

डॉ. अर्चना गोदारा.
वर्तमान दौर प्रतिस्पर्धा और दिखावे से भरा हुआ है इस दौर में व्यक्ति केवल परिवार और समाज से ही जंग नहीं लड़ रहा बल्कि वह खुद को श्रेष्ठ दिखाने के लिए, अपने आप से भी लड़ रहा है। दिखावे की इस अंधी दौड़ में व्यक्ति अपना और अपने परिवार के स्वास्थ्य का ध्यान नहीं रख पाता। फैशन और दिखावे के कारण वे ज्यादा से ज्यादा बाहर का भोजन और उसमे भी जंक फूड को खाना पसंद करते हैं। जंक फूड शब्द का पहली बार 1972 में प्रयोग किया गया था। जंक फूड के प्रति आकर्षण प्रारंभिक किशोरावस्था में अधिक तेजी से होता है। प्रारंभिक किशोरावस्था संपूर्ण जीवन की सबसे संवेदनशील अवस्था होती है क्योंकि यहां से जीवन का वास्तविक आरंभ होता है। इस उम्र के बालक और बालिकाएं तीव्र गति से सीखते हैं। प्रारंभिक किशोरावस्था 12 वर्ष से 18 वर्ष तक की मानी जाती है। जर्सील्ड (1978) ने कहा था कि किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें एक विकासशील व्यक्ति बाल्यावस्था से परिपक्वता की ओर बढ़ता है। यह अवस्था कुम्हार के एक कच्चे घड़े के समान होती है जिसे किसी भी प्रकार का रूप दिया जा सकता है। यदि माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश पर ध्यान ना दे तो वे शीघ्र ही गलत आदतों में पङ ज़ाते हैं तथा दिखावे की जिंदगी जीने को गर्व की बात समझने लगते हैं।

इस अवस्था में किशोर एवं किशोरियों में शारीरिक बदलाव के अलावा उन्हें परिवार के सदस्यों के व्यवहार में भी बदलाव दिखाई देता है।इस तरह के शारीरिक, मानसिक और व्यवहारिक बदलाव के कारण उनमें तनाव उत्पन्न होने लगता है। इसलिए वे अपना बहुत सा समय अपने परिवार के सदस्यों के बीच ना बिता कर अपने दोस्तों और साथियों के साथ बिताना पसंद करते हैं। इस अवस्था में शारीरिक व मानसिक विकास की परिपक्वता के कारण किशोर में शारीरिक एवं मानसिक स्वतंत्रता की भावना प्रबल रूप से जागती है। अतः वह माता-पिता और समाज के ऐसे नियम, प्रथा और रीति रिवाज तथा उनके आदर्शों का विरोध करते हैं जो उन्हें ठीक नहीं लगते या उन्हें बंधन के रूप में लगते हैं। इसलिए वह चुप-चुप कर बाहर घूमना, फिल्मों को देखना तथा रेस्टोरेंट में खाना, खाना पसंद करते हैं। यही से जंक फूड के प्रति आकर्षण बढ़ता है। उन्हें बाहर के भोजन में एक तरह का स्वाद आता है जो कि घर के भोजन में नहीं दिखाई देता। घर के वातावरण और भोजन में उन्हें तनाव की स्थिति दिखाई देती है। इससे बचने के लिए वे जंक फूड खाते हैं, क्योंकि विज्ञान के अनुसार जंक फूड खाने से व्यक्ति के शरीर में एक रस उत्पन्न होता है जिससे शरीर में प्रसन्नता का अनुभव होता है। इस प्रकार का भोजन स्वाद तो देता है परंतु शरीर में बहुत से पौष्टिक तत्वों की कमी हो जाती है। जिसके कारण व्यक्ति के बेजान बाल, त्वचा पीली होना, नाखून चपटे होना, झुर्रियां आना, पेट का बाहर निकलना, बेचौनी आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगती हैं।

यह सामान्य से दिखने वाली समस्याएं ही आगे चलकर व्यक्ति के अंदर तनाव को उत्पन्न करती है और फिर यह बड़ी समस्याओं के रूप में बदलने लगते हैं। जब तक शरीर को पौष्टिक भोजन नहीं मिलेगा। शरीर स्वस्थ नहीं रहेगा। 2008 में स्क्रिप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के पॉल जॉनसन और पाल केनी द्वारा चूहों पर किए गए एक अध्ययन से पता चला कि जंक फूड मस्तिष्क को इस तरह से प्रभावित करता है जैसे नशे की लत वाली दवाईयां।

आलू चिप्स, समोसा, पिज़्ज़ा, बर्गर, चाऊमीन, मैगी, चॉकलेट, सेंडविच आदि बहुत से जंक फूड बाजार में सरलता से और बहुत ही कम किमत में उपलब्ध हो जाते हैं, परंतु इसके अत्यधिक प्रयोग से या लगातार प्रयोग करने से हृदय रोग, कोलेस्ट्रॉल, कील, मुंहासे, सर, दर्द, अवसाद आदि समस्याएं उत्पन्न होने लगते हैं जिसकी वजह से व्यक्ति का दिमाग की संतुलन खराब होने लगता है। जंक फूड की लत लगना जितना आसान है उतना ही उसे रोका जाना भी संभव है, परंतु इसके लिए माता-पिता को अपने बच्चों को पर ध्यान देना होगा तथा धीरे-धीरे उनके खाने की आदतों में बदलाव लेकर आना होगा। माता-पिता को अपने बच्चों के साथ दोस्ताना व्यवहार करना होगा। उनसे बातचीत करनी होगी और उनकी आदत और उनकी परेशानियों को जानना होगा जिससे उनमें खाने की और अन्य गलत आदतों में भी सरलता से बदलाव लाया जा सके।

आज के युवा ही देश का भविष्य है। यदि उन पर अभी से ध्यान नहीं दिया गया तो बहुत सारी समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। बच्चे माता-पिता की जिम्मेदारी होती हैं। यदि माता-पिता उन पर शुरू से ध्यान दे तो बहुत सारी समस्याओं से निजात पाया जा सकता है। स्वस्थ शरीर खुशहाल परिवार का आधार होता है। इसलिए खुश रहिए, पौष्टिक भोजन कीजिए और तनाव मुक्त रहिए।दिखावे और फैशन के लिए स्वयं के जीवन और शरीर को खराब ना करें क्योंकि दिखावा अस्थाई होता है और स्वस्थ शरीर आगे बढ़ने और सफलता प्राप्त करने के आवश्यक होता है।
-लेखिका राजकीय एनएमपीजी कॉलेज में सहायक आचार्य हैं


