शंकर सोनी.
अडाणी प्रकरण को लेकर पांच दिन से संसद में हंगामे के कारण कार्यवाही नहीं हो रही। जिसके कारण देश को करोड़ों रुपए का नुकसान हो रहा है और संसद का समय भी खराब हो रहा है। हर भारतीयो को इस मामले को समझना होगा।
इस सब के पीछे अमेरिकी न्याय विभाग (डीओजे) और अमेरिकी प्रतिभूति और विनिमय आयोग (एसईसी) का हाथ है। इन्होंने अमेरिका में 20 नवंबर 2024 को अडाणी समूह पर पोर्ट और कोयला परियोजनाओं में अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए कुछ भारतीय सरकारी अधिकारियों को रिश्वत देने के आरोप लगाए।
अमेरिकी न्याय विभाग का मानना है कि रिश्वत देने के का संभावित उद्देश्य नियमों को लचीला बनवाना और अपने प्रोजेक्ट को शीघ्र मंजूरी दिलवाना हो सकता है।
विभाग ने इन आरोपों के प्रत्यक्ष सबूत सार्वजनिक नहीं किए हैं। अमेरिकी न्याय विभाग का मानना है कि अदाणी समूह ने अमेरिका के निवेशकों को उनके जोखिम से अनजान रखा जिससे निवेशकों को गुमराह किया कि उनके निवेश सुरक्षित है।
अमेरिकी नियामकों का यह मानना है कि यदि कोई विदेशी कंपनी अमेरिकी वित्तीय बाजारों या निवेशकों से धन जुटाती है और इसमें पारदर्शिता की कमी या धोखाधड़ी होती है, तो यह अमेरिकी निवेशकों के हितों को खतरे में डाल सकता है। परंतु आश्चर्य की बात यह है कि किसी अमेरिकी निवेशक ने सीधे अडाणी समूह के खिलाफ शिकायत दर्ज नहीं की। जब तक अदालत में ठोस सबूत पेश नहीं होते और यह साबित नहीं होता कि अडानी समूह के अमेरिकी निवेशकों वास्तव में नुकसान हुआ है। अमेरिका में अडानी समूह के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं हो सकती।
अभी मामला नियामक और कानूनी प्रक्रियाओं के अधीन है। इस संबंध में अडाणी समूह ने अपने पास पर्याप्त पूंजी और लाभ की स्थिति सुदृढ़ बताई है। भारत में निवेशकों की शिकायत के बिना सहारा के साथ जो किया गया वो हमारे सामने है।
स्पष्ट कर दूं कि इस लेख में अडाणी समूह का पक्ष नहीं लिया जा रहा। अगर उन्होंने भारत में भारतीय अधिकारियों को रिश्वत देकर कोई अवैध कार्य करवाया है तो विपक्ष को चाहिए अडानी समूह के खिलाफ पहले भारत में मुकदम दर्ज करवाए फिर सीबीआई जांच की मांग करे।
विपक्ष ने इस मामले में संसद की कार्यवाही ठप्प करके समझदारी नहीं की है। संसद में अभी इस मुद्दे पर कोई बहस नहीं हो सकती अभी मामला अपरिपक्व है क्योंकि आरोप ही अस्पष्ट और अनिश्चित है।
-लेखक नागरिक सुरक्षा मंच के संस्थापक और वरिष्ठ अधिवक्ता हैं