




भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान की राजनीति में लंबे समय से चली आ रही गुटबाजी और आपसी मतभेदों को पीछे छोड़ते हुए कांग्रेस के दो प्रमुख चेहरे, पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी सीएम सचिन पायलट अब एक नई राजनीतिक एकता की तस्वीर पेश कर रहे हैं। यह दृश्य 11 जून को दौसा में आयोजित श्रद्धांजलि सभा के दौरान देखने को मिला, जहां सचिन पायलट के पिता और पूर्व केंद्रीय मंत्री स्वर्गीय राजेश पायलट की 25वीं पुण्यतिथि पर दोनों नेता एक मंच पर साथ नजर आए। यह केवल एक औपचारिकता नहीं थी, बल्कि पूरे राजस्थान में कांग्रेस कार्यकर्ताओं को एक मजबूत सियासी संदेश देने वाला दृश्य था।
गौरतलब है कि राजस्थान कांग्रेस में गहलोत और पायलट के बीच मतभेद वर्ष 2018 के बाद खुलकर सामने आए थे, जब विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के बाद अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री और पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। इसके कुछ ही समय बाद दोनों नेताओं के बीच नेतृत्व और कार्यशैली को लेकर खींचतान शुरू हो गई थी। वर्ष 2020 में पायलट के नेतृत्व में पार्टी में उभरे बगावती तेवरों ने गहलोत सरकार को संकट में डाल दिया था। हालांकि कांग्रेस हाईकमान के हस्तक्षेप से उस समय संकट तो टल गया, लेकिन दोनों नेताओं के बीच की खाई गहराती रही।

अब जब पायलट और गहलोत ने 7 जून को गहलोत निवास पर मुलाकात की और उसके कुछ दिनों बाद 11 जून को दौसा की श्रद्धांजलि सभा में सार्वजनिक रूप से एक साथ मंच साझा किया, तो इसे कांग्रेस में एक ‘नई शुरुआत’ के रूप में देखा जा रहा है। कार्यक्रम में केवल गहलोत और पायलट ही नहीं, बल्कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा, नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली, पार्टी प्रभारी सुखजिंदर सिंह रंधावा और अन्य वरिष्ठ नेता भी उपस्थित थे। यह एकजुटता आगामी विधानसभा चुनावों से पहले पार्टी के अंदर चल रही कलह को सुलझाने की ओर स्पष्ट संकेत देती है।

राजनीतिक गलियारों में इस मिलन को लेकर उत्सुकता और विश्लेषण जारी है। पायलट खेमे के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री हेमा राम चौधरी ने इसे ‘बहुत सकारात्मक संकेत’ बताते हुए कहा कि अब कांग्रेस पूरी ताकत से चुनावी मैदान में उतर सकेगी।
पत्रकारों से बातचीत में अशोक गहलोत ने अपनी चिर-परिचित मुस्कान के साथ कहा, ‘मैं और पायलट कब अलग थे? हम तो हमेशा साथ हैं और हमारे बीच मोहब्बत भी है। ये सारी खबरें मीडिया की बनावटी हैं।’ वहीं सचिन पायलट ने भी कहा, ‘अब रात गई, बात गई। हमें आगे बढ़ना है। जनता की सेवा करनी है और राजस्थान में कांग्रेस को फिर से मजबूत बनाना है।’
इन बयानों से यह साफ है कि दोनों नेता अब अतीत की कड़वाहट को भूलकर संगठनात्मक मजबूती की ओर बढ़ने को तैयार हैं। यह एकता यदि वास्तविक और स्थायी बनी रहती है, तो निश्चित ही राजस्थान कांग्रेस के लिए आगामी चुनावों में यह एक निर्णायक मोड़ साबित हो सकता है।



