




डॉ. एमपी शर्मा.
जब भी संकट घेरता है, जब मन डगमगाने लगता है, जब रास्ता धुंधला पड़ जाता है, तब एक नाम अनायास ही जन-जन की जुबान पर आता है, ‘हनुमान!’ यह नाम केवल आस्था का प्रतीक नहीं, विश्वास का आधार है। भारतभूमि पर शायद ही कोई ऐसा जनपद हो जहाँ ‘जय बजरंगबली’ की गूंज न सुनाई देती हो। वे ईश्वर नहीं कहलाना चाहते, पर ईश्वर भी जिनकी निःस्वार्थ भक्ति से बंध जाते हैं, ऐसे हैं पवनपुत्र हनुमान। हनुमान जी की महिमा केवल उनके बल या वीरता में नहीं है, बल्कि उनके चरित्र में छिपी सेवा, विनम्रता और संकल्पशक्ति में है। वे ‘रामकाज’ को ही अपना धर्म मानते हैं और इसी एकनिष्ठता से वे जनमानस के नायक बन जाते हैं। वर्तमान समय, जहाँ धर्म प्रदर्शन का माध्यम बन चुका है और शक्ति अहंकार का औजार, वहाँ हनुमान जी जैसे चरित्र हमारी चेतना को जाग्रत करते हैं।

भारतीय जनमानस में रचे-बसे केसरी नंदन, पवनपुत्र, अंजनीसुत, रामभक्त, संकटमोचक, बजरंगबली जैसे असंख्य नामों से जाने जाने वाले हनुमान जी केवल किसी धार्मिक मूर्ति या कथा का पात्र नहीं हैं, वे हमारे जीवन की प्रेरणा हैं। वे अद्वितीय शक्ति, अपार भक्ति और अनुपम विनम्रता का अद्भुत संगम हैं। जहां वे एक ओर बलशाली वीर योद्धा हैं, वहीं दूसरी ओर सेवा, समर्पण और शरणागति के जीते-जागते उदाहरण भी। यही कारण है कि वे सिर्फ मंदिरों में नहीं, बल्कि हर श्रद्धालु के विश्वास और साहस में बसे हैं।
रामकाज कीनें बिनु मोहि कहाँ विश्राम
हनुमान जी की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि उन्होंने प्रभु श्रीराम को स्वामी और स्वयं को सेवक माना। यही आत्म-स्थापन उन्हें देवताओं से अलग करता है। जब भगवान राम ने सीता माता की खोज में उन्हें भेजा, तो उन्होंने समुद्र लांघा, रावण की लंका में घुसे, अशोक वाटिका में सीता माता से भेंट की, और पूरी विनम्रता से कहा, ‘मैं रामजी का दास हूँ।’ न कोई युद्ध का गर्व, न कोई बल प्रदर्शन। सेवा और समर्पण का यह भाव ही उन्हें संकटमोचक बनाता है।
शक्ति का परिचय नहीं, संकल्प की महाशक्ति
जब लक्ष्मण जी मूर्छित हुए और संजीवनी की आवश्यकता पड़ी, तो हनुमान जी ही थे जो हिमालय से पूरा पर्वत उठाकर लाए। किंवदंती कहती है कि उन्होंने सूर्यदेव से प्रार्थना की, ‘जब तक मैं लौट न आऊँ, तब तक उदित मत होना। यदि समय से पहले निकले, तो याद रखना, तुम्हें मुँह में रखने वाला वही हनुमान आ रहा है।’ यह केवल शक्ति नहीं, समय पर नियंत्रण, संकल्प की तीव्रता और समर्पण की पराकाष्ठा थी।

भारत में सबसे अधिक हनुमान मंदिर क्यों?
क्या यह आश्चर्यजनक नहीं है कि भारत में हनुमान जी के मंदिरों की संख्या भगवान राम से भी अधिक है? उत्तर सरल है, ‘राम ईश्वर हैं, और हनुमान हमारे जैसे हैं। वे सेवक हैं, समर्पित हैं, पराक्रमी हैं और सबसे महत्वपूर्ण, विनम्र हैं। जनमानस उन्हें इसलिए पूजता है क्योंकि वे भक्ति और शक्ति के संतुलन का जीवंत रूप हैं।’
शक्ति और सेवा का आदर्श संतुलन
आज के समाज में जहाँ शक्ति का प्रदर्शन अक्सर अहंकार बन जाता है, और भक्ति कर्महीनता में बदल जाती है, वहाँ हनुमान जी एक संतुलन सिखाते हैं, ‘जहाँ केवल शक्ति होती है, वहाँ विनाश होता है। जहाँ केवल भक्ति होती है, वहाँ निष्क्रियता पनपती है।’ हनुमान जी में शक्ति और सेवा, दोनों का समन्वय है। वे कभी अपने बल का अभिमान नहीं करते। जब माता सीता ने उन्हें दीर्घायु का आशीर्वाद दिया, तो उन्होंने कहा, ‘मुझे रामजी की कृपा चाहिए, दीर्घायु का लोभ नहीं।’
समकालीन सन्दर्भ में हनुमान जी की प्रासंगिकता
आज के युग में, जहाँ धर्म प्रदर्शन बनता जा रहा है, और सेवा शब्द खोखला लगने लगा है, हनुमान जी का चरित्र हमें दिशा देता है। वे सिखाते हैं कि भक्ति वही है, जो सेवा बन जाए। और शक्ति वही है, जो संकट में दूसरों की रक्षा करे।
क्यों याद आते हैं हनुमान?
हर मंगलवार और शनिवार, भारत का जनमानस विशेष श्रद्धा से हनुमान जी को याद करता है। क्यों? इसलिए कि वे दिन हमें यह याद दिलाते हैं, विनम्र बनो, सेवक बनो और जब जरूरत हो, तो रक्षक भी बनो।
डॉक्टरों और सेवाभाव के लिए भी प्रेरणा
हनुमान जी का जीवन एक चिकित्सक के लिए भी आदर्श है। वह सिखाते हैं, मरीज़ों के प्रति सेवा की भावना, संकट में धैर्य और साहस, और श्रेय की लालसा से दूर रहना।
राम के भक्त, स्वयं में देवता
हनुमान जी ने कभी देवत्व की आकांक्षा नहीं की। उन्होंने सिर्फ प्रभु श्रीराम के कार्य को ही अपना धर्म माना। इसीलिए जब भी हम संकट में होते हैं, तो कहते हैं,‘ संकट से हनुमान छुड़ावें, मन, क्रम, बचन ध्यान जो लावें।’ हनुमान जी का जीवन केवल कथा नहीं, एक दर्शन है। एक ऐसा आदर्श जो बताता है कि भक्ति निष्क्रियता नहीं, शक्ति का मूल है। शक्ति, सेवाभाव में जब ढलती है, तभी वह संकटमोचक बनती है। आज जब समाज भक्ति और शक्ति के बीच झूल रहा है, तो जरूरत है हनुमान जैसे संतुलन की। राम के सेवक हनुमान, कालजयी हैं।
जय बजरंगबली!
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




