






डॉ. एमपी शर्मा.
जीवन एक यात्रा है जिसमें उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। कभी जीत तो कभी हार, कभी सुख तो कभी दुख। विपरीत परिस्थितियाँ हमें तोड़ने नहीं बल्कि और मज़बूत बनाने आती हैं। महत्त्वपूर्ण यह नहीं कि हमारे साथ क्या हुआ, बल्कि यह है कि हम उस स्थिति को कैसे संभालते हैं।

परीक्षा में फेल होना अंत नहीं है, बल्कि एक नये प्रयास की शुरुआत है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था, ‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।’ इसलिए बहाने ढूँढने के बजाय अपनी कमियों पर काम करें और नयी ऊर्जा के साथ आगे बढ़ें।

किसान का जीवन धैर्य और परिश्रम का प्रतीक है। यदि कभी फसल खराब हो जाए, तो निराशा की जगह नई तकनीक और वैकल्पिक रास्ते अपनाएँ। धैर्य और निरंतरता ही अंततः सफलता देती है। व्यापार में हानि-लाभ दोनों साथ चलते हैं। घाटा हमें सिखाता है कि कहाँ सुधार की आवश्यकता है। महात्मा गांधी ने कहा था, ‘खुद को खोजने का सबसे अच्छा तरीका है, दूसरों की सेवा में खुद को खो देना।’ अर्थात केवल लाभ ही उद्देश्य न हो, बल्कि दीर्घकालिक दृष्टि और सेवा भाव से किया गया काम स्थायी सफलता लाता है।

जीवन की सबसे बड़ी परीक्षा होती है जब कोई अपना सदा के लिए बिछड़ जाता है। अपनों का जाना असहनीय पीड़ा देता है, लेकिन हमें यह स्वीकार करना होता है कि मृत्यु जीवन का शाश्वत सत्य है। भगवद्गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं, ‘जो हुआ, अच्छा हुआ। जो हो रहा है, अच्छा हो रहा है। जो होगा, वह भी अच्छा होगा।’ इस विश्वास के साथ जीने से हम दुःख में भी धैर्य बनाए रख सकते हैं।

अमेरिका के राष्ट्रपति बनने से पहले लिंकन को बार-बार असफलताओं का सामना करना पड़ा। वे कई चुनाव हारे, व्यापार में घाटा झेला और व्यक्तिगत जीवन में भी दुख उठाए। लेकिन हार मानने के बजाय हर असफलता से उन्होंने सीखा। अंततः वे अमेरिका के सबसे महान राष्ट्रपतियों में गिने गए। संदेश यह कि असफलता अंत नहीं, बल्कि सफलता की सीढ़ी है।

भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल मैन डॉ. कलाम का बचपन अत्यंत साधारण था। वे अख़बार बाँटकर पढ़ाई का ख़र्चा उठाते थे। जीवन में अनेक कठिनाइयों के बावजूद उन्होंने धैर्य और लगन से पढ़ाई की और विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे मुकाम पर पहुँचे कि पूरी दुनिया ने उन्हें सलाम किया। संदेश यह कि कठिनाइयाँ हमें रोकती नहीं, बल्कि आगे बढ़ने की प्रेरणा देती हैं। संकट में धैर्य क्यों आवश्यक है? इसलिए कि हर परिस्थिति अस्थायी है। घबराहट निर्णय क्षमता को खत्म करती है। विपरीत हालात ही हमारी असली ताक़त उजागर करते हैं।

विपरीत समय में हमें क्या करना चाहिए ? यकीनन, बड़ा सवाल है ये। दरअसल, हम शांत रहकर सोचें, घबराहट में निर्णय न लें। कारण ढूँढें, असफलता या समस्या की जड़ को पहचानें। छोटे कदम उठाएँ, धीरे-धीरे सुधार शुरू करें। सीखते रहें, हर अनुभव को सीखने का अवसर मानें। सकारात्मक संगति रखें, प्रेरक लोगों और पुस्तकों का साथ लें। स्वास्थ्य का ध्यान रखें, तनाव कम करने के लिए व्यायाम, योग और ध्यान करें।

विपरीत परिस्थितियाँ रुकावट नहीं, बल्कि नए अवसरों का द्वार होती हैं। असफलता में बहाने न बनाकर, अपनी कमियों को पहचानना और धैर्यपूर्वक आगे बढ़ना ही सच्ची सफलता है। याद रखिए, यह समय भी निकल जाएगा।
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं


