स्लिप डिस्क से परेशान हैं तो घबराने की जरूरत नहीं, पुख्ता है उपचार

डॉ. पीयूष त्रिवेदी.
पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीव जन्तुओं के शरीर के संतुलन को बनाये रखने में रीढ़ की हड्डी का अपना एक महत्वपूर्ण और विशेष कार्य होता है। हमारी स्पाइन में 33 वर्टिब्रा स्थापित होती है, जो बहुत ही सॉफ्ट डिस्क के द्वारा एक दुसरे से जुडी हुई रहती है ये छोटी छोटी हड्डियों से मिलकर बनी होती है। इन छोटी हड्डियों के मध्य एक गद्दीदार/लचीली/गाढे द्रव्य युक्त डिस्क स्थापित रहती है जो हमारे स्पाइनल कार्ड की हमारे द्वारा कुछ भी शारीरिक काम करने पर लगने वाले झटको से सुरक्षा करती है, और हमारी स्तम्भ रूपी रीढ़ को लचकदार बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।
इस लचीलेपन की ही बदौलत है कि हम हमारे शरीर को दायें-बांये आगे-पीछे आसानी से घुमाते हुए आसानी से हमारे दैनिक दिनचर्या के कार्याे को भलीभांति करते है, किन्तु जब इसमें किसी कारण वश या ये कहें की हमारे द्वारा की हुई किसी गलती के कारण इसमें विकार/दोष उत्पन्न होने लग जाते है, विकार कहे तो त्रिदोषों की विषमावस्था की उत्पत्ति के फलश्वरूप निम्न उपर्द्व्य दिखाई देने लगते हैं, जिनमे सुजन आना या दर्द का लगातार बना रहना डिस्क का फैलाव हों जाना जिससे डिस्क अपनी सामान्य सीमाओ से कुछ हद तक बहार की ओर निकल जाती है। परिणामस्वरूप डिस्क के बाहरी आवरण में विकार उत्पन्न होकर इसमें उपस्थित न्यूक्लियस पल्पोसस नामक गाढे द्रव का रिसाव होने लगता है, जिससे डिस्क के आसपास की तंत्रिकाओं पर गाढे द्रव के फ़ैल जाने से नर्व पर पड़ने वाले दबाव से विकार उत्पन्न हो जाता है, इसे ही स्लिप डिस्क कहा जाता है, यही डिस्क जब गर्दन वाले भाग में स्लिप होती है तो उसे सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के नाम से पुकारा जाता है, वही जब यह कमर में होती है तो लंबर स्पॉन्डिलाइटिस के नाम से जाना जाता है।


लक्षण:
गर्दन से लेकर एड्डि तक कही भी लगातार दर्द या भारीपन का अनुभव होना। कमर में जकडन के साथ लगातार भयंकर दर्द का बना रहना। शरीर के एक हिस्से में दर्द का बढना। दोनों हाथो या पैरो में दर्द का बना रहना। रात के समय अंग विशेष में दर्द का बढना। कुछ विशेष गतिविधियों में दर्द का बढ़ जाना जैसे रू-खड़े होने या बैठने के बाद में दर्द का अचानक तेज बढ़ जाना। खड़े होकर थोडा चलने पर दर्द का वेग अति तीव्रगति से बढ़ जाना। प्रभावित हिस्से की मांसपेसियों में कमजोरी का एहसास होना। जलन ,दर्द ,सूनापन या झुनझुनी होना। अंग विशेष में भारीपन का एहसास होना व सुई के चुभने जैसे पीड़ा होना आदि।


जानिए, इसके कारण
स्लिप डिस्क मुख्यतः वात दोष के प्रकुपित होने से उत्पन्न होता है जिसका मुख्य कारण हमारा आहार विहार होता है। गलत तरीको को अपनाने से जैसे उठने बैठने में झटके लगना। सामने झुककर वजन उठाना। गलत तरीके से एक्सरसाइज करना। अत्यधिक स्त्री समागम भी इसका बड़ा कारण हो सकता है। तले भुने पदार्थाे का अधिक सेवन करना। देर रात तक बिना सपोर्ट के कुर्सी पर काम करना। देर रात तक कमर को झुकाकर पढाई करना या मोबाइल का इस्तेमाल करना आदि।
क्या है बचाव/सावधानियां
नियमित योगाभ्यास आपको स्पाइनल सम्बन्धी समस्याओ से बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अपने आहार विहार का विशेष ध्यान रखें। वात दोष को प्रकुपित करने वाले खाद्य पदार्थाे के सेवन से बचें। रात्रि जागरण से बचें। धुम्रपान या नशीले पदार्थाे के सेवन से बचे क्योंकि निकोटिन नामक जहर डिस्क में उपस्थित द्रव को सुखा देता है। किसी भी शारीरिक गतिविधि को एक निश्चित तकनीक के आधार पर करे जैसे वजन उठाने में आपको सामने झुकने की बजाय नीचे बैठ कर उठाये आदि। यदि आपका दैनिक कार्य कुर्सी पर बैठे रहने का है तो पीठ को सपोर्ट देकर या कुर्सी को अपने कमर के अनुसार किसी तकिये आदि से व्यवस्थित कर लेना चाहिए। करवट में सोते समय अपने दोनों घुटनों के मध्य तकिये का सहारा अवश्य लें। सोते समय भी अपने शरीर के आकार पर विशेष ध्यान रखना चाहिए।


जानें स्लिप-डिस्क का ईलाज एवं उपचार ,
स्लिप डिस्क वात प्रकुपित रोग है और वात प्रकुपित रोगों में एनिमा अर्थात बस्ति चिकित्सा को श्रेष्ठ माना गया है। नियमित योगाभ्यास, पंचकर्म चिकित्सा के पूर्व कर्म, कटिबस्ती, अनुवासन बस्ति, पोटली, भाप स्नान, एक्यूप्रेशर, चुंबक, आयुर्वेद औषधियों में योगराज गुग्गुल ,त्रिफला गुग्गुल ,त्रियोद्सांग गुग्गुल ,दशमूल काढ़ा, महारास्नादी काढ़ा, अश्व्गंधारिस्ट, वातकुलान्तक रस, र्व्हत वात चिंतामणि रस, वातारी गुग्गुल, बात गजानकुश रस आदि सभी गोलियां एवं टेबलेट लेने के बाद दूसरे दिन से ही फायदा होने लगता है। जरूरत पड़ने पर इसके अलावा भी दवाई दी जाती है। सभी आयुर्वेदिक हर्बल दवाई है। यह दवाई हमारे चिकित्सालय में हजारों व्यक्तियों पर परीक्षित की हुई है, इसका उपयोग चिकित्सक की देखरेख में अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है।
प्राकृतिक चिकित्सा/पंचकर्म चिकित्सा का स्लिप-डिस्क में वैज्ञानिक आधार
प्राकृतिक चिकित्सा और पंचकर्म चिकित्सा द्वारा स्लिप हुई डिस्क का इलाज संभव है, जिसका वैज्ञानिक आधार इस प्रकार से समझा जा सकता है। पंचकर्म में की जाने वाली कटिबस्ती के माध्यम से स्लिप हुई डिस्क के आस-पास के क्षेत्र में सक्त हुए तंतुओ को लचीला बनाया जाता है, जब इन तंतुओ में लचीलापन बढ़ जाता है, तो धीरे धीरे मृत हुई कोशिकाए पुनर्जीवित होने लगती है। जब यहाँ उपस्थित सभी कोशिकाए पुनर्जीवित हो जाती है तो धीरे धीरे डिस्क के आगे-पीछे ,दाये-बाये घुमाव को बरकरार बनाये रखने वाली जैली का पुनरू बनना प्रारम्भ हो जाता है। जब यह जैली प्राकृतिक तरीके से अपने प्राकृतिक रूप में आ जाती है, डिस्क का अपने मूल श्वरूप में आने के बाद नर्वस सिस्टम/तंत्रिका तंत्र पर पड़ने वाला दबाव स्वतरू ही कम हो जाता है, जिसके फलस्वरूप पैरों की झुनझुनाहट, सूनापन के साथ होने वाले दर्द से मुक्ति मिल जाती है। तब निश्चित ही डिस्क के स्लिप होने से उत्पन्न होने वाले सभी उपर्द्व्याे से अल्प समय मे ही दीर्घकालीन लाभ हो जाता है।


