



सुनील कुमार महला.
यदि आप हनुमानगढ़ और गंगानगर जिले में रह रहे हैं, तो जऱा संभलिए। ज़ी हां! यह बिल्कुल सच है कि आप दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में सांस ले रहे हैं, जिनमें राजस्थान के हनुमानगढ़ और गंगानगर भी शामिल हैं। प्रदूषण हमारे देश की एक अति गंभीर व संवेदनशील समस्या बनता चला जा रहा है। इस रिपोर्ट से उत्तर भारत में वायु गुणवत्ता का बिगड़ता संकट उजागर हुआ है। न केवल हमारा देश भारत बल्कि प्रदूषण की समस्या आज पूरी दुनियाभर में गहराती चली जा रही है। तमाम एहतियाती उपायों और जागरूकता अभियानों, कार्यक्रमों के बावजूद, हवा की गुणवत्ता(एयर क्वालिटी) में सुधार के संकेत कम ही नजर आ रहे हैं। सच तो यह है कि वर्तमान में दुनिया के कई बड़े और प्रभावशाली देश, जिनमें अमेरिका, चीन और भारत शामिल हैं, प्रदूषण के बढ़ते स्तर से जूझ रहे हैं।
दुनिया के बीस सबसे प्रदूषित शहरों में जिन 13 भारतीय शहरों को शामिल किया गया है उनमें राजस्थान के इन दोनों जिलों का नंबर है। राजस्थान के हनुमानगढ़ , गंगानगर के अलावा प्रदूषित शहरों में असम का बर्नीहाट, दिल्ली, मुल्लांपुर (पंजाब), फरीदाबाद, लोनी, नई दिल्ली, गुरुग्राम, ग्रेटर नोएडा, भिवाड़ी, मुजफ्फरनगर और नोएडा को भी शामिल किया गया है। गौरतलब है कि असम के बर्नीहाट में पीएम 2.5 का स्तर 128 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया है। आंकड़ों से पता चलता है कि असम में बर्नीहाट अब दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर बन गया है, जिसने दिल्ली के पिछले रिकॉर्ड को भी पीछे छोड़ दिया है, जो अभी भी दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है। गौरतलब है कि एनसीआर में आने वाले हरियाणा के दो शहर फरीदाबाद और गुरुग्राम सबसे प्रदूषित शहरों में टॉप-10 में हैं। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट 2024 के अनुसार, फरीदाबाद वैश्विक स्तर पर पांचवें स्थान पर है, जहाँ पीएम 2.5 की औसत सांद्रता 101.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है, जबकि गुरुग्राम 87.5 के वार्षिक औसत पीएम 2.5 स्तर के साथ 10वें स्थान पर है।कितनी बड़ी बात है कि भारत के एक दो नहीं बल्कि 13 शहर दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहरों में शामिल हैं। इनमें मेघालय का बर्नीहाट सबसे ऊपर है और हमारे देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली दुनिया की सबसे प्रदूषित राजधानी बनी हुई है। आइक्यू एयर की रिपोर्ट के अनुसार, भारत दुनिया के शीर्ष पांच सबसे प्रदूषित देशों में शुमार रहा है। देश में पीएम 2.5 कणों की औसत मात्रा 50.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज की गई, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की सुरक्षित सीमा (5 माइक्रोग्राम) से दस गुना अधिक है। जी हां, दस गुना अधिक और यह आंकड़ा दर्शाता है कि भारत में प्रदूषण की स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है और स्वास्थ्य पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है। दुनिया में सिर्फ ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, बहामास, बारबाडोस, ग्रेनेडा, एस्टोनिया और आइसलैंड ही ऐसे देश हैं, जहां की वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन के तय मानकों के भीतर पाई गई है ।यानी इन देशों में लोग साफ-सुथरी (स्वच्छ) हवा में सांस ले रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, चाड और बांग्लादेश दुनिया के सबसे प्रदूषित देशों में पहले और दूसरे स्थान पर रहे। यहां वायु प्रदूषण का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की सुरक्षित सीमा से 15 गुना अधिक दर्ज किया गया है ।इससे इन देशों में स्वास्थ्य समस्याएं बढ़ने का खतरा और अधिक गहरा गया है।वास्तव में, पीएम 2.5 प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा है।

