



डॉ. एमपी शर्मा.
भारतीय कूटनीति सदैव संयम, संवाद और सह-अस्तित्व की नीति पर आधारित रही है। संस्कृत का नीति-वाक्य ‘शाठम् प्रति शाठ्यम्’ इस शांति-प्रिय संस्कृति में निहित वह चेतावनी है, जो कहती है, धूर्त के साथ धूर्तता से व्यवहार करना ही युक्तिसंगत है। यह नीति न प्रतिशोध है, न नैतिक पतन; यह राष्ट्र की आत्म-सुरक्षा, सम्मान और अखंडता के लिए विवेकपूर्ण और औचित्यपूर्ण उत्तर देने की ऐतिहासिक चेतना है।
भारत के विभाजन के साथ ही पाकिस्तान ने एक ऐसे अस्थिर राष्ट्र की भूमिका अपना ली, जो अपनी आंतरिक विफलताओं को छुपाने के लिए भारत-विरोध को राष्ट्रीय नीति बना चुका है। 1947, 1965, 1971, और 1999 में थोपे गए युद्ध, सीमापार आतंकवाद, पंजाब में खालिस्तानी उग्रवाद और कश्मीर में हिंसा। इन सभी घटनाओं के पीछे पाकिस्तान का प्रत्यक्ष या परोक्ष हाथ रहा है। 26/11, पठानकोट और पुलवामा जैसे हमलों ने यह साफ कर दिया कि यह मात्र गैर-राज्यीय तत्वों की शरारत नहीं, बल्कि पाकिस्तान की सरकारी शह से संचालित योजनाएँ हैं।
भारत ने इन आक्रमणों के बावजूद बार-बार संयम दिखाया, बातचीत की पहल की, समझौते किए। लेकिन बदले में मिला विश्वासघात और पीठ में छुरा। अब भारत की सोच बदल रही है। 2016 में सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में एयर स्ट्राइक भारत के नए दृष्टिकोण का ऐलान थे, अब पीड़ा सहने वाला भारत नहीं, परिस्थितियों को बदलने वाला भारत तैयार है। ये जवाब केवल सैन्य नहीं थे, बल्कि मनोवैज्ञानिक और कूटनीतिक स्तर पर पाकिस्तान को झटका देने वाले थे।
भारत अब पाकिस्तान की ‘छलपूर्ण शांति नीति’ को पहचान चुका है और उसके विरुद्ध हर मोर्चे पर रणनीतिक पहल कर रहा है। एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में पाकिस्तान को वर्षों तक बनाए रखना, उसकी वैश्विक छवि को धूमिल करना, और अब अपने जल संसाधनों की पुनर्समीक्षा, ये सभी कदम इस बात का संकेत हैं कि भारत केवल सीमा पर नहीं, संसाधनों और वैश्विक मंचों पर भी निर्णायक भूमिका निभा रहा है। यह परिवर्तन न केवल सामरिक है, बल्कि एक नैतिक और सांस्कृतिक पुनर्जागरण भी है, जहां भारत अपने इतिहास से प्रेरणा लेकर वर्तमान का मार्ग तय कर रहा है।
जब पड़ोसी देश शांति की भाषा को कमजोरी और संवाद को समर्पण समझे, तब ‘शाठम् प्रति शाठ्यम्’ जैसी नीति ही राष्ट्र के आत्मसम्मान की रक्षा कर सकती है। आज भारत को आवश्यकता ह
शांतिप्रिय लेकिन सजग, संवेदनशील लेकिन साहसी, धैर्यशील लेकिन निर्णायक बनने की। यह समय है संयमित आक्रामकता और सदाचारपूर्ण प्रतिरोध का। यह समय है भारत की नई आवाज़ बनने का, ‘शाठम् प्रति शाठ्यम्।’
-लेखक समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार व आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं
