



डॉ. संतोष राजपुरोहित.
भारत में चुनावी राजनीति में मुफ्त सुविधाओं का बड़ा महत्व है। विभिन्न राजनीतिक दल जनता को आकर्षित करने के लिए मुफ्त बिजली, पानी, अनाज, लैपटॉप, और यहां तक कि नकद हस्तांतरण जैसी योजनाओं का वादा करते हैं। इसे आमतौर पर ‘फ्रीबी इकोनॉमिक्स’ कहा जाता है। हालांकि, इनका अर्थव्यवस्था पर दीर्घकालिक प्रभाव मिलाजुला होता है। देखा जाए तो इससे गरीब और वंचित वर्गों को तत्काल राहत मिलती है। उपभोक्ता मांग में वृद्धि होती है, जिससे आर्थिक गतिविधियाँ बढ़ सकती हैं। कुछ क्षेत्रों में सामाजिक विकास (शिक्षा, स्वास्थ्य) को बढ़ावा मिलता है। वहीं इसके दीर्घकालिक नुकसान भी होते हैं। मसलन, राजकोषीय घाटा बढ़ता है, जिससे सरकारी वित्तीय स्थिति कमजोर होती है।
उत्पादनशील निवेश की बजाय गैर-निष्पादित व्यय पर अधिक खर्च होता है। सब्सिडी पर अत्यधिक निर्भरता से लोगों की कार्यक्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। मुफ्त सुविधाओं का वित्तीय बोझ और करदाताओं पर प्रभाव भी मायने रखता है। सरकार को मुफ्त सुविधाओं के लिए संसाधन जुटाने होते हैं, जो मुख्य रूप से करदाताओं के पैसे से आते हैं। जब सरकारी व्यय बढ़ता है। मसलन, करों में वृद्धि हो सकती है, जिससे मध्यम वर्ग पर भार पड़ता है। राजकोषीय घाटा बढ़ने से मुद्रास्फीति बढ़ सकती है, जिससे वस्तुओं की कीमतें बढ़ जाती हैं। नए निवेश पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है क्योंकि सरकारी उधारी की लागत बढ़ती है।
अब सवाल यह उठता है कि क्या मुफ्त योजनाएँ पूरी तरह गलत हैं? नहीं, सभी मुफ्त योजनाएँ बुरी नहीं होतीं। यदि ये योजनाएँ लंबी अवधि में उत्पादकता और मानव पूंजी को बढ़ाती हैं, तो इनका सकारात्मक प्रभाव होता है। शिक्षा और स्वास्थ्य में निवेश यानी स्कूल, छात्रवृत्ति, मुफ्त स्वास्थ्य सेवाएँ। नवाचार और तकनीकी विकास को बढ़ावा दृ स्टार्टअप और उद्यमिता को समर्थन। आधारभूत ढांचे का विकास दृ पानी, बिजली, परिवहन सुविधाएँ। यदि मुफ्त योजनाएँ सिर्फ वोट बैंक की राजनीति के लिए हों और उनका सतत वित्तपोषण न हो, तो वे अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुँचा सकती हैं। मुफ्त सुविधाओं और आर्थिक स्थिरता के बीच संतुलन बड़ा मसला है। लक्षित लाभार्थी पहचान से सिर्फ जरूरतमंदों को लाभ मिले। संसाधनों का कुशल प्रबंधन और पारदर्शिता बढ़ाई जाए। राजकोषीय अनुशासन बनाए रखा जाए, ताकि घाटा नियंत्रित रहे। उत्पादक निवेश बढ़ाया जाए, जिससे आर्थिक वृद्धि हो और रोजगार बढ़ें।
अंततः ‘फ्रीबी इकोनॉमिक्सष्’एक दोधारी तलवार है। यदि मुफ्त योजनाएँ संवहनीय और उत्पादकता बढ़ाने वाली हों, तो वे आर्थिक विकास में मदद कर सकती हैं। लेकिन यदि वे राजनीतिक लाभ के लिए अस्थायी उपाय मात्र हैं, तो वे दीर्घकालिक रूप से अर्थव्यवस्था को कमजोर कर सकती हैं। अतः, सरकारों को जिम्मेदार आर्थिक नीतियों का पालन करना चाहिए, ताकि देश की वित्तीय स्थिरता बनी रहे और विकास को बढ़ावा मिले।
-लेखक भारतीय आर्थिक परिषद के सदस्य हैं