माइक्रो एक्यूप्रेशर चिकित्सा
डिस्क के पास आ रहा दवाब प्रेशर क्रिया द्वारा हटाया जाता है जिसमे चुंबक लेजर जैसी किरणों का सहारा लिया जाता है पहले दिन के उपचार से ही डिस्क अपने स्थान पर आ जाती है सभी उपद्रव शांत होने लगते हैं और स्लिप डिस्क ठीक हो जाती है। पुनः एमआरआई की रिपोर्ट सही आने लगती है। अब तक सैकड़ों हजारों की संख्या में मरीज़ों को इसका लाभ मिल चुका है ।
बस्ति या एनिमा
प्राकृतिक चिकित्सा का जब नाम आता है तो जान लेना चाहिए की प्राकृतिक चिकित्सा की शुरुआत मतलब एनिमा। वर्तमान समय में एनिमा के नाम से ही बहुत से लोग चिकित्सा लेने में हिचकिचाते है। किन्तु यह सत्य है कि प्राकृतिक चिकित्सा में एनिमा जिसे पंचकर्म में मेडिसिन्स के द्वारा तैयार किया जाता है बस्ति कहा जाता है। एनिमा/बस्ति के द्वारा रोगी के पेट की सफाई की जाती है। आंतो की सफाई होने से प्रकुपित हुआ वात अपनी साम्यावस्था में आने लगता है, जिससे की धीरे धीरे रोगी को रोग के लक्षणों में कमी महसूस होने लग जाती है। बस्ति में जो मेडिकेटेड आयल मिलाया जाता है, वो किसी न किसी रूप में प्रकुपित वात को तो ठीक करता ही है साथ की साथ आंतो को मजबूत बनाकर स्पाइन की आन्तरिक लचक को बढ़ाने में महत्वपूर्ण निभाता है। जब तक पेट की सफाई अर्थात कब्ज को ठीक नही किया जायेगा स्लिप हुई डिस्क में पूर्ण व दीर्घकालीन स्वास्थ्य लाभ की कामना करना उचित नही होगा।
स्लिप डिस्क रोगी जो प्रथम बार जब प्राकृतिक चिकित्सा लेने हमारे पास आते है तो एनिमा का विकल्प ढूढ़ते हैं, जब चिकित्सक द्वारा अधूरे इलाज के लिए मना कर दिया जाता है तो कुछ रोगी चिकित्सा लेने से पीछे हट जाते हैं जो चिकित्सक के लिए उतना ही ठीक है जितना की रोगी व्यक्ति के लिए गलत रोगी को उचित चिकित्सा नही मिलने पर चिकित्सक को अपयश का भागी होना पड़ता है। किसी प्रशिक्षित आयुर्वेदाचार्य/प्राकृतिक चिकित्सक या हमारे चिकित्सालय की देखरेख में चिकित्सा लेनी चाहिए। सर्वप्रथम एनिमा द्वारा पेट की सफाई करनी चाहिए। पेट की मिट्टी पट्टी व अंग विशेष पर गर्म मिट्टी पट्टी लगाएं। अभ्यंग के द्वारा लचीलापन आने से अत्यंत लाभ मिलता है।
पुराना योग
एरंड तेल में भुनी हुई हरड को सोते समय लेने से शोच खुल के आता है, जिससे कमर पर होने वाले हिस्से की जकडन में काफी आराम मिलता है। स्लिप-डिस्क में किये जाने वाले योग, तितली आसन, भुजंगासन, ताड़ासन, पवनमुक्त आसन, इनको भी जीवन का हिस्सा बनाए रखें।
-लेखक आयुर्वेद विशेषज्ञ हैं और शासन सचिवालय जयपुर राजस्थान में पदस्थापित हैं।

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