







गोपाल झा.
राजस्थान की राजनीति में हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर का विशेष महत्व है। सीमावर्ती भूगोल, कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था और पंजाबी-सिख मतदाताओं की निर्णायक भूमिका इन जिलों को हर चुनाव में सुर्खियों में रखती है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों से यही इलाका बीजेपी के लिए ‘जी का जंजाल’ साबित हो रहा है। विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मिली शिकस्त ने पार्टी का आत्मविश्वास डगमगा दिया है। नतीजा यह है कि भाजपा स्थानीय निकाय और पंचायतीराज चुनावों में उतरने से पहले कई बार सोच-समझ रही है।

हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिलों में पंजाबी समुदाय की संख्या प्रभावी है। नोहर और भादरा को छोड़कर लगभग सभी विधानसभा क्षेत्रों में पंजाबी मतदाता निर्णायक स्थिति में रहते हैं। लंबे समय तक भाजपा ने इन्हीं पंजाबी वोटर्स और किसान संगठनों की मदद से राजनीतिक आधार तैयार किया। लेकिन किसान आंदोलन ने इस समीकरण को बुरी तरह तोड़ दिया। आंदोलन के दौरान भाजपा को ‘किसान विरोधी’ पार्टी के रूप में प्रचारित किया गया, और इसी पृष्ठभूमि में पंजाबी व किसान वर्ग भाजपा से दूर हो गए। यह दूरी आज भी जस की तस है, जबकि पार्टी लगातार पुल बनाने की कोशिश कर रही है।

सूत्र बताते हैं कि भाजपा आलाकमान इस मसले पर लगातार चिंतन-मंथन कर रहा है। पार्टी की चिंता साफ है, यदि पंजाबी और किसान वर्ग को साधने में नाकाम रही, तो आगामी चुनावों में उसका ग्राफ और गिर सकता है। यही वजह है कि संगठनात्मक स्तर पर अब पंजाबी वर्ग से जुड़े कार्यकर्ताओं को अधिक महत्व देने की रणनीति तैयार हो रही है।

इस रणनीति का सबसे बड़ा हिस्सा है विधायक गुरवीर सिंह बराड़ को ‘मुख्यधारा’ में लाना। बराड़ न केवल पंजाबी वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं, बल्कि स्थानीय किसानों से भी उनका गहरा जुड़ाव है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि मंत्रिमंडल फेरबदल के दौरान उन्हें मंत्री पद से नवाजा जा सकता है। भाजपा और सरकार जिस तरह से उन्हें मंच और तवज्जो दे रही है, उससे यह संकेत साफ है कि आने वाले समय में उनका कद बढ़ाने की तैयारी है। पार्टी मान रही है कि बराड़ को आगे लाकर पंजाबी समुदाय और किसान वर्ग में सकारात्मक संदेश भेजा जा सकता है।

पार्टी ने केवल एक नाम पर दांव लगाने की बजाय वैकल्पिक योजना भी तैयार की है। हर विधानसभा क्षेत्र में आधा दर्जन सिख कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी जा सकती है। इसका उद्देश्य यह जताना है कि भाजपा पंजाबी और किसान वर्ग को साथ लेकर चलना चाहती है। इस रणनीति से संगठनात्मक मजबूती भी बढ़ेगी और चुनावी संदेश भी स्पष्ट जाएगा।

देखा जाए तो हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर जिले में भाजपा का कमजोर होना उसे परेशान कर रहा है। यही वजह है कि निकाय और पंचायतीराज चुनाव से पहले वह पंजाबी और किसान मतदाताओं को अपनी तरफ खींचने की हरसंभव कोशिश कर रही है। पार्टी की योजना है कि हर विधानसभा क्षेत्र से आधा दर्जन सिख कार्यकर्ताओं को मुख्यधारा में लाया जाए। इसके लिए क्षेत्रीय क्षत्रपों से राय-मशविरा कर जिम्मेदारियां सौंपी जाएंगी।

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि भाजपा की इस कवायद से तुरंत परिणाम मिलना मुश्किल है। किसान आंदोलन के बाद पैदा हुई वैचारिक खाई को केवल पद और जिम्मेदारी देकर पाटना आसान नहीं होगा। पंजाबी और किसान मतदाता अब ठोस नीतिगत फैसलों की अपेक्षा कर रहे हैं। खासकर एमएसपी, सिंचाई, मंडी सुधार और सीमा सुरक्षा जैसे मुद्दों पर भाजपा की नीतियां ही उनके रुख को प्रभावित करेंगी।

इस बीच कांग्रेस और अन्य दलों ने इस मौके का लाभ उठाया है। किसान आंदोलन के दौरान कांग्रेस ने खुलकर किसानों का समर्थन किया, जिससे उसे इस वर्ग में सहानुभूति मिली। निकाय और पंचायतीराज चुनावों में कांग्रेस इस सहानुभूति को वोटों में बदलने का प्रयास करेगी। वहीं, ‘आप’ जैसी नई ताकतें भी पंजाब से सटे इन इलाकों में पंजाबी वोटर्स को आकर्षित करने का प्रयास कर रही हैं।

कुल मिलाकर, भाजपा ने पंजाबी और किसान वोट बैंक को साधने के लिए संगठनात्मक प्रयोग शुरू कर दिए हैं। लेकिन यह यात्रा आसान नहीं है। विधायक गुरवीर सिंह बराड़ जैसे चेहरों को आगे कर पार्टी संदेश देने की कोशिश कर रही है, वहीं सिख कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी देकर संगठन में नई ऊर्जा भरना चाहती है। बावजूद इसके, असली कसौटी तभी होगी जब पंजाबी और किसान वर्ग भाजपा को ‘अपने हितैषी’ के रूप में फिर से स्वीकार कर लें। आगामी निकाय और पंचायतीराज चुनाव भाजपा के लिए ‘लिटमस टेस्ट’ साबित होंगे। यदि पंजाबी और किसान मतदाता पाले में लौटे तो पार्टी प्रदेश की राजनीति में नए सिरे से मजबूती हासिल कर सकती है, अन्यथा हनुमानगढ़ और श्रीगंगानगर भाजपा के लिए लंबे समय तक ‘सियासी सिरदर्द’ बने रहेंगे।