11 मार्च 2025 को जारी स्विस एयर क्वालिटी टेक्नोलॉजी कंपनी आइ क्यू एयर की ‘वर्ल्ड एयर क्वालिटी रिपोर्ट-2024’ में यह चौंकाने वाला खुलासा किया गया है। गौरतलब है कि स्विस कंपनी आइक्यू एयर हवा की क्वॉलिटी मापने वाली एक प्रमुख कंपनी है। वर्ष 2024 में भारत दुनिया का पांचवां सबसे प्रदूषित देश रहा था और वर्ष 2023 में भारत इस लिस्ट में तीसरे नंबर पर था। गौरतलब है कि रिपोर्ट में यह बात कही गई है कि वर्ष 2024 में भारत में पीएम 2.5 की मात्रा में 7 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। वर्ष 2024 में यह औसतन 50.6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही, जबकि वर्ष 2023 में यह 54.4 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर थी।फिर भी, यह बहुत ही महत्वपूर्ण है कि दुनिया के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से छह भारत में हैं। देश की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में लगातार प्रदूषण का स्तर ऊंचा दर्ज किया गया है और यहां सालाना औसत पीएम 2.5 की मात्रा 91.6 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर रही, जो कि वर्ष 2023 के 92.7 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर के आंकड़े के मुकाबले लगभग अपरिवर्तित है। यहां पाठकों को यह भी जानकारी देता चलूं कि स्विट्जरलैंड की एयर क्वालिटी मॉनिटरिंग फर्म आइक्यू एयर की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, पूरी दुनिया में सिर्फ सात देश ही ऐसे हैं जहां की हवा विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के मानकों के अनुरूप साफ पाई गई है जबकि दूसरी ओर, भारत समेत कई देशों में वायु प्रदूषण का स्तर चिंताजनक रूप से ऊंचा बना हुआ है।यह भी उल्लेखनीय है कि पीएम 2.5 हवा में मौजूद 2.5 माइक्रोन से छोटे सूक्ष्म प्रदूषण कणों को कहते हैं। ये कण मानव फेफड़ों और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं, जिससे सांस लेने में तकलीफ, हृदय रोग और यहां तक कि कैंसर भी हो सकता है। इसके स्रोतों की यदि बात की जाए तो इसमें क्रमशः वाहनों से निकलने वाला धुआं, औद्योगिक उत्सर्जन और लकड़ी या फसल अवशेषों का जलना शामिल है। बहरहाल, विशेषज्ञों और जानकारों के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण जंगलों में आग लगने की घटनाएं बढ़ रही हैं, जिससे वायु प्रदूषण और अधिक गंभीर हो गया है।

आज दक्षिण एशिया और दक्षिण अमेरिका के कई हिस्से इस वजह से गंभीर वायु संकट का सामना कर रहे हैं और इस संबंध में यदि समय रहते ठोस व सकारात्मक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में यह संकट और गहरा सकता है।कुल मिलाकर, 35 प्रतिशत भारतीय शहरों ने सालाना पीएम 2.5 का स्तर विश्व स्वास्थ्य संगठन की 5 माइक्रोग्राम प्रति क्यूबिक मीटर की सीमा से 10 गुना अधिक दर्ज किया। कहना चाहूंगा कि भारत में वायु प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए एक गंभीर खतरा बना हुआ है, जिससे अनुमानित जीवन प्रत्याशा 5.2 वर्ष कम हो जाती है। उल्लेखनीय है कि पिछले साल प्रकाशित लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ स्टडी के अनुसार, वर्ष 2009 से वर्ष 2019 तक हर साल भारत में लगभग 15 लाख मौतें पीएम 2.5 प्रदूषण के लंबे समय तक संपर्क में रहने से हुईं। यह ठीक है कि भारत ने पिछले कुछ समय से वायु गुणवत्ता डेटा संग्रह में प्रगति की है, लेकिन आज भी यहां इसको लेकर पर्याप्त कार्रवाई का अभाव है और अब वह समय आ गया है जब हमें इस संबंध में एक्शन लेने की जरूरत है। वायु प्रदूषण को कम करने के कुछ उपाय हैं, जिन्हें अपनाकर वायु प्रदूषण को काफी हद तक कम किया जा सकता है। मसलन, आज जरूरत इस बात की है कि बायोमास को एलपीजी से बदला जाए।

इससे मानव स्वास्थ्य में सुधार होगा और बाहरी वायु प्रदूषण भी कम होगा। विशेषकर बड़े शहरों में पब्लिक ट्रांसपोर्ट का विस्तार और कुछ खास कारों पर जुर्माना लगाने से भी वायु प्रदूषण को कम करने में काफी मदद मिल सकती है। वास्तव में इसके लिए प्रोत्साहन और जुर्माने का मिला-जुला तरीका जरूरी है। इतना ही नहीं, हमारे देश में आज उत्सर्जन कानूनों का सख्ती से पालन कराना भी बेहद जरूरी है।उद्योगों और निर्माण स्थलों को नियमों का पालन करना चाहिए और शॉर्टकट अपनाने के बजाय उत्सर्जन में कटौती के लिए उपकरण लगाने चाहिए। कहना ग़लत नहीं होगा कि तेजी से औद्योगीकरण,अनियंत्रित वाहनों से होने वाला उत्सर्जन और व्यापक निर्माण गतिविधियां उनकी खराब वायु गुणवत्ता के प्रमुख कारण हैं। इतना ही नहीं,खराब सार्वजनिक परिवहन बुनियादी ढांचा बढ़ते प्रदूषण के स्तर का एक प्रमुख कारण बना हुआ है।ऐसे में जरुरत इस बात की है कि विकास और पर्यावरण में सामंजस्य स्थापित करते हुए रणनीतियां बनाई जाएं ताकि विकास के साथ हमारे देश की पारिस्थितिकी और पर्यावरण प्रभावित न होने पाएं। देश में हरियाली बढ़ाने के प्रयासों को और अधिक तेज किया जाना चाहिए।औद्योगिक उत्सर्जन पर प्रतिबंध और बेहतर कचरा प्रबंधन सहित कई उपाय लागू किए जा सकते हैं। कहना चाहूंगा कि आज भी प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए स्वच्छ वायु कार्य योजनाओं के तहत उठाए जा रहे कदम पर्याप्त नहीं हैं, इन पर अतिरिक्त ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। कहना चाहूंगा कि यदि हम वायु प्रदूषण से निपटने के लिए गंभीर व संवेदनशील हैं,तो सार्वजनिक परिवहन को सर्वाेच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। इतना ही नहीं,आज इलैक्ट्रिक जैसे ऊर्जा कुशल वाहनों के उपयोग पर हमारा ध्यान अधिक होना चाहिए। हमें यह चाहिए कि हम श्गोइंग ग्रीनश् पर विचार करें।

यहां पाठकों को बताता चलूं कि श्गोइंग ग्रीनश् का अर्थ पर्यावरण के अनुकूल और पारिस्थितिक रूप से जिम्मेदार जीवन शैली का अभ्यास करने के साथ-साथ पर्यावरण की रक्षा और प्राकृतिक संसाधनों को बनाए रखने में मदद करने के लिए निर्णय लेना है। इन अभियानों में टिकाऊ, पर्यावरण के अनुकूल जीवन शैली जीने का विकल्प शामिल है। यह मिट्टी, जलमार्ग और हवा में प्रवेश करने वाले प्रदूषकों को कम करने में मदद करता है। हरित होने से वायु प्रदूषण और पर्यावरण प्रदूषकों में कमी आती है। इसके अलावा हम सौर ऊर्जा को बढ़ावा दें। हमेशा रिसाइकिल करने योग्य उत्पादों का उपयोग करें तथा प्लास्टिक की थैलियों से बचें। प्लास्टिक जल्दी से विघटित नहीं होता है।इसके बजाय कागज़ के थैलों का उपयोग एक बेहतर विकल्प है, क्योंकि वे आसानी से विघटित हो जाते हैं और पुनर्चक्रणीय होते हैं।गौरतलब है कि पुनर्चक्रण(रिसाइक्लिंग)योग्य वस्तुओं के साथ निर्माण से वायु और जल प्रदूषण को कम करने के साथ-साथ जलविद्युत की बचत होती है। दूसरे शब्दों में कहें तो रीसाइकिल और पुनः उपयोग की अवधारणा न केवल संसाधनों का संरक्षण करती है और उनका विवेकपूर्ण उपयोग करती है, बल्कि वायु प्रदूषण के लिए भी सहायक है।उपयोग में न होने पर लाइट बंद कर दें, क्यों कि बिजली उत्पादन संयंत्र जीवाश्म ईंधन का उपयोग करते हैं, जो वायु प्रदूषण में महत्वपूर्ण योगदान देता है।एसी के इस्तेमाल में बहुत ज़्यादा ऊर्जा की खपत होती है और बहुत ज़्यादा गर्मी निकलती है जो पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इसलिए एसी के स्थान पर पंखे का उपयोग किया जा सकता है।घरों और कारखानों में लगी चिमनियों से निकलने वाली गैसें वायु प्रदूषण के लिए बेहद खतरनाक हैं और हवा की गुणवत्ता को गंभीर रूप से नुकसान पहुंचाती हैं। अगर खपत कम नहीं की जा सकती तो कम से कम फिल्टर का इस्तेमाल किया जाना चाहिए, इससे हवा में अवशोषित होने वाली हानिकारक गैसों के प्रभाव को कम करने में मदद मिलेगी। इसके अलावा पटाखों के अत्यधिक उपयोग,रसायन युक्त उत्पादों के उपयोग से भी बचा जाना चाहिए।हमें यह चाहिए कि हम अपने आस-पास के लोगों को यह जानकारी दें कि वे स्वच्छ वायु पहल में कैसे योगदान दे सकते हैं और उन्हें सभी विभिन्न तरीकों के बारे में ज्यादा से ज्यादा शिक्षित व जागरूक करें। वास्तव में, वायु प्रदूषण शिक्षा सतत विकास के बारे में हमारी सोच, विश्वास और निर्णय को चुनौती देने के लिए आवश्यक ज्ञान और व्यवहार को बढ़ावा देती है। अंत में यही कहूंगा कि वायु प्रदूषण को कम करना किसी एक व्यक्ति विशेष, सरकार या प्रशासन विशेष की ही जिम्मेदारी नहीं है। वास्तव में यह हम सभी की सामूहिक जिम्मेदारी है।
-लेखक स्वतंत्र स्तंभकार व साहित्यकार हैं
