



डॉ. संतोष राजपुरोहित.
सामाजिक सुरक्षा किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक संरचना का वह आधार है, जो नागरिकों को जीवन के जोखिमों, बीमारी, बेरोजगारी, वृद्धावस्था, आर्थिक संकट और आय में कमी से बचाने का काम करता है। भारत जैसे बड़े और विविध देश में इसकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है, क्योंकि लगभग 92 फीसदी कार्यबल आज भी अनौपचारिक क्षेत्र में काम करता है, जहाँ नियमित वेतन, बीमा, पेंशन और स्वास्थ्य सुरक्षा जैसी सुविधाएँ कम ही उपलब्ध होती हैं। इस कारण सामाजिक सुरक्षा न केवल एक कल्याणकारी प्रयास है, बल्कि देश की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता का अनिवार्य स्तंभ भी है।

पिछले कुछ वर्षों में भारत ने सामाजिक सुरक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। जनधन, आधार, मोबाइल ने देश में कल्याणकारी योजनाओं के वितरण को बेहद सरल, पारदर्शी और भ्रष्टाचार-मुक्त बनाया है। आज भारत दुनिया का सबसे बड़ा डीबीटी इकोसिस्टम चला रहा है। 2024 तक 500 से अधिक योजनाओं में 30 लाख करोड़ रुपये से ज्यादा डीबीटी के माध्यम से सीधे खातों में भेजे जा चुके हैं। इससे न केवल लीकेज कम हुआ है, बल्कि सरकारी सहायता समय पर और सही पात्र तक पहुँचने लगी है।

स्वास्थ्य सुरक्षा सामाजिक सुरक्षा का सबसे संवेदनशील पहलू है। भारत में स्वास्थ्य व्यय का बड़ा हिस्सा अभी भी परिवार स्वयं वहन करते है, यह अभी भी लगभग 48 फीसदी है। यह कई परिवारों को आर्थिक असुरक्षा की ओर धकेल देता है। ऐसे में आयुष्मान भारत, पीएमजेएवाई ने एक ऐतिहासिक कदम रखा है। इस योजना के तहत प्रति परिवार 5 लाख रुपये तक का स्वास्थ्य बीमा उपलब्ध है, और अब तक 6.5 करोड़ से अधिक अस्पताल उपचार इसी योजना के माध्यम से किए गए हैं। राष्ट्रीय डिजिटल स्वास्थ्य मिशन, टेली-मेडिसिन और सरकारी स्वास्थ्य अवसंरचना में निवेश भविष्य में इस सुरक्षा कवच को और मजबूत बनाएंगे।

वृद्धावस्था सामाजिक सुरक्षा का दूसरा बड़ा स्तंभ है। भारत में 60 प्लस आयु वर्ग की आबादी तेजी से बढ़ रही है, 2024 में लगभग 14 फीसदी, और अनुमान है कि 2050 तक यह 20 फीसदी से अधिक हो जाएगी। ऐसे में अटल पेंशन योजना, वृद्धावस्था पेंशन, वरिष्ठ स्वास्थ्य बीमा और सामाजिक सहायता भत्ते अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाते हैं। अटल पेंशन योजना में ही अब तक 4.5 करोड़ से अधिक नामांकन हो चुके हैं, जो निम्न और मध्यम आय वर्ग को वृद्धावस्था में न्यूनतम निश्चित पेंशन की गारंटी देती है। हालांकि पेंशन राशि को और यथार्थवादी बनाने तथा वृद्ध देखभाल सेवाओं को मजबूत बनाने की दिशा में और प्रयास आवश्यक हैं।
रोज़गार आधारित सामाजिक सुरक्षा की दृष्टि से मनरेगा ग्रामीण परिवारों के लिए जीवनरेखा के समान है। यह योजना न केवल आर्थिक संकट में आय का विकल्प देती है, बल्कि ग्रामीण विकास कार्यों को भी बढ़ावा देती है। 2023-24 में मनरेगा के तहत 265 करोड़ मानव-दिवस सृजित किए गए, जो ग्रामीण अर्थव्यवस्था की स्थिरता में महत्वपूर्ण योगदान है। इसके अलावा, मातृत्व लाभ योजना, दिव्यांगजन सहायता पेंशन, उज्ज्वला योजना और छात्रवृत्ति कार्यक्रम जैसी पहलें समाज के कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करती हैं।

डिजिटल तकनीक सामाजिक सुरक्षा की पहुँच और प्रभावशीलता को तेज़ी से बदल रही है। ई-केवाईसी, मोबाइल आधारित सत्यापन, ऑनलाइन पेंशन पोर्टल, डिजिटल स्वास्थ्य मिशन और सीधा बैंक हस्तांतरण जैसे कदमों से योजनाओं की पहुंच व्यापक हुई है। भविष्य में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डेटा विश्लेषण और डिजिटल रिकॉर्ड से योजनाओं को और लक्षित और प्रभावी बनाया जा सकता है। फिर भी कुछ चुनौतियाँ बनी हुई हैं, अनौपचारिक श्रमिकों का अधूरा कवरेज, स्वास्थ्य व्यय का उच्च स्तर, पेंशन राशि का सीमित होना, और कई राज्यों में योजनाओं की असमान पहुँच। इन समस्याओं के समाधान के लिए सामाजिक सुरक्षा को केवल कल्याणकारी खर्च नहीं, बल्कि मानव पूंजी में निवेश के रूप में समझना होगा। क्योंकि सुरक्षित, स्वस्थ और समर्थ नागरिक ही उत्पादक अर्थव्यवस्था की वास्तविक नींव होते हैं।

सामाजिक सुरक्षा केवल सहायता या सब्सिडी का तंत्र नहीं है, बल्कि मानव गरिमा और सामाजिक न्याय की गारंटी है। यह सुनिश्चित करती है कि संकट, बीमारी, वृद्धावस्था या बेरोजगारी की स्थिति में कोई भी व्यक्ति असहाय न रहे। एक समावेशी, संवेदनशील और मजबूत भारत का निर्माण तभी संभव है, जब सामाजिक सुरक्षा का दायरा व्यापक, आधुनिक और सभी नागरिकों के लिए सुलभ हो। यही सुरक्षित और संतुलित विकास की वास्तविक पहचान है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं



