वेद व्यास की कविता: फिर से मन के दीप जलाओ

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वेदव्यास
फिर से मन के दीप जलाओ
विश्ववासों के शब्द जगाओ
छोटे-छोटे अंधियारों में
खुशियों के संसार सजाओ।

जीवन के सूने आंगन में
स्मृतियों की जोत जलाओ
बहुत समय हलचल में बीता
अब कुछ देर सहज हो जाओ।

बीता समय नहीं आता है
सपनों के सुरताल बजाओ
सुबह शाम के सन्नाटों में
आशा का उन्माद जगाओ।

सब कुछ भीतर छिपा हुआ है
मत बांधों कुछ बाहर आओ
सांसों के इस शीशमहल में
हंसो-हंसाओ झूमो गाओ।

फिर से मन के दीप जलाओ
रचना के संसार सजाओ
दुख के सपनों को बिसराओ
सुख का समय बधाई गाओ।

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