






भटनेर पोस्ट ब्यूरो.
कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और जाट समाज के प्रमुख चेहरे रामेश्वर लाल डूडी का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। उनका जाना न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए अपूरणीय क्षति है, बल्कि राजस्थान के किसान समुदाय के लिए भी गहरा झटका है। डूडी का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव बीरमसर ले जाया गया। आज अंतिम संस्कार किया गया। इसमें पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत, प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सहित कई दिक्कज नेताओं ने भाग लिया। गहलोत और डोटासरा ने अंतिम यात्रा के वक्त अपने पुराने साथी को कंधा दिया।
रामेश्वर लाल डूडी का जन्म 1 जुलाई 1963 को बीकानेर जिले की नोखा तहसील के बीरमसर गांव में एक साधारण किसान परिवार में हुआ था। उन्होंने छात्र जीवन से ही राजनीति में सक्रियता दिखाई। एनएसयूआई से जुड़कर उन्होंने छात्र आंदोलनों में भाग लिया और अपनी पहचान बनाई। 1995 में डूडी नोखा पंचायत समिति के प्रधान बने, जो उनके राजनीतिक सफर का पहला महत्वपूर्ण पड़ाव था।

राजनीतिक करियर में उनका अगला मील का पत्थर 2004 का लोकसभा चुनाव था, जिसमें वे बीकानेर से सांसद चुने गए। हालांकि 2009 में दोबारा लोकसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा, लेकिन उन्होंने हार के बाद भी राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय भूमिका निभाई। 2013 के विधानसभा चुनाव में नोखा से विधायक बने और तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सरकार के खिलाफ विधानसभा में विपक्ष के नेता के रूप में अपनी मजबूती साबित की।

डूडी की पहचान उनकी आक्रामक शैली और किसानों, मजदूरों, दलितों तथा पिछड़ों के हक के लिए सख्त रुख के लिए थी। यही कारण था कि वे ‘डूडी भैया’ के नाम से लोकप्रिय हुए। उन्होंने दो बार बीकानेर जिला प्रमुख का पद संभाला और विधायक रहते हुए राजस्थान एग्रो इंडस्ट्रीज डेवलपमेंट बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। डूडी ने सिंचाई, कृषि सुधार और ग्रामीण विकास जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर विशेष ध्यान दिया।

उनके निधन पर मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा ने ट्वीट कर कहा कि रामेश्वर डूडी राजस्थान की राजनीति के मजबूत स्तंभ थे और उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने उन्हें ‘किसानों का मसीहा’ बताते हुए कहा कि डूडी भाई का जाना कांग्रेस के लिए अपूरणीय क्षति है। कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने भी कहा कि डूडी केवल नेता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय के योद्धा थे।

डूडी के पारिवारिक जीवन की बात करें तो उनके पीछे पत्नी, दो पुत्र और एक पुत्री हैं, जो इस दुख की घड़ी में टूट चुके हैं। उनके निधन की खबर मिलते ही नोखा, डूंगरगढ़ और बीकानेर में हजारों समर्थक शोक व्यक्त करने के लिए जुट गए। किसान संगठनों ने शोक सभा बुलाई और उनके योगदान को याद किया।

किसान नेता रामविलास चोयल बताते हैं कि डूडी हमेशा किसानों के हक के लिए सड़कों पर उतरते थे और उनका जाना किसान आंदोलन के लिए बड़ी क्षति है। खासकर जाट वोट बैंक और ग्रामीण राजनीति में उनकी भूमिका के कारण राजस्थान कांग्रेस के लिए यह नुकसान और भी गंभीर है।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि डूडी का निधन कांग्रेस के लिए केवल भावनात्मक नहीं, बल्कि रणनीतिक चुनौती भी है। पार्टी के भीतर उनकी मजबूत पकड़ और किसानों के बीच उनका जनप्रिय चेहरा अब कांग्रेस को नए नेतृत्व और आंदोलन के तरीकों की जरूरत पर मजबूर करेगा। अंततः, रामेश्वर लाल डूडी का जीवन किसानों, समाज और राजनीति के लिए संघर्ष का प्रतीक रहा। उनके योगदान और उनके संघर्ष की गूँज लंबे समय तक राजस्थान के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य में सुनाई देगी। उनका जाना पार्टी और किसानों दोनों के लिए शून्य छोड़ गया है, जिसे भरना आसान नहीं होगा।


