





शंकर सोनी
हिमालय की शिवालिक पहाड़ियों से निकली प्राचीन सरस्वती, जिसे आज हम घग्घर नदी के नाम से जानते हैं, एक बार फिर उफान पर है। मानसूनी बारिशों ने इसके प्रवाह को इस कदर बढ़ा दिया है कि हनुमानगढ़ तक 40 हजार क्यूसेक पानी आने की संभावना जताई जा रही है। सवाल यह है कि क्या राजस्थान सरकार के पास इस चुनौती से निपटने की पर्याप्त तैयारी है? पिछले अनुभव बताते हैं कि जब भी घग्घर ने अपना रास्ता मांगा है, सरकार की आधी-अधूरी व्यवस्थाएं नाकाफी साबित हुई हैं।

प्राचीन सरस्वती नदी मूल रूप से हिमालय की शिवालिक पहाड़ियां से शिमला के पास से निकलती है। इसी सरस्वती को हम अब घघर नदी या हकरा नदी के नाम से भी जानते है। इसका बहाव क्षेत्र पंजाब ,हरियाणा, राजस्थान से होते हुए पाकिस्तान तक है। गत 100 के इतिहास से पता चलता है 1955 तक घग्गर में हनुमानगढ़ तक जल प्रवाह रहा। वर्ष 1955 से पहले यह पीलीबंगा से आगे केवल एक बार गई थी।

साल 1955 के बाद घग्गर में पानी की मात्रा में वृद्धि हुई। सन 1958 के मानसून के समय घग्गर का पानी हनुमानगढ़ से 19 मील आगे तक, 1959 में हनुमानगढ़ से 41 मील आगे तक, 1960 में 63 मील दूर तथा 1961 में 36 मील नीचे उतर की ओर गया था।
1962 में घग्गर का पानी हनुमानगढ़ से 94 मील दूर पाकिस्तान की सीमा तक गया और वर्ष 1964 में पाकिस्तान में अंदर तक जा पहुंचा। घग्घर में 1988 में मानसून के समय जुलाई, अगस्त और अक्टूबर महीने में तीन बार बाढ़ की स्थिति बनी।

घग्गर के इस तीसरे दौर ने 1995 में सरकार के आपदा रोधी उपायों को अपर्याप्त साबित कर दिया। 1988 में आरडी 629 इंदिरा गांधी फीडर पर साइफन से 32000 क्यूसेक पानी छोड़ा गया। हरियाणा के ओट्टू हेड से 19 जुलाई 1993 को 40763 क्यूसिक पानी छोड़ा गया था। उस समय घग्गर डायवर्सन चौनल डाउन स्ट्रीम आरडी 42 में 14160 क्यूसेक पानी छोड़ा गया।

1995 में घग्घर में पानी की आवक ज्यादा नहीं थी पर बहाव क्षेत्र कम होने के कारण ही बंधा टूटा और हनुमानगढ़ जंक्शन डूब गया था। सिंचाई विभाग द्वारा करवाए गए अध्ययन के अनुसार घग्गर नदी में हर 5 वर्ष बाद 18966 क्यूसेक, हर 10 वर्ष बाद 25282 क्यूसेक, हर 25 वर्ष बाद 33281 क्यूसेक, हर 50 वर्ष बाद 39118 क्यूसेक और 100 वर्ष में एक बार 50000 क्यूसेक पानी का प्रवाह होता है।

गत वर्षाे में रही स्थिति के आधार पर इस वर्ष अधिक बरसात के कारण घग्गर 40000 से क्यूसक पानी आने की संभावना है।
अब अहम मुद्दा यह है कि अगर घग्गर में 40000 क्यूसेक पानी आता है तो इसके निकासी के प्रबंधन के लिए राजस्थान सरकार के पास प्रबंधन क्या है? इसे समझिए। इंदिरा गांधी नहर परियोजना के आरडी 629 पर 18000 क्यूसेक जल निकासी की क्षमता के दो सायफन बने हैं। जिनसे जल निकासी होती है। सायफन से आगे पानी के निकास के लिए घग्घर डायवर्जन चौनल (जीडीसी), नाली और इंदिरा गांधी नहर तीन व्यवस्थाएं है।

संकट की स्थिति में आईजीएनपी को खाली करवानें के बाद इसमें अधिकतम 15000 क्यूसेक पानी डाला जा सकता है। जीडीसी में अधिकतम 20000 क्यूसेक पानी डाला जा सकता है। जीडीसी की क्षमता 0 आरडी से 24 आरडी तक 30000 क्यूसेक की है। आरडी 24 में डाउन स्ट्रीम में 15000 क्यूसेक है। यहां से शेष 15000 क्यूसेक जल नाली में डालना ही पड़ेगा।

परंतु वर्तमान में घग्गर बहाव क्षेत्र की चौड़ाई बहुत कम रह गई जिसके कारण नाली से 15000 क्यूसिक जल का प्रवाह नहीं हो सकता इसलिए सरकार और निजी लोगों द्वारा बनाए गए बांध टूटने की संभावना बनी रहती है। जल निकासी हेतु चौड़ाई कहीं एक बीघा है तो कहीं इससे भी है। जिसके कारण नाली में बने अवैध बांधो का टूटना निश्चित है। यदि पंजाब और हरियाणा में बने टूट जाते हैं तो हनुमानगढ़ में जल प्रवाह कम होता है। अन्यथा यदि घग्गर में हनुमानगढ़ तक 40000 क्यूसिक जल प्रवाह होता हैं तो व्यवस्थाओं को मजबूत करना पड़ेगा।

खेद की बात यह है कि सरकार वर्ष भर सरकारी बांधो को मजबूत करने और बहाव क्षेत्र में हो रहे अतिक्रमण और अनधिकृत निजी बांधों को हटाने का काम नहीं करती । सिर पर संकट मंडराने लगता है तब सचेत होती हैं। इस बात को हमेशा याद रखा जाना चाहिए कि नदियां अपना रास्ता ढूंढ लेती है, घग्घर अपना रास्ता मांग रही है।
-लेखक वरिष्ठ अधिवक्ता व नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक हैं

