क्या गुल खिलाएगी ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति ?

image description

डॉ. संतोष राजपुरोहित.
साल 2025 में डोनाल्ड ट्रम्प ने अमेरिका के राष्ट्रपति के रूप में दूसरी बार कार्यभार संभाल लिया है। उनके कार्यकाल के पहले कुछ महीनों में ही उन्होंने अपनी ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति को फिर से लागू करने के संकेत दिए हैं। इससे वैश्विक अर्थव्यवस्था और व्यापारिक संबंधों में बदलाव की संभावनाएँ बढ़ गई हैं। भारत और अमेरिका के बीच आर्थिक संबंध मजबूत हैं, लेकिन ट्रम्प प्रशासन की नई नीतियाँ भारतीय अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को प्रभावित कर सकती हैं। ट्रम्प ने पहले कार्यकाल में कई देशों पर व्यापार शुल्क बढ़ाया था, और अब उनके फिर से राष्ट्रपति बनने के बाद भारतीय वस्तुओं पर भी उच्च शुल्क लगाने की संभावना है। इससे आईटी, फार्मा, टेक्सटाइल, ऑटो पार्ट्स और स्टील जैसे उत्पादों पर अधिक टैरिफ लग सकता है, जिससे भारतीय निर्यात महँगा हो जाएगा। यदि ट्रम्प ‘मेड इन अमेरिका‘ को और सख्त करते हैं, तो अमेरिकी कंपनियाँ भारत में निवेश कम कर सकती हैं। यदि ट्रम्प चीन पर अधिक प्रतिबंध लगाते हैं, तो अमेरिकी कंपनियाँ भारत को उत्पादन केंद्र के रूप में अपना सकती हैं। ट्रम्प ने पहले कार्यकाल में एच-1बी वीजा पर सख्ती की थी, जिससे भारतीय आईटी पेशेवरों को दिक्कत हुई थी। उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद, अमेरिका में भारतीय टेक कर्मचारियों को चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। भारतीय आईटी कंपनियों के लिए अमेरिकी बाजार में काम करना मुश्किल हो सकता है। अमेरिका में भारतीय पेशेवरों के लिए नौकरियाँ कम हो सकती हैं। इससे भारत में टेक सेक्टर को घरेलू अवसरों पर अधिक ध्यान देना पड़ सकता है।
भारत अमेरिकी बाजार को बड़ी मात्रा में जेनेरिक दवाएँ निर्यात करता है। यदि ट्रम्प हेल्थकेयर नीति में बदलाव करते हैं और भारतीय दवा कंपनियों पर अधिक प्रतिबंध लगाते हैं, तो इस क्षेत्र को नुकसान हो सकता है। ट्रम्प प्रशासन भारत के साथ रक्षा संबंध मजबूत करने का इच्छुक हो सकता है, विशेष रूप से चीन के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए। इससे भारत को अमेरिकी सैन्य उपकरण और तकनीक मिलने की संभावना बढ़ सकती है। अमेरिका-भारत रक्षा साझेदारी को बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्वदेशी रक्षा उद्योग को भी फायदा होगा। हालाँकि, अगर ट्रम्प रूस के साथ संबंध सुधारते हैं, तो भारत के लिए यह कूटनीतिक चुनौती हो सकती है।
रुपये की स्थिरता और विदेशी मुद्रा भंडार
ट्रम्प की नीतियों के कारण यदि वैश्विक बाजार में डॉलर मजबूत होता है, तो रुपये पर दबाव बढ़ सकता है। यदि ट्रम्प ब्याज दरें बढ़ाते हैं, तो विदेशी निवेश भारत से बाहर जा सकता है। इससे भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता आ सकती है। ट्रम्प की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति से भारतीय बाजार में अमेरिकी निवेश घट सकता है। लेकिन, यदि अमेरिका चीन पर अधिक प्रतिबंध लगाता है, तो भारत में निवेश बढ़ सकता है।


तेल और ऊर्जा क्षेत्र पर प्रभाव
ट्रम्प प्रशासन ने पहले ईरान पर सख्त प्रतिबंध लगाए थे, जिससे भारत को सस्ता ईरानी तेल खरीदने में दिक्कत हुई थी। अब फिर से उनके सत्ता में आने के बाद यदि अमेरिका ईरान या अन्य तेल उत्पादक देशों पर प्रतिबंध लगाता है, तो कच्चे तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं। भारत का तेल आयात महँगा हो सकता है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ सकता है। महँगाई दर पर दबाव बढ़ सकता है, जिससे भारतीय उपभोक्ताओं को झटका लग सकता है।
भारत की रणनीति और संभावित लाभ
हालाँकि ट्रम्प की नीतियाँ भारत के लिए कुछ चुनौतियाँ ला सकती हैं, लेकिन कुछ क्षेत्रों में अवसर भी मिल सकते हैं। मसलन, अगर अमेरिका चीन पर प्रतिबंध बढ़ाता है, तो भारत को वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला के रूप में फायदा मिल सकता है। ट्रम्प की नीतियों से भारत में विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा मिल सकता है, क्योंकि अमेरिकी कंपनियाँ चीन के बजाय भारत को उत्पादन केंद्र बना सकती हैं। अगर अमेरिकी कंपनियाँ भारत में निवेश जारी रखती हैं, तो भारतीय स्टार्टअप्स और डिजिटल सेक्टर को फायदा मिल सकता है।
कहना गलत न होगा कि डोनाल्ड ट्रम्प के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद भारत-अमेरिका संबंधों में कई बदलाव आ सकते हैं। व्यापार, आईटी, फार्मा, रक्षा, तेल और निवेश जैसे प्रमुख क्षेत्रों पर उनकी नीतियों का व्यापक प्रभाव पड़ेगा। भारतीय निर्यात पर अधिक टैरिफ लग सकता है। एच-1बी वीजा पर सख्ती से आईटी सेक्टर को नुकसान हो सकता है। तेल की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे भारतीय अर्थव्यवस्था पर दबाव बढ़ेगा। चीन पर प्रतिबंध बढ़ने से भारत को व्यापारिक फायदा हो सकता है। भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों को मजबूती मिल सकती है। स्टार्टअप और डिजिटल क्षेत्र को आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है।
अब सवाल यह है कि क्या भारत इसके लिए तैयार है? दरअसल, भारत को अपनी आत्मनिर्भर भारत रणनीति को मजबूत करना होगा, निवेश को आकर्षित करने के लिए नीतिगत सुधार करने होंगे और वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटने के लिए एक संतुलित व्यापार रणनीति अपनानी होगी। ट्रम्प प्रशासन की नीतियों से चुनौतियाँ तो हैं, लेकिन सही नीति अपनाकर भारत इनका लाभ भी उठा सकता है।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *