





गोपाल झा.
बिहार विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है और सियासत के मैदान में इस बार सुरों की गूंज सुनाई दे रही है। राजनीतिक दलों की रणनीति अब सिर्फ जातीय गणित या संगठन पर नहीं, बल्कि लोकप्रिय चेहरों के करिश्मे पर भी टिकती जा रही है। बीजेपी से लेकर जन सुराज तक, हर पार्टी कलाकारों को अपने खेमे में लाने की कवायद में जुटी है। लगता है, इस बार बिहार की सियासत में कलाकारों की चांदी होने वाली है। भोजपुरी सिनेमा और गायकी का बिहार की जनता के बीच खास स्थान है। यहां के कलाकार सिर्फ मंचों तक सीमित नहीं, बल्कि लोगों की भावनाओं और रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा हैं। यही कारण है कि पार्टियां अब इन कलाकारों को अपने ‘वोट कैप्चर टूल’ के रूप में देख रही हैं।

सबसे पहले चर्चा बीजेपी की। पार्टी ने चुनावी अखाड़े में उतरने से पहले ही बड़ा दांव खेल दिया है। भोजपुरी सुपरस्टार पवन सिंह ने दोबारा बीजेपी का दामन थाम लिया है। पवन सिंह की लोकप्रियता का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उनके गानों के करोड़ों व्यूज़ आते हैं और बिहार-पूर्वांचल के युवाओं में उनका जबरदस्त क्रेज है। बीजेपी जानती है कि पवन सिंह का चेहरा न सिर्फ भोजपुरी बेल्ट में वोट दिला सकता है, बल्कि युवाओं में ऊर्जा और आकर्षण भी पैदा कर सकता है।

इसी कड़ी में मैथिली ठाकुर का नाम सबसे ज्यादा चर्चा में है। मिथिला की यह बेटी अपनी मधुर आवाज़ और भारतीय लोकसंस्कृति के प्रति समर्पण के लिए जानी जाती है। मैथिली ठाकुर ने हाल ही में बयान दिया कि अगर उन्हें बेनीपट्टी विधानसभा क्षेत्र से टिकट मिला, तो वे चुनाव मैदान में उतरेंगी। बीजेपी के लिए यह ‘तीर से तीन निशाने’ वाला दांव है, ब्राह्मण, महिला और युवा। मिथिलांचल में ब्राह्मण वोट परंपरागत रूप से निर्णायक भूमिका निभाता रहा है, और मैथिली ठाकुर जैसी लोकप्रिय हस्ती को टिकट देकर पार्टी उस समीकरण को भुनाना चाहती है।

मधुबनी क्षेत्र में भी राजनीतिक हलचल तेज है। यहां कुंजबिहारी मिश्रा का नाम चर्चा में है। वे मैथिली संगीत के स्थापित गायक हैं और स्थानीय स्तर पर बड़ी फैन फॉलोइंग रखते हैं। हालांकि, जातीय समीकरण के चलते उनकी राह आसान नहीं मानी जा रही। मिथिलांचल में एक ही समुदाय से कई टिकट देना बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण है, लेकिन मिश्रा अपने समर्थकों के जरिए लगातार दबाव बनाए हुए हैं।

भोजपुरी गीतकार और तीन बार के विधायक विनय बिहारी पहले से ही बीजेपी में हैं। उनके प्रति पार्टी का भरोसा कायम है और लगभग तय है कि उन्हें फिर टिकट मिलेगा। विनय बिहारी का अनुभव और जनसंपर्क दोनों ही बीजेपी के लिए फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

दूसरी ओर, भोजपुरी फिल्मों के सुपरस्टार खेसारीलाल यादव भी इस चुनावी मौसम में सुर्खियों में हैं। हालांकि उन्होंने अभी तक औपचारिक रूप से कुछ नहीं कहा, लेकिन सूत्र बताते हैं कि वे सपा प्रमुख अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं। अटकलें हैं कि वे आरजेडी से चुनाव लड़ सकते हैं। अगर ऐसा होता है, तो भोजपुरी बेल्ट में मुकाबला और दिलचस्प हो जाएगा।

राधेश्याम रसिया, जो अपने देहाती गीतों के लिए प्रसिद्ध हैं, इस बार विधानसभा चुनाव लड़ने के मूड में बताए जा रहे हैं। पिछली बार वे पश्चिमी चंपारण से लोकसभा चुनाव लड़ना चाहते थे, लेकिन बात नहीं बनी। इस बार वे किसी भी पार्टी से टिकट पाने की कोशिश में हैं।

वहीं, प्रशांत किशोर (पीके) की पार्टी जन सुराज भी इस दौड़ में पीछे नहीं है। भोजपुरी गायक और अभिनेता रितेश पांडे ने जन सुराज का दामन थाम लिया है। मिथिलांचल और भोजपुर क्षेत्र में उनकी अच्छी लोकप्रियता है और पीके इस लोकप्रियता को जन आंदोलन में बदलने की कोशिश कर रहे हैं। सूत्रों के अनुसार, कुछ और गायक और अभिनेता भी जन सुराज से जुड़ सकते हैं।
राजनीतिक विश्लेषक सौरभ रंजन इस रुझान को बदलते दौर की राजनीति का प्रतिबिंब मानते हैं। वे ‘भटनेर पोस्ट डॉट कॉम’ से कहते हैं, ‘आज राजनीति में विचारधारा से ज्यादा मायने रखता है व्यक्ति का प्रभाव। बीजेपी जैसी कैडर आधारित पार्टी भी अब जीतने वाले चेहरों की तलाश में है। यही कारण है कि अभिनेता, गायकों, खिलाड़ियों तक को टिकट दिया जा रहा है। यह ट्रेंड सिर्फ बिहार में नहीं, बल्कि पूरे देश में दिख रहा है।’

बिहार की राजनीति हमेशा से जातीय समीकरणों और सामाजिक गठजोड़ों पर आधारित रही है। लेकिन इस बार ‘लोकप्रियता’ नया समीकरण बन गई है। अब जनता यह तय करेगी कि ‘सुर’ और ‘सियासत’ का यह संगम कितना असरदार साबित होता है। फिलहाल इतना तय है कि बिहार के इस चुनावी रण में राजनीतिक रैलियों के साथ-साथ सुरों का शोर भी गूंजेगा, और शायद यही सुर तय करेंगे कि सत्ता की डगर किस ओर मुड़ती है।
-लेखक भटनेर पोस्ट मीडिया ग्रुप के चीफ एडिटर हैं


