अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चलता है हिंदू नववर्ष, कैसे ?

image description

सुनील कुमार महला.
हिंदू नववर्ष-2025 यानी नए विक्रम संवत् का शुभारंभ 30 मार्च से हो रहा है। इस दिन विक्रम संवत 2082 का पहला दिन होगा। हिंदू नववर्ष अंग्रेजी कैलेंडर से 57 वर्ष आगे चलता है। इस समय अंग्रेजी कैलेंडर का वर्ष 2025 है, जबकि हिंदू नववर्ष 2082 होगा। चैत्र महीना 15 मार्च से शुरू हो चुका है, और चैत्र के 15 दिनों बाद शुक्ल पक्ष में 30 मार्च को हिंदू नववर्ष शुरू है। हिंदू नववर्ष के पहले दिन पचंक का समापन हो रहा है। दृक पंचांग से देखा जाए तो इस बार चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 29 मार्च को शाम 4.27 बजे से शुरू हो रही है और यह तिथि अगले दिन 30 मार्च को दोपहर 12.49 बजे खत्म होगी। उदयातिथि के आधार पर हिंदू नववर्ष 2025 का शुभारंभ 30 मार्च दिन रविवार से हो रहा है। इस साल हिंदू नववर्ष का शुभारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रहा है। 30 मार्च को सर्वार्थ सिद्धि योग शाम को 04 बजकर 35 मिनट पर हो रहा है। यह अगले दिन 31 मार्च को प्रातः 06 बजकर 12 मिनट तक है।
ज्योतिष के अनुसार सर्वार्थ सिद्धि योग शुभ योग है। मान्यता है कि इसमें किए गए कार्य सफल सिद्ध होते हैं। आज हम सभी पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति के रंग में रंगकर अपनी सभ्यता-संस्कृति को लगातार भूलते चले जा रहे हैं और अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार जनवरी से वर्ष की शुरुआत मानते हैं और दिसंबर के साथ वर्ष का अंत। लेकिन हमारा भारतीय वर्ष वास्तव में चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (यानी कि एकम् तिथि से) से शुरू होता है।


विडंबना ही है कि युवा पीढ़ी को हिंदू महीनों के नाम तक याद नहीं हैं। मसलन, उन्हें चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, अश्विन, कार्तिक मास, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन महीनों के बारे में जानकारी नहीं है।
प्राचीनकाल में चैत्र मास से ही पुराने कामकाज को समेटकर नए कामकाज की रूपरेखा तय की जाती रही है, क्योंकि यह माह वसंत के आगमन का माह होता है और इस माह से ही प्रकृति नवीन रंगों, नवीन फिजाओं में ढ़लती है। न अधिक गर्मी और न ही अधिक ठंड। आज भी हमारे यहां विशेषकर गांवों में बहीखातों का नवीनीकरण और मंगल कार्यों की शुरुआत मार्च में ही होती है। ज्योतिष विद्या में ग्रह, ऋतु, मास, तिथि एवं पक्ष आदि की गणना भी चैत्र प्रतिपदा से ही की जाती है। मार्च से ही सूर्य मास अनुसार मेष राशि की शुरुआत भी मानी गई है।
वास्तव में, हिन्दू कैलेंडर का प्रथम माह है चैत्र और अंतिम है फाल्गुन। कितनी बड़ी बात है कि दोनों ही माह वसंत ऋतु में आते हैं। दूसरे शब्दों में कहें तो चैत्र मास से ही प्रकृति में हर तरफ उत्साह, उमंग व नये जोश का संचार होता है। चैत्र महीने के आखिरी दिन यानी पूर्णिमा को चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होता है। इसी कारण से इस महीने का नाम भी चैत्र है। दूसरे शब्दों में कहें तो अमावस्या के पश्चात चंद्रमा जब मेष राशि और अश्विनी नक्षत्र में प्रकट होकर प्रतिदिन एक-एक कला बढ़ता हुआ 15वें दिन चित्रा नक्षत्र में पूर्णता को प्राप्त करता है, तब वह मास ‘चित्रा’ नक्षत्र के कारण ‘चैत्र’ कहलाता है। इसे संवत्सर कहते हैं, जिसका अर्थ है ऐसा विशेषकर जिसमें बारह माह होते हैं।


विक्रम संवत में दो तरह से महीनों की गिनती होती है। महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिण भारत में जहां अमावस्या खत्म होने के बाद नए महीने की शुरुआत होती है। वहीं, उत्तरी भारत सहित ज्यादातर जगहों पर पूर्णिमा के अगले दिन से नया महीना शुरू होता है। इसी कारण होली के अगले दिन नया महीना तो लग जाता है, लेकिन हिंदू नववर्ष महीने के 15 दिन बीतने के बाद शुरू होता है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा(एकम) तिथि से ही सतयुग का प्रारंभ माना जाता है। चैत्र महीने में सूर्य भी अपनी उच्च राशि में होता है और इसी महीने में पहली ऋतु होती है यानी वसंत का मौसम होता है। इस महीने को ‘भक्ति और संयम’ का महीना भी कहा जाता है, क्योंकि इसमें कई व्रत और पर्व आते हैं।
ईरान में इस तिथि को ‘नौरोज’ यानी ‘नया वर्ष’ मनाया जाता है। आंध्र में यह पर्व ‘उगादिनाम’ से मनाया जाता है। उगादि का अर्थ होता है युग का प्रारंभ, अथवा ब्रह्मा की सृष्टि रचना का पहला दिन। ब्रह्माण्ड पुराण में इस तिथि को नए संवत्सर की पूजा करने का विधान बताया गया है। तिथि और पर्व तय करने वाले ग्रंथ निर्णय सिन्धु, हेमाद्रि और धर्म सिन्धु में इस तिथि को पुण्यदायी कहा गया है, इस तिथि को युगादि कहा जाता है। इस प्रतिपदा तिथि को ही जम्मू-कश्मीर में ‘नवरेह’, पंजाब में वैशाखी, महाराष्ट्र में ‘गुडीपड़वा’, सिंध में चेतीचंड, केरल में ‘विशु’, असम में ‘रोंगली बिहू’ आदि के रूप में मनाया जाता है। नए विक्रम संवत का शुभारंभ चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (गुड़ी पड़वा) तिथि से होता है। इस साल हिंदू नववर्ष का शुभारंभ सर्वार्थ सिद्धि योग में हो रहा है।


हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार यह माना जाता है कि इस तिथि से ही भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना शुरू की थी। इसी दिन भगवान विष्णु ने दशावतार में से पहला मत्स्य अवतार लेकर प्रलयकाल में जल में से मनु की नौका को सुरक्षित जगह पर पहुंचाया था और प्रलयकाल खत्म होने पर मनु से ही नई सृष्टि की शुरुआत हुई थी। चैत्र माह में ही चैत्र नवरात्र भी मनाए जाते हैं और इस महीने में मां दुर्गा की विशेष पूजा-अर्चना करने का विधान है। गौरतलब है कि विक्रम संवत की चैत्र शुक्ल की पहली तिथि से न केवल नवरात्रि में दुर्गा व्रत-पूजन का आरंभ होता है, बल्कि राजा रामचंद्र का राज्याभिषेक, धर्मराज युधिष्ठिर का राज्याभिषेक, सिख परंपरा के द्वितीय गुरु अंगददेव का जन्म हुआ था। इतना ही नहीं, प्रभु राम के जन्मदिन रामनवमी से पूर्व नौ दिन का श्री राम महोत्सव मनाने का यह प्रथम दिन (वर्ष प्रतिपदा या नवसंवत्सर) होता है। यह आर्य समाज की स्थापना का दिवस भी है और संत झूलेलाल जी व राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संस्थापक डॉ. केशव राव बलीराम हैडगेवार का जन्मदिवस भी है। इस दिन (हिंदू नववर्ष) का प्राकृतिक महत्व भी है। यह किसानों की फसलें पकने का समय होता है।
वास्तव में, विक्रमादित्य संवत को हिन्दू नववर्ष इसलिए कहा जाता है, क्योंकि यह हमारे प्राचीनतम हिन्दू पंचांग और कैलेंडर पर ही आधारित है। 58 ईसा पूर्व राजा विक्रमादित्य (उज्जैन के सम्राट) ने खगोलविदों की मदद से इसे व्यवस्थित करके प्रचलित किया था। इसे नवसंवत्सर के नाम से भी जाना जाता है। गौरतलब है कि गुड़ी पड़वा, होला मोहल्ला, युगादि, विशु, वैशाखी, कश्मीरी नवरेह, उगाडी, चेटीचंड, चित्रैय तिरुविजा आदि सभी की तिथियां हिंदू नववर्ष या यूं कहें कि इस नव संवत्सर के आसपास ही आती है। 12 माह का एक वर्ष और 7 दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ माना जाता है और महीने का हिसाब सूर्य व चंद्रमा की गति पर आधारित होता है। विक्रम कैलेंडर की इस धारणा को यूनानियों के माध्यम से अरब और अंग्रेजों ने अपनाया। बाद में भारत के अन्य प्रांतों ने अपने-अपने कैलेंडर इसी के आधार पर विकसित किए।


हिंदू नववर्ष और अंग्रेजी नववर्ष में मुख्य अंतर यह है कि हिंदू नववर्ष चंद्र की स्थितियों के आधार पर तय होता है, जबकि अंग्रेज़ी नववर्ष सूर्य के आधार पर तय होता है। आज हम भारतीय पश्चिमी अंधानुकरण में इतने सराबोर हो चुके हैं कि हम उचित अनुचित का बोध त्याग अपनी सभी सांस्कृतिक मर्यादाओं को तिलांजलि दे बैठे हैं। विक्रमी सम्वत (भारतीय नववर्ष) का सम्बन्ध किसी भी धर्म से न हो कर संपूर्ण विश्व की प्रकृति, खगोल सिद्धांतों व ब्रह्माण्ड के ग्रहों व नक्षत्रों से है। इसलिए भारतीय काल गणना (नव संवत्सर) पंथ निरपेक्ष होने के साथ सृष्टि की रचना व हमारे राष्ट्र की गौरवशाली परम्पराओं, हमारी सनातन संस्कृति को दर्शाती है।
-लेखक समसामयिक मुद्दों पर स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *