



भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान ही नहीं, देश भर की राज्य सरकारों में डॉ. किरोड़ीलाल मीणा संभवतः ऐसे इकलौते कैबिनेट मंत्री हैं जो न सरकारी बंगले में रहते हैं और न ही सरकारी वाहन का उपयोग करते हैं। सरकार ने उनके नाम से आबंटित बंगले को रद्द कर दिया है, लेकिन उन्होंने उससे पहले ही सरकारी आवास में रहने से इनकार कर दिया था। यह उनकी सादगी और जनता से जुड़ाव का परिचायक है। उनके समर्थक इसे ईमानदारी की मिसाल मानते हैं, जबकि विरोधी इसे सरकार पर दबाव बनाने की रणनीति बताते हैं।
नाराजगी के कारण
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी की असली वजह उनकी अपनी ही सरकार के खिलाफ उठाए गए आरोप हैं। उन्होंने खुले तौर पर सरकार पर फोन टेपिंग का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि सरकार के इशारे पर उनके फोन कॉल्स को ट्रैक किया जा रहा है, जिससे उनकी निजता का उल्लंघन हो रहा है। यह आरोप सरकार के लिए असहज स्थिति पैदा कर रहा है। इसके अलावा, डॉ. मीणा कई बार अपने समाज और क्षेत्र की अनदेखी का आरोप भी लगा चुके हैं। वे चाहते हैं कि सरकार आदिवासी समाज के लिए खास योजनाएं लागू करे और विकास कार्यों में पारदर्शिता बरते।
भाजपा की राजनीति पर असर
डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी भाजपा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है। वे पूर्वी राजस्थान के मीणा समाज के बड़े नेता हैं और उनकी समाज में गहरी पकड़ है। राजस्थान की राजनीति में मीणा समाज का वोट बैंक निर्णायक भूमिका निभाता है। ऐसे में उनकी नाराजगी भाजपा के लिए सियासी नुकसान का कारण बन सकती है। अगर उनकी नाराजगी लंबी चलती है तो भाजपा को आगामी चुनावों में इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। हालांकि, पार्टी नेतृत्व लगातार उन्हें मनाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अब तक कोई ठोस नतीजा सामने नहीं आया है।
विकल्प क्या हैं?
कई राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी सिर्फ सरकार की नीतियों तक सीमित नहीं है, बल्कि उनके सियासी भविष्य से भी जुड़ी हो सकती है। वे खुद को राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका में देखना चाहते हैं। अगर भाजपा नेतृत्व उनकी मांगों को अनदेखा करता है, तो उनके पास अलग राह चुनने का विकल्प भी हो सकता है। डॉ. किरोड़ीलाल मीणा की नाराजगी न सिर्फ भाजपा के लिए चेतावनी है, बल्कि राजस्थान की राजनीति में एक नई हलचल का संकेत भी है। उनकी सादगी और ईमानदारी की छवि उन्हें जनता के बीच लोकप्रिय बनाती है, लेकिन उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं पार्टी के लिए सिरदर्द भी बन सकती हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि भाजपा नेतृत्व उनकी नाराजगी को कैसे दूर करता है और राजस्थान की सियासत में इस नाराजगी का क्या असर पड़ता है।


