


भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान में नगरीय प्रशासन को अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी और जनोन्मुखी बनाने की दिशा में राज्य सरकार ने एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। मंत्रिमंडलीय उप समिति ने राज्य के सभी 305 नगरीय निकायों के वार्डों के पुनर्गठन को स्वीकृति दे दी है। यह निर्णय राजधानी जयपुर स्थित स्वायत्त शासन विभाग के सभागार में आयोजित मंत्रिमंडलीय उप समिति की समीक्षा बैठक में लिया गया, जिसकी अध्यक्षता नगरीय विकास एवं स्वायत्त शासन विभाग के मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने की।
इस बैठक में जल संसाधन मंत्री सुरेश सिंह रावत, वन राज्य मंत्री संजय शर्मा, और सहकारिता राज्य मंत्री गौतम कुमार दक भी मौजूद रहे। बैठक के दौरान जयपुर, भरतपुर और जोधपुर संभागों के नगरीय निकायों के पुनर्गठन और पुनर्सीमांकन से संबंधित प्रस्तावों पर विस्तृत परीक्षण और गहन मंथन किया गया।
बैठक में यह भी तय किया गया कि भविष्य में सभी निकायों के वार्डों के पुनर्गठन से जुड़े प्रस्ताव स्वायत्त शासन विभाग द्वारा मंत्रिमंडलीय उप समिति को भेजे जाएंगे। समिति से औपचारिक स्वीकृति मिलने के बाद संबंधित निकाय के लिए नई अधिसूचना जारी की जाएगी। इसका उद्देश्य निकायों के प्रशासनिक क्षेत्र को जनसंख्या और भौगोलिक जरूरतों के आधार पर संतुलित और न्यायसंगत बनाना है।
गौरतलब है कि वर्ष 2019 में तत्कालीन सरकार द्वारा राज्य के 196 नगरीय निकायों में वार्ड सीमांकन और पुनर्गठन की प्रक्रिया अपनाई गई थी। उस समय 10 प्रतिशत विचलन का मानक निर्धारित किया गया था, किंतु वास्तविकता में 128 निकायों में यह विचलन मानक से काफी अधिक पाया गया, जो कि कुल का लगभग 65 प्रतिशत है। इससे नागरिकों में असंतोष और प्रशासन में भ्रम की स्थिति बनी रही।
नगरीय विकास मंत्री झाबर सिंह खर्रा ने इस निर्णय को राजस्थान की शहरी व्यवस्था के लिए एक निर्णायक मोड़ बताया। उन्होंने कहा-‘निकायों के पुनर्गठन की यह प्रक्रिया न केवल प्रशासन को अधिक संगठित बनाएगी, बल्कि इसे उत्तरदायी, पारदर्शी और सहभागी भी बनाएगी। इससे स्थानीय शासन की पहुंच आमजन तक सशक्त रूप से सुनिश्चित होगी और शहरी सुशासन के हमारे संकल्प को नई गति मिलेगी।’ मंत्री ने स्पष्ट किया कि इस पुनर्गठन से प्रत्येक नागरिक को समान प्रतिनिधित्व मिलेगा, जिससे विकास कार्यों में समानता, संसाधनों के समुचित वितरण और शिकायत निवारण की प्रक्रिया अधिक प्रभावी बन सकेगी।
सरकार का मानना है कि यदि वार्डों की सीमाएं जनसंख्या, भौगोलिक विस्तार, सामाजिक-सांस्कृतिक विविधता और बुनियादी जरूरतों को ध्यान में रखकर तय की जाएं, तो इससे शहरी निकाय स्थानीय विकास योजनाओं को अधिक संवेदनशीलता और प्राथमिकता से लागू कर पाएंगे। यह फैसला नवगठित व पुरानी निकायों दोनों के लिए लागू होगा। राजस्थान सरकार का यह निर्णय शहरी शासन में नीति, पारदर्शिता और भागीदारी आधारित मॉडल को मजबूत करने की दिशा में एक ऐतिहासिक पहल के रूप में देखा जा रहा है। यह न केवल वर्तमान विसंगतियों को दूर करेगा, बल्कि शहरी नागरिकों को उनके अधिकारों और सेवाओं के प्रति अधिक सशक्त और सजग भी बनाएगा। अगले चरणों में जब अधिसूचनाएं जारी होंगी और वास्तविक सीमांकन लागू होगा, तब यह देखा जाएगा कि यह आक्रामक राजनीति से बचते हुए किस हद तक आमजन की अपेक्षाओं पर खरा उतरता है।
