिलता था कि प्रशासन स्थिति को लेकर सतर्क है। मगर इस बार न तो गट्टे दिखे और न ही रोशनी के इंतजाम। लोगों ने इसे ‘प्यास लगने पर कुआं खोदने’ जैसी स्थिति बताया।

नागरिक केवल जिला प्रशासन से ही नहीं, बल्कि नगरपरिषद प्रशासन की कार्यशैली से भी नाराज हैं। उनका आरोप है कि घग्घर के मद में आने वाला बजट कहीं हजम न कर लिया जाए और जमीनी स्तर पर कोई तैयारी न हो। यह अविश्वास बताता है कि प्राकृतिक आपदा से ज्यादा लोग प्रशासनिक लापरवाही से चिंतित हैं।

दूसरी ओर, जिला प्रशासन का दावा है कि हालात पर पूरी नजर रखी जा रही है। जिला कलक्टर डॉ. खुशाल यादव, पुलिस अधीक्षक हरिशंकर, एडीएम उम्मेदीलाल मीणा, एसडीएम मांगीलाल सुथार आदि ने अन्य अधिकारियों के साथ तटबंधों का दौरा किया। संभावित आपदा से निपटने के लिए जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों के साथ बैठक की गई। प्रशासन ने सहयोग का आग्रह किया, जिस पर सभी ने एक स्वर में साथ देने का वादा किया।

इस बीच, एक सितंबर यानी आज सुबह जारी रेगुलेशन के मुताबिक, घग्घर और उसकी शाखाओं में पानी का बहाव काफी ज्यादा दर्ज किया गया। आंकड़ों के अनुसार गुल्लाचिक्का में 43,872 क्यूसेक, खनौरी में 10,700 क्यूसेक, चांदपुर में 12,500 क्यूसेक, ओटू में 17,500 क्यूसेक, घग्घर साइफन में 16,930 क्यूसेक, नाली, बैड में 5,000 क्यूसेक, आरडी 42 जीडीसी में 11,880 क्यूसेक, आरडी 133 जीडीसी में 6,200 क्यूसेक, एसओजी ब्रांच में 1,200 क्यूसेक, आरडी 158 जीडीसी में 6,150 क्यूसेक पानी की आवक हो रही है। ये आंकड़े बताते हैं कि नदी का जलस्तर सामान्य से काफी अधिक है और हालात बिगड़ने की आशंका बनी हुई है।

1995 की बाढ़ से बर्बाद हुआ हनुमानगढ़ आज भी उस त्रासदी को भूल नहीं पाया है। इसलिए घग्घर का नाम आते ही लोगों में डर का माहौल बन जाता है। इस बार भी वही बेचैनी दिख रही है। लोग सोशल मीडिया पर सरकार को घेर रहे हैं और सड़कों पर अफवाहों का बाजार गर्म है। हालांकि, अधिकारियों की सक्रियता और बैठकों ने थोड़ी उम्मीद जरूर जगाई है कि स्थिति नियंत्रण में रखी जा सकेगी। प्रशासन भी बार-बार अफवाहों पर ध्यान न देने की अपील कर रहा है।

दूूसरी ओर, विशेषज्ञ मानते हैं कि नदी के जलस्तर पर नियंत्रण संभव नहीं है, मगर समय रहते सतर्कता बरती जाए तो संभावित खतरे को टाला जा सकता है, नुकसान को कम किया जा सकता है। तटबंधों की मजबूती, गश्त और निगरानी बढ़ाने के साथ-साथ प्रशासन को चाहिए कि पारदर्शिता भी बनाए रखे। तभी लोगों का भरोसा कायम रह सकेगा और घग्घर का खतरा सामूहिक प्रयासों से टाला जा सकेगा।


