






भटनेर पोस्ट पॉलिटिकल डेस्क.
राजस्थान विधानसभा का सत्र जैसे ही 1 सितंबर से शुरू हुआ, सदन का माहौल पहले ही दिन सियासी गर्माहट से भर उठा। विपक्ष ने आक्रामक तेवर अपनाते हुए सदन के बाहर ‘वोट चोर’ लिखी तख्तियां लहराईं और नारेबाजी की, ‘वोट चोर सावधान, जाग गया हिंदुस्तान’ और ‘वोट चोर गद्दी छोड़ो।’

कांग्रेस विधायकों का यह विरोध महज़ प्रतीकात्मक नहीं था, बल्कि सत्ता पक्ष को चुनौती देने की एक रणनीतिक शुरुआत थी। विधायक आवासीय परिसर से कांग्रेस विधायक दल पैदल मार्च करते हुए विधानसभा पहुंचे और एकजुटता का संदेश दिया। वहीं, सत्ता पक्ष ने मुख्यमंत्री भजनलाल शर्मा का जोरदार स्वागत कर यह जताने की कोशिश की कि सरकार आत्मविश्वास से भरी है।

सत्र के पहले दिन सरकार की ओर से कई अहम विधेयक और अध्यादेश सदन में रखे गए। चिकित्सा मंत्री गजेंद्र सिंह खींवसर ने राजस्थान स्वास्थ्य विश्वविद्यालय (संशोधन) अध्यादेश, 2025 पेश किया। कारखाना संशोधन विधेयक खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति मंत्री सुमित गोदारा ने रखा। वहीं, वित्त मंत्री और डिप्टी सीएम दिया कुमारी ने माल एवं सेवा कर द्वितीय संशोधन विधेयक सदन में रखा।

हालांकि, विधायी कार्यवाही से अधिक ध्यान विपक्ष की आक्रामक रणनीति और स्पीकर की सख्ती पर रहा। स्पीकर वासुदेव देवनानी ने विपक्षी विधायकों को चेतावनी दी कि वे भाषा की मर्यादा रखें। उन्होंने कहा, ‘आप सड़क या चौराहे पर नहीं, बल्कि विधानसभा जैसे सम्मानित सदन में हैं।’

जब नेता प्रतिपक्ष ने शोकाभिव्यक्ति के दौरान अपनी बात रखनी चाही, तो स्पीकर ने सख्ती से मना कर दिया और स्पष्ट कर दिया कि ‘सदन नियम और प्रक्रिया से चलेगा।’

सत्र की शुरुआत ने ही संकेत दे दिया है कि आने वाले दिनों में सरकार और विपक्ष के बीच तल्ख़ बहसें और जोरदार टकराव देखने को मिलेंगे। कांग्रेस अपने ‘वोट चोर’ अभियान के जरिए जनभावनाओं को हवा देने की कोशिश कर रही है, जबकि भाजपा सरकार विधायी एजेंडे को आगे बढ़ाने और विपक्षी हमलों को झेलने की रणनीति पर काम कर रही है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों की मानें तो इस बार का मानसून सत्र महज़ विधेयक पारित करने का मंच नहीं होगा, बल्कि सत्ता और विपक्ष के बीच साख और संघर्ष की असली परीक्षा बनेगा।




