




डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत की अर्थव्यवस्था का सबसे बड़ा और सक्रिय वर्ग ‘मध्यम वर्ग’ है। यही वह वर्ग है जो देश की खपत, निवेश और बचत, तीनों को गति देता है। मगर आज यही मध्यम वर्ग महंगाई की मार, स्थिर आय, बढ़ते खर्च और त्यौहारों के दबाव के बीच अपने जीवन को संतुलित करने की जद्दोजहद में लगा हुआ है।

पिछले कुछ वर्षों में आवश्यक वस्तुओं के दाम लगातार बढ़े हैं। खाद्य तेल, सब्जियां, दूध, पेट्रोल, बिजली बिल और स्कूल फीस तक, सबकी कीमतों में बढ़ोतरी ने मध्यम वर्ग के बजट को झकझोर दिया है। पहले जो परिवार हर महीने कुछ बचत कर पाते थे, अब वही परिवार मासिक खर्च पूरा करने में भी कठिनाई महसूस करते हैं।

महंगाई का सबसे बड़ा असर इस वर्ग की ‘वैकल्पिक खर्च क्षमता; पर पड़ता है, यानी बाहर खाना, कपड़े खरीदना या मनोरंजन जैसी चीज़ें सबसे पहले कम करनी पड़ती हैं। परिणामस्वरूप जीवन का आनंद घटता है और मानसिक तनाव बढ़ता है।
भारत में त्यौहार सिर्फ धार्मिक अवसर नहीं बल्कि सामाजिक-आर्थिक गतिविधियों का केंद्र हैं। दीपावली, होली, नवरात्र, रक्षाबंधन या ईद, हर त्यौहार पर उपहार, कपड़े, सजावट और खानपान पर खर्च अनिवार्य सा हो जाता है।

महंगाई के बावजूद परिवार अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा और बच्चों की खुशी के लिए खर्च करने से पीछे नहीं हटते। ई-कॉमर्स साइटों की सेल और आकर्षक विज्ञापन भी उपभोग की मनोवृत्ति को बढ़ाते हैं। यह स्थिति मध्यम वर्ग को ‘क्रेडिट कार्ड’ और ‘ईएमआई’ की जाल में धकेल रही है, जिससे दीर्घकालिक वित्तीय असंतुलन उत्पन्न हो रहा है।

आज का बाजार भावनाओं पर खेलना बखूबी जानता है। ‘फेस्टिव ऑफर’, ‘बोनस सेल’, ‘कैशबैक’ जैसे शब्द मध्यम वर्ग को लुभाते हैं, और लोग अक्सर अपनी वास्तविक आवश्यकता से अधिक खर्च कर बैठते हैं। सोशल मीडिया पर दिखता उपभोग का प्रदर्शन इस प्रवृत्ति को और तीव्र करता है। वास्तविक आय में वृद्धि न होने के बावजूद ‘दिखावे की अर्थव्यवस्था’ मध्यम वर्ग को कृत्रिम उपभोग में फंसा रही है, जिससे बचत दर घट रही है।

महंगाई और बढ़ते खर्च के बीच टिके रहने के लिए मध्यम वर्ग को आय बढ़ाने की दिशा में सक्रिय होना पड़ेगा।
तकनीकी युग में नई स्किल जैसे डिजिटल मार्केटिंग, डेटा एनालिटिक्स, ग्राफिक डिजाइन या भाषा अनुवाद जैसी क्षमताएं अतिरिक्त आय का साधन बन सकती हैं। केवल बचत ही नहीं, बल्कि म्यूचुअल फंड, एसआईपी, शेयर बाजार, या सरकारी योजनाओं में विवेकपूर्ण निवेश भी आय का स्रोत बन सकता है। पार्ट-टाइम ऑनलाइन ट्यूशन, कंटेंट राइटिंग से भी अतिरिक्त आमदनी संभव है। खर्चों की प्राथमिकता तय करना, अनावश्यक खरीद से बचना और बजट बनाना जरूरी है।

सरकार और नीति-निर्माताओं के लिए भी यह आवश्यक है कि मध्यम वर्ग के हितों को नीति-निर्माण में प्राथमिकता दी जाए। कर राहत, गृह ऋण पर सब्सिडी, शिक्षा और स्वास्थ्य पर सरकारी सहयोग इस वर्ग की आर्थिक स्थिति को सशक्त बना सकते हैं।
साथ ही, उपभोक्ताओं को स्वयं भी ‘स्मार्ट खर्च’ की आदत विकसित करनी चाहिए। जैसे त्यौहारों पर सीमित खर्च, घरेलू उत्पादों को प्राथमिकता, और भविष्य की सुरक्षा के लिए निवेश बढ़ाना।

मध्यम वर्ग न तो गरीब है और न ही अमीर। लेकिन देश की आर्थिक रीढ़ निश्चित रूप से यही वर्ग है। महंगाई और त्यौहारों के बीच संतुलन बनाना कठिन है, परंतु सही वित्तीय योजना, आत्मनियंत्रण और आय बढ़ाने के नए रास्तों से यह वर्ग फिर से अपनी आर्थिक स्थिरता पा सकता है। समय आ गया है कि ‘कमाई से अधिक दिखावे’ की संस्कृति को त्यागकर ‘संतुलित जीवनशैली’ की ओर लौटें, क्योंकि असली समृद्धि केवल खर्च में नहीं, बल्कि समझदारी में छिपी होती है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं


