






डॉ. एमपी शर्मा.
मनुष्य का जीवन केवल भौतिक सुख-सुविधाओं तक सीमित नहीं है। वह सदैव सत्य की तलाश में भटकता रहा है। कभी प्रयोगशालाओं में, कभी ध्यान की गहराइयों में, तो कभी दार्शनिक प्रश्नों की गलियों में। विज्ञान ने बाहरी संसार को समझने के उपकरण दिए, दर्शन ने अस्तित्व के सवाल खड़े किए, और धर्म ने आचरण व जीवन की दिशा निर्धारित की। भारतीय परंपरा ने इन तीनों को अलग-अलग राहों का यात्री न मानकर, एक ही यात्रा के सहयात्री माना है। यही कारण है कि गीता और वेदान्त आज भी केवल भारत ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व में मार्गदर्शक की भूमिका निभा रहे हैं।

सत्य की तलाश अलग-अलग रास्तों से हुई है। विज्ञान ने प्रकृति को समझने की कोशिश की, दर्शन ने ‘मैं कौन हूँ?’ जैसे प्रश्न उठाए, और धर्म ने जीवन को दिशा और मूल्य दिए। तीनों अलग हैं, लेकिन जीवन के लिए तीनों जरूरी हैं।

विज्ञान का आधार है तर्क और प्रयोग। क्यों ग्रह चलते हैं, क्यों बारिश होती है, दवाई कैसे काम करती है, इन सवालों के जवाब विज्ञान देता है। यह हमें बाहरी दुनिया के बारे में बताता है और हमारी सुविधा बढ़ाता है। लेकिन विज्ञान का क्षेत्र केवल बाहर की चीज़ों तक सीमित है।

दर्शन हमें सोचने पर मजबूर करता है, ‘मैं कौन हूँ?’ जीवन का उद्देश्य क्या है? सत्य और असत्य क्या है? भारत में वेदान्त और बौद्ध दर्शन, और पश्चिम में प्लेटो और कांट जैसे दार्शनिकों ने इन सवालों पर विचार किया। दर्शन मन को गहराई देता है।
धर्म का मतलब केवल पूजा-पाठ नहीं है। धर्म जीवन की दिशा और नैतिकता सिखाता है। गीता में कहा गया है, स्वधर्मे निधनं श्रेयः।’ यानी अपने कर्तव्य का पालन ही श्रेष्ठ है।

उपनिषद का संदेश है, सत्य बोलो, धर्म का पालन करो। धर्म आस्था पर टिका है, लेकिन इसमें तर्क और अनुभव भी शामिल हैं। बुद्ध ने कहा था, ‘जो सत्य तुम्हें अपने अनुभव से लगे, वही स्वीकार करो।’

क्या धर्म सिर्फ श्रद्धा है? अक्सर लोग धर्म को अंधविश्वास से जोड़ते हैं, पर असली धर्म तर्क, अनुभव और अभ्यास पर आधारित है। ध्यान और योग आज विज्ञान से भी प्रमाणित हैं कि ये मन और शरीर दोनों को स्वस्थ बनाते हैं। धर्म का नैतिक आचरण समाज में शांति और न्याय लाता है।

गीता और वेदान्त केवल भारत तक सीमित नहीं रहे। स्वामी विवेकानंद ने इन्हें पूरे विश्व तक पहुँचाया। वेदान्त का अद्वैत सिद्धांत (आत्मा और ब्रह्म एक हैं) आज आधुनिक विज्ञान और दर्शन में भी चर्चा का विषय है। गीता का कर्मयोग। कर्म करते हुए भी संतुलित और शांत रहने की शिक्षा। आज हर इंसान के लिए उपयोगी है। ओपेनहाइमर और श्रोडिंगर जैसे वैज्ञानिक भी गीता और वेदान्त से प्रभावित हुए।

विज्ञान हमें बाहर की दुनिया को समझना सिखाता है, दर्शन हमें सोचने और प्रश्न पूछने की ताकत देता है, और धर्म हमें जीवन जीने की दिशा बताता है। तीनों मिलकर ही जीवन को संपूर्ण बनाते हैं। भारतीय परंपरा का यही संदेश है, सत्य केवल प्रयोगशाला में नहीं, बल्कि आत्म-अनुभव, ध्यान और नैतिक आचरण में भी पाया जा सकता है। यही कारण है कि गीता और वेदान्त आज भी पूरे विश्व में प्रासंगिक और सम्मानित हैं।
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं


