

भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
दिल्ली का चुनावी दंगल खत्म हो गया। आम आदमी पार्टी की करारी हार हुई और बीजेपी ने 27 साल बाद सत्ता में वापसी करते हुए शानदार प्रदर्शन किया, जबकि कांग्रेस अपनी खोई हुई सियासी जमीन हासिल करने में एक बार फिर नाकाम रही। यह चुनाव कई मायनों में ऐतिहासिक रहा, जिसमें बीजेपी की रणनीति, आम आदमी पार्टी की कमजोरियां और कांग्रेस की विफलता ने मिलकर परिणाम को प्रभावित किया। आइए इन पहलुओं को विस्तार से समझते हैं।
सबसे पहले आम आदमी पार्टी की हार के प्रमुख कारणों पर गौर करना लाजिमी होगा। दरअसल, आम आदमी पार्टी पिछले दस साल से सत्ता में थी, और इस दौरान जनता में सरकार के प्रति असंतोष बढ़ा। शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधारों के बावजूद, रोजगार, महिला सुरक्षा और प्रदूषण जैसे मुद्दों पर सरकार घिरी रही। शराब नीति घोटाला, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के सहयोगियों पर लगे आरोप और पार्टी के शीर्ष नेताओं की गिरफ़्तारी से ‘आप’ की छवि को गहरा धक्का लगा। बीजेपी ने इस मुद्दे को जोर-शोर से भुनाया। इसी तरह दिल्ली की सरकार अक्सर केंद्र सरकार से टकराव की स्थिति में रही। बीजेपी ने इस नैरेटिव को गढ़ा कि ‘आप’ सरकार दिल्ली की बेहतरी के लिए केंद्र से सहयोग लेने में नाकाम रही, जिससे जनता का रुख बदल गया। साल 2015 और 2020 में केजरीवाल का करिश्मा वोटरों को अपनी ओर खींचने में सफल रहा था, लेकिन इस बार वे जनता के आक्रोश को कम करने में नाकाम रहे। उनकी पुरानी रणनीतियां असरदार साबित नहीं हुईं। वहीं, बीजेपी ने दिल्ली के मतदाताओं, खासकर मध्यवर्ग और हिंदू वोट बैंक को लामबंद करने में सफलता हासिल की। ‘आप’ पर तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाकर बीजेपी ने हिंदू मतदाताओं को बड़ी संख्या में अपने पक्ष में किया। इसमें दो राय नहीं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और बीजेपी की मजबूत चुनावी मशीनरी ने दिल्ली के मतदाताओं को प्रभावित किया। ‘मोदी गारंटी’ और ‘डबल इंजन सरकार’ का वादा बीजेपी के पक्ष में गया। दिल्ली में प्रदूषण, जल संकट और ट्रैफिक जाम जैसी समस्याओं का समाधान न कर पाने से ‘आप’ सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े हुए।

बीजेपी ने दिल्ली में ग्राउंड लेवल पर बूथ प्रबंधन, माइक्रो कैंपेनिंग और सोशल मीडिया का जबरदस्त इस्तेमाल किया। पार्टी ने हर विधानसभा सीट पर स्थानीय नेताओं को जिम्मेदारी दी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कई चुनावी सभाओं में दिल्ली के विकास के लिए बीजेपी को वोट देने की अपील की। उनका प्रभाव खासतौर पर शहरी और मध्यमवर्गीय मतदाताओं पर दिखा। बीजेपी ने ‘आप’ की मुफ्त बिजली-पानी और सुविधाओं को ‘रेवड़ी कल्चर’ बताया, जिससे मध्यवर्गीय मतदाता प्रभावित हुआ। बीजेपी ने अपनी योजनाओं को ‘सशक्तिकरण’ से जोड़ा और वोटरों को विकास का नया मॉडल दिखाया। हिंदू वोटरों को जोड़ने के लिए बीजेपी ने ‘लव जिहाद’, ‘रोहिंग्या घुसपैठ’, ‘दिल्ली में कानून-व्यवस्था’ जैसे मुद्दों को उछाला। इससे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण हुआ और हिंदू मतदाता संगठित हुआ। साथ ही, बीजेपी ने विपक्ष की अंदरूनी कलह का पूरा फायदा उठाया। कांग्रेस और ‘आप’ के बीच तालमेल की कमी से बीजेपी को स्पष्ट बढ़त मिली। बीजेपी इस चुनाव को 2029 के आम चुनाव की तैयारी के रूप में देख रही थी। इसलिए उसने कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी और हर स्तर पर चुनावी प्रबंधन को धारदार बनाया। चुनाव जीतने के लिए बीजेपी पर सरकारी संस्थाओं के दुरुपयोग के भी आरोप लगे। चुनाव आयोग और एंटी करप्शन ब्यूरो आदि संस्थाओं की कार्यशैली से इन आरोपों को बल मिला है। भाजपा में भी अब इस तरह की बातों को परोक्ष रूप से स्वीकार किया जाने लगा है। पार्टी के नेता मानते हैं कि मीडिया का बड़ा तबका सत्ता के साथ नजर आ रहा है, इसलिए इस तरह के गंभीर मसले व्यापक स्तर पर उभर नहीं पाते। साथ ही वे कहना नहीं भूलते कि सत्ता में रहकर कांग्रेस और अन्य पार्टियों ने भी सरकारी एजेंसियों का दुुरुपयोग किया है, इसलिए अब बीजेपी को मौका मिला है तो किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए। खैर।
अब जरा कांग्रेस की स्थिति पर भी चर्चा कर ली जाए। कांग्रेस ने इस चुनाव में बद से बदतर प्रदर्शन किया। पार्टी ने कुछ सीटों पर ‘आप’ को नुकसान पहुंचाया, लेकिन खुद को विकल्प के रूप में पेश नहीं कर सकी। कांग्रेस का कोई दमदार स्थानीय नेता नजर नहीं आया, जिससे पार्टी का ग्रासरूट सपोर्ट खत्म हो गया। दिल्ली में कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक या तो ‘आप’ की ओर गया या फिर बीजेपी के पक्ष में ध्रुवीकृत हो गया। कुल मिलाकर, यह चुनाव भारतीय राजनीति में एक अहम मोड़ साबित हो सकता है, क्योंकि इससे बीजेपी को राष्ट्रीय राजधानी में बड़ी मजबूती मिली, जबकि आम आदमी पार्टी को पुनर्गठन और आत्मचिंतन की जरूरत होगी। देखना यह है कि बीजेपी जनादेश के साथ मिली उम्मीदों की चुनौतियों से कैसे निपटेगी।
