





डॉ. एमपी शर्मा.
नवरात्रों और अन्य धार्मिक अवसरों पर राजस्थान के सालासर बालाजी, पल्लू ब्राह्मणी माता, रामदेवरा रुणेचा और अनेक तीर्थस्थलों पर लाखों श्रद्धालु पहुँचते हैं। पैदल यात्राएँ, दुपहिया वाहन, ट्रैक्टर-ट्रॉली, हर जगह आस्था का सागर उमड़ता है। लेकिन इसी आस्था के बीच अनगिनत लोग दुर्घटनाओं में अपनी जान गवां बैठते हैं। सड़कें श्रद्धा की नहीं, सुरक्षा की भी माँग करती हैं

भारत में सड़क सुरक्षा की स्थिति अत्यंत चिंताजनक है। केंद्रीय सड़क व परिवहन मंत्रालय की ओर से उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक, वर्ष 2023 में कुल 4,80,583 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं और 1,72,890 लोगों की मृत्यु हुई। यानी हर दिन औसतन 1,317 दुर्घटनाएँ और 474 मौतें होती हैं। 2022 में भी स्थिति लगभग वैसी ही रही थी, जब 1,68,491 मौतें दर्ज हुई थीं। यह आँकड़े हमें चेतावनी देते हैं कि यह केवल दुर्घटनाएँ नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय संकट है।

2023 में मृतकों में से लगभग 44.8 फीसद दोपहिया वाहन सवार थे। मृतकों का सबसे बड़ा वर्ग 18.45 वर्ष की आयु का रहा, कुल मृतकों का लगभग 66.4 फीसद। पुरुषों की मृत्यु दर 85.2 फीसद, जबकि महिलाओं की 14.8 फीसद रही।

स्पष्ट है कि लापरवाही और असावधानी सबसे अधिक युवाओं की जान ले रही है। हेलमेट न पहनना, ट्रैक्टर-ट्रॉली जैसी असुरक्षित सवारी, सड़क घेरकर पैदल चलना या अव्यवस्थित भंडारे। ये सब श्रद्धा के नाम पर मौत को न्योता देने जैसे हैं।
आस्था का अर्थ जान जोखिम में डालना नहीं है। हेलमेट पहनें, सुरक्षित साधन चुनें, ट्रैफिक नियमों का पालन करें। सेवा पुण्य है, अव्यवस्था नहीं। भोजन वितरण नियोजित स्थानों पर हो, सड़कों पर जाम और अफरातफरी न फैले। नियम तोड़ने वालों पर सख्ती से कार्यवाही हो। ट्रैफिक के लिए विशेष प्लान बने, पैदल यात्रियों के लिए अलग मार्ग हों, असुरक्षित साधनों पर रोक लगे।
सुधार की दिशा में कुछ कदम उठाए जाने चाहिए। मसलन, तीर्थ यात्राओं के लिए विशेष ट्रैफिक प्लान तैयार हो। पैदल यात्रियों के लिए अलग लेन-मार्ग बनाए जाएँ। ट्रैक्टर-ट्रॉली और असुरक्षित साधनों पर प्रतिबंध लगे। भंडारों का पंजीकरण हो और उनकी जिम्मेदारी तय की जाए। श्रद्धा के साथ सुरक्षा का संदेश भी दिया जाए।

श्रद्धा जीवन को संजीवनी देती है, लेकिन लापरवाही मृत्यु को आमंत्रण देती है। सच्ची आस्था वही है जिसमें नियम और संयम का पालन हो। हमें यह तय करना है कि क्या हम अपनी आस्था को सुरक्षा के साथ जीना चाहते हैं या मौत से खेलना। आस्था की राह पर सुरक्षा अनिवार्य है, यही हमारी जिम्मेदारी, यही हमारी सच्ची भक्ति है।
-लेखक सामाजिक चिंतक, सीनियर सर्जन और आईएमए राजस्थान के प्रदेशाध्यक्ष हैं




