




भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
राजस्थान की राजनीति में इन दिनों कुछ खास पक रहा है, और इस पकवान का सबसे चटपटा मसाला हैं, पूर्व मंत्री अमीन खान। कभी कांग्रेस के कद्दावर नेता माने जाने वाले अमीन खान अब एक नई राजनीतिक दिशा की ओर बढ़ते दिख रहे हैं, और उनकी हालिया गतिविधियों ने पश्चिमी राजस्थान की राजनीति में खलबली मचा दी है। भाजपा नेता राठौड़ से भेंट। जयपुर में पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के आवास पर शिष्टाचार भेंट के बाद अमीन खान सीधे भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ के दरवाजे पर पहुंचे। यह मुलाकात केवल ‘नमस्कार’ तक सीमित नहीं रही, बल्कि राजनीतिक गलियारों में इसने भूचाल ला दिया। राठौड़ और अमीन खान की इस मुलाकात ने यह स्पष्ट कर दिया कि अमीन खान सिर्फ पुराने रिश्तों की सुध नहीं ले रहे, बल्कि नए सियासी समीकरण तलाशने में जुट चुके हैं। एक तरफ कांग्रेस से नाराज़गी, दूसरी ओर भाजपा नेताओं से बढ़ती नजदीकियां, ये संकेत कम से कम ‘राजनीतिक पलायन’ के बीज तो बो ही रहे हैं। अमीन खान को कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में पार्टी प्रत्याशी का विरोध करने और निर्दलीय को समर्थन देने के आरोप में छह साल के लिए पार्टी से निष्कासित कर दिया था। मगर यह निष्कासन केवल एक कार्रवाई नहीं, बल्कि एक आंतरिक सियासी टकराव का परिणाम भी माना जा रहा है। अमीन खान लगातार कांग्रेस नेता हरीश चौधरी पर आरोप लगा रहे हैं कि उन्होंने हाईकमान पर दबाव डालकर उन्हें बाहर करवाया। यह भी कहा जा रहा है कि चौधरी और अमीन के बीच मतभेद अब किसी से छुपे नहीं हैं। हाल ही में बाड़मेर में जब अमीन खान अपने समर्थकों के साथ कांग्रेस के दिग्गजों से मिलने पहुंचे, तो अचानक नेताओं के काफिलों का रूट बदल गया। यह ‘रूट चेंज’ समर्थकों को नागवार गुजरा और उन्होंने इसे एक साज़िश करार देते हुए हरीश चौधरी और स्थानीय सांसद पर आरोपों की झड़ी लगा दी।
गहलोत से भेंट, पुराना रिश्ता या नई रणनीति?
इससे पहले जयपुर में अमीन खान ने अशोक गहलोत से मुलाकात की थी। ये भेंट क्या कांग्रेस में वापसी की एक आखिरी कोशिश थी या पुरानी दोस्ती का ‘सांकेतिक सलाम’? इस पर भी राजनीतिक हलकों में बहस तेज है। सूत्रों की मानें तो अमीन खान ने गहलोत के समक्ष अपनी बात रखी, लेकिन उन्हें कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला। ऐसे में शुक्रवार को भाजपा नेता राजेंद्र राठौड़ से मुलाकात को ‘प्लान बी’ के तौर पर देखा जा रहा है। पश्चिमी राजस्थान में अमीन खान की पहचान केवल एक मुस्लिम नेता की नहीं, बल्कि एक प्रभावशाली राजनीतिक शख्सियत की रही है। अल्पसंख्यक वोट बैंक पर उनकी गहरी पकड़ है, और यही कारण है कि भाजपा जैसी पार्टी भी अब शायद उन्हें साधने की कोशिश में है। कांग्रेस से दूरी और भाजपा से निकटता की यह राजनीति कहीं ना कहीं यह दर्शा रही है कि अमीन खान अब ‘वेट एंड वॉच’ की नीति छोड़कर ‘चाल चलने’ की दिशा में बढ़ चुके हैं। राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि यदि अमीन खान भाजपा में शामिल होते हैं या उनका समर्थन करते हैं, तो यह कांग्रेस के लिए बड़ा झटका साबित हो सकता है, खासकर बाड़मेर-जैसलमेर जैसे क्षेत्रों में जहां मुस्लिम मतदाता निर्णायक भूमिका निभाते हैं।



