डॉ. रामप्रताप.
यूं तो हनुमानगढ़ को जिला बनाने की मांग वर्ष 1978 में उठने लगी थी। लेकिन इस पर कभी गौर नहीं किया गया। वर्ष 1993 में चुनाव से पहले की बात है। श्रीगंगानगर में किसान सम्मेलन था। मैं भी कुछ बसों से किसानों को लेकर गया था। आदरणीय भैरोसिंह शेखावत भी आए थे। सम्मेलन खत्म होने के बाद वे रेल से जयपुर रवाना हो गए। हनुमानगढ़ में टेन रूकी। मैं श्रीगंगानगर में लेट हो गया था। जब स्टेशन पहुंचा तो भैरोसिंह जी एक स्टॉल पर चाय पी रहे थे। उन्होंने मेरे कंधे पर हाथ रखा और रेल के डिब्बे की तरफ ले गए। बोले, ‘हनुमानगढ़ को जिला बनाने की मांग रखना। चुनाव में भी यह मांग प्राथमिकताओं में होनी चाहिए।’ सुनकर मुझे संतोष हुआ। मुझे और क्या चाहिए था। यही तो हम चाहते थे।
चुनाव हो गया। हम जीत गए। मुझे मंत्रिमंडल में जगह मिली। खाद्य एवं आपूर्ति विभाग मिला था। काम करने लगा लेकिन बार-बार जिला बनाने का वादा मुझे परेशान करता। दिक्कत यह थी कि सूरतगढ़ को जिला बनाने की मांग भी चल रही थी। मंत्रिमंडल में साथ रहने वाली एक मंत्री रावतसर को जिला बनाने की बात कहतीं। एक दिन उन्हें जवाब मिल गया कि पहले रावतसर में रेल की पटरियां बिछवाओ। रेलवे सुविधाएं मुहैया करवाओ, फिर इस तरफ सोचना।
खैर, सरकार बनने के दो महीने तक कोई हलचल नहीं हुई तो एक दिन मुख्यमंत्री से कह बैठा। शेखावत ने मेरी तरफ देखा और बोले, ‘आप मंत्री बन गए हो। आपको पता नहीं जिला कैसे बनता है ? बजट में घोषणा होती है। कुछ तो इंतजार करो।’ मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘वो तो पता है साब, लेकिन सब्र नहीं है, इसलिए आपसे कह बैठा।’ वो भी हंसने लगे। खैर, बजट आया और हनुमानगढ़ को जिला बनाने की घोषणा हो गई।
इधर, हनुमानगढ़ में विपक्ष के लोग तंज कसते। कार्यकर्ताओं से मजाक करते। कहते, ‘बना दिया जिला। ऐसे जिला बनता है क्या ?’ इस तरह की बातें सामने आतीं। सुनकर अफसोस होता। खैर, वो दिन भी आया, जब घोषणा होने के चार महीने बाद हनुमानगढ़ जिला बन गया। जिला कलक्टर व एसपी हनुमानगढ़ में पदस्थापित हो गए। लोगों को अब कलक्टर-एसपी से मिलने के लिए श्रीगंगानगर नहीं जाना पड़ता था। यह सब देख बेहद संतुष्टि मिलने लगी थी।
जिला बनने के बाद अकसर एक सवाल का सामना होता है कि क्या हनुमानगढ़ में जिले का स्वरूप दिखता है ? लगता है कि हनुमानढ़ जिला है ? दरअसल, यह सवाल सार्थक है। मैं पूरी ईमानदारी से कहना चाहता हूं कि जब भी मौका मिला, मैंने हनुमानगढ़ के विकास को लेकर सत्त प्रयास किया। जंक्शन और टाउन में ओवरब्रिज नहीं होने से आम जन को बेहद परेशानी होती थी। व्यक्तिगत प्रयासों से ओवरब्रिज का रास्ता प्रशस्त किया। इससे जिला मुख्यालय का स्वरूप कुछ तो बदला ही। पिछले कार्यकाल में सतीपुरा और चूना फाटक पर ओवरब्रिज मंजूर करवाया। जेल फाटक और श्रीगंगानगर फाटक पर भी ओवरब्रिज बनवाने का प्रयास किया जो काफी कारगर रहा लेकिन फिर सरकार बदल गई। रेलवे पटरियों की वजह से कॉलोनियों में रहने वालों को बेहद परेशान होना पड़ता था। मैंने अंडरपास बनवाने का प्रस्ताव तैयार करवाया। आप शहर और आसपास के गांवों में भी अंडरपास की संख्या और लोगों को मिली सहूलियतों को महसूस कर सकते हैं।
राजकीय जिला अस्पताल में बैड की संख्या बढ़ानी हो या फिर एनएमपीजी कॉलेज को 90 प्रतिशत अनुदानित करवाने का निर्णय। मेरा प्रयास यही रहा कि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य सहित शिक्षा के क्षेत्र में कुछ बेहतर हो। जरूरतमंदों को राहत मिले। फतेहगढ़ माइनर का निर्माण भी इसमें शामिल कर सकते हैं। जिससे दर्जनों गांवों के किसानों को पानी उपलब्ध करवा पाया। हालांकि विपक्ष ने अड़चने पैदा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
इतना कुछ करने के बावजूद मन में मलाल है। शहर के लोगों को सीवरेज और 24 घंटे पेयजल उपलब्ध नहीं करवा पाने का अफसोस। व्यक्तिगत प्रयासों से 281 करोड़ का बजट मंजूर करवाया। काम भी शुरू हो गया था लेकिन अब सब कुछ बंद है। हमारी कोशिश थी कि लोगों के घरों में 40 फुट उपर तक पानी बिना बुस्टर के पहुंचे। काश, ऐसा हो पाता। नागरिकों को राहत मिल पातीं। खैर, हम चाहते हैं हनुमानगढ़ जिला तरक्की करे। विकास का नया आयाम प्रस्तुत करे। पक्ष-विपक्ष सब मिलकर हनुमानगढ़ को नंबर वन जिला बनाने का संकल्प लें। हम तो शुरू से इसमें जुटे हुए हैं, जुटे रहेंगे, ताउम्र। इसलिए कि हमें अपनी जिम्मेदारियों का बखूबी एहसास है।